मामूली मत समझिए सिसौंण को, दाम और लाभ सुनकर रह जाएंगे दंग

Update: 2018-06-05 13:05 GMT

जिस सिसौंण का इस्तेमाल आप सिर्फ बच्चों को डराने या भूत भगाने में इस्तेमाल कर रहे हैं, उसी से अमेजन डॉट कॉम जैसी कंपनियां करोड़ों रुपये कमा रही हैं...

शेखर बेंजवाल

हल्द्वानी। आपके खेतों के किनारे, जंगल, धारे-नौले के रास्ते पर बहुतायत में होने वाली सिसौंण यानी बिच्छू बूटी बाजार में डंका बजा रही है। जिस सिसौंण का इस्तेमाल आप सिर्फ बच्चों को डराने या भूत भगाने में इस्तेमाल कर रहे हैं, उसी से अमेजन डॉट कॉम जैसी कंपनियां करोड़ों रुपये कमा रही हैं। इन कंपनियों द्वारा बाजार में बेची जा रही सिसौंण की सूखी पत्तियों के दाम आप सुनेंगे तो खुद दांतों तले अंगुली दबा लेंगे। अमेजन डॉट कॉम दस प्रतिशत डिस्काउंट देने के बाद सौ ग्राम पत्तियां 912 रुपये की बेच रहा है।

नेटल लीफ के नाम से बेचे जाने वाली सिसौण की इन पत्तियों का विज्ञापन इंटरनेट पर अमेजन के पेज पर मौजूद है, जिसमें इसके दामों के साथ-साथ इसके औषधीय लाभों का वर्णन भी किया गया है। कंपनी का दावा है कि किडनी की जिस बीमारी का अंतिम इलाज डायलिसिस है, उसमें नेटल लीफ यानि सिसौंण की पत्तियां बेहद गुणकारी साबित होती हैं।

रोजाना इसकी एक से दो चम्मच पत्तियों से तैयार चाय के सेवन से किडनी दुरुस्त रहती है और आपका मूत्रवहन तंत्र भी बेहतर तरीके से काम करता है। कंपनी ने अपने विवरण में इसे गठिया रोग के लिए भी फायदेमंद बताया है।   

अब आप समझ लीजिए कि आपके इर्द-गिर्द होने वाली यह सिसौंण कितने काम का है। आप इससे दूर-दूर भागने की कोशिश कर रहे हैं और दुनिया की नामचीन कंपनियां इसे बेचकर करोड़ों रुपये कमा रही हैं। पुरानी पीढ़ी तो फिर भी इसके महत्व को जानती थी और इसका सब्जी व दूसरे कुछ रूपों में उपयोग करती रही है, लेकिन पहाड़ की नई पीढ़ी इससे बिल्कुल विमुख है, जबकि वह चाहे तो इसके व्यावसायिक उपयोग से लाखों रुपये कमा ले।

हालांकि पिछले कुछ दिनों से सिसौंण के व्यावसायिक उपयोग की बात राजनीतिक स्तर से भी उठनी शुरू हुई है। पिछले दिनों हल्द्वानी में पलायन पर आयोजित एक गोष्ठी में वित्त मंत्री प्रकाश पंत ने इसके व्यावसायिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए इसके दोहन की बात कही थी, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी हल्द्वानी में ही पिछले सप्ताह आयोजित काफल पार्टी में प्रतिभागियों को सिसौंण की चाय पिलाते हुए लोगों से अपील की कि वे इसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं और इसके प्रसार-प्रसार में योगदान करते हुए इसे वैश्विक स्तर पर ले जाएं।

(शेखर बेंजवाल 'पंच आखर' के संपादक हैं।)

Similar News