राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का राग अलाप रही भाजपा, इन फैसलों पर अदालत को दिखाती रही है ठेंगा
बाबरी मस्जिद विध्वंस के तीन दशक बाद उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या भूमि विवाद पर 9 नवंबर को जब फैसला दिया तो भारतीय जनता पार्टी इसकी जमकर तारीफ कर रही है। भाजपा के मंत्री और सांसद इस फैसले का सम्मान करने की बात कर रहे हैं और हर जगह इस फैसले की दुहाई दे रहे हैं। लेकिन यही भाजपा देश के इतिहास की कई घटनाओं और विवादों में दिए उच्चतम न्यायालय के फैसलों को ठेंगा दिखा चुकी है...
जनज्वार। उच्चतम न्यायालय ने इससे पहले भी कई बड़े धार्मिक मामले सुलझाए हैं लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि इसी सरकार के मंत्रियों और नेताओं ने उन फैसलों को मानने से न सिर्फ इनकार किया था बल्कि सुप्रीम कोर्ट को धार्मिक मामलों से दूर रहने तक की हिदायत दे दी थी।
आइए जानते हैं इससे पहले कब-कब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को मानने से इनकार किया था-
1.सबरीमाला केस
पिछले साल उच्चतम न्यायायल ने केरल के सबरीमाला मंदिर पर चल रहे बहुत पुराने विवाद को खत्म करते हुए ये फैसला सुनाया था कि मंदिर के अंदर महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक को हटाया जाए। बता दें की सबरीमाला मंदिर के अंदर महिलाओं का प्रवेश हमेशा से ही वर्जित रहा है। जब कुछ महिलाओं ने सालों पुरानी इस परंपरा को खत्म करने के लिए न्यायालय की राह पकड़ी तो पांच जजों की बेंच ने भी उनका साथ दिया। लेकिन भाजपा के नेताओं को सुप्रीम कोर्ट का फैसला पसंद नहीं आया और नेताओं के खुल कार इसका विरोध किया। वही नेता जो आज सुप्रीम कोर्ट का गुणगान करते नहीं थक रहे, उन्होंने उस फैसले का जम कर विरोध किया था। तब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने तो केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन को ये धमकी भी दे दी थी कि उनको सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अमल करना महंगा पड़ेगा। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शाह के साथ ही खड़े नजर आए थे और उन्होंने इसे इतिहास का सबसे शर्मसार कर देने वाला फैसला बताया था।
2. जलिकट्टू पर फैसला
तमिलनाडु में कई शताब्दियों से चली आ रही जलिकट्टू की प्रथा पर सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में रोक लगाई थी। जानवरों पर हो रहे अत्याचार को देखते हुए कोर्ट ने यह फैसला लिया था लेकिन उस समय वहाँ की सरकार को यह फैसला नागवार गुजरा। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम ने न सिर्फ इस फैसले को सिरे से नकार दिया बल्कि ये खुली चुनौती भी दी की यह प्रथा बंद नहीं की जाएगी और वो ये खास खयाल रखेंगे की ये प्रथा आगे भी ऐसे ही चलती रहे।
3. हाजी अली दरगाह पर फैसला
मुंबई मे स्थित हाजी अली की दरगाह में महिलाओं का प्रवेश पर रोक थी, लेकिन 2016 में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस रोक को हटा दिया था। 2 मुस्लिम महिलाओं ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी कि उन्हें भी पुरुषों के समान ही हाजी अली की दरगाह में जाने की इजाज़त मिले। हालांकि महिलाओं को अब भी मज़ार तक जाने की अनुमति नहीं है और उस समय महाराष्ट्र सरकार ने भी कोर्ट से यह अपील की थी की अगर कुरान में यह वर्णित है तो महिलाओं को गर्भगृह तक जाने न दिया जाए। संविधान के आर्टिकल 14,15 और 26 के अनुसार भारत के सभी जन एक समान हैं और उन्हें जाति, लिंग, वर्ण आदि के आधार पर अलग नहीं किया जाना चाहिए। मगर सरकार और विशेष समुदाय के विरोध वजह से कोर्ट ने महिलाओं को दरगाह के मज़ार के अंदर जाने की इजाज़त अब भी नहीं दी है।
4. कावेरी नदी विवाद
कावेरी नदी तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच 142 सालों से विवाद की जड़ रहा है। नदी का पानी दोनों राज्यों में इस्तेमाल होता रहा है लेकिन अब जबकि आबादी बढ़ रही है तो दोनों ही राज्यों को ज्यादा पानी की आवश्यकता हो रही है। 2018 में जब यह विवाद ज्यादा बढ़ गया तो सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया की कर्नाटक को ज्यादा पानी मिले। इस फैसले के बाद कर्नाटक सरकार ने मनमानी नहीं छोड़ी और तमिलनाडु के लिए सुप्रीम कोर्ट के दिए पैमानों से कम पानी मुहैया कराया। तमिलनाडु की सरकार ने कर्नाटक सरकार पर मनमानी करने का आरोप भी लगाया लेकिन हालात अब भी ज्यादा नहीं सुधरे।