अब कर्नाटक में भी भाजपा, ये रही कांग्रेस की हार की बड़ी वजहें

Update: 2018-05-15 13:06 GMT

राजनीतिक विश्लेषक कहने लगे हैं कि यह हार कांग्रेस के उत्साह को पस्त करने वाली साबित होगी। क्योंकि इस हार का असर राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ विधानसभाओं समेत लोकसभा चुनावों पर भी पड़ेगा...

हालांकि इस समय कुछ आंकड़े बदल रहे हैं, कयास यह भी लगाये जाने लगे हैं कि हो सकता है बीजेपी बहुमत से पीछे रह जाये, फिर जेडीएस वाकई हो जाएगी किंगमेकर की भूमिका में

दिल्ली। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों में बीजेपी बहुमत की तरफ बढ़ रही है और राज्य में सत्तासीन रही कांग्रेस हार की तरफ।

इस हार को कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक कांग्रेस के खाते के ज्यादातर वोट जेडीएस के खाते में गए हैं, जिस कारण कांग्रेस इतनी पीछे हुई है।

कर्नाटक में मिल रही शिकस्त के बाद राजनीतिक विश्लेषक कहने लगे हैं कि यह हार कांग्रेस के उत्साह को पस्त करने वाली साबित होगी। क्योंकि इस हार का असर राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ विधानसभाओं समेत लोकसभा चुनावों पर भी पड़ेगा।

एक तरफ जहां इस हार से कांग्रेस की स्थिति कमजोर होगी, वहीं कर्नाटक में फतह हासिल करने के बाद बीजेपी दक्षिण में और मजबूती के साथ उभरेगी। जेडीएस किस तरफ जाएगी, यह भी संशय अभी बना हुआ है।

कांग्रेस की हार की वजहें
कांग्रेस पार्टी सूत्रों के मुताबिक कर्नाटक में सत्तासीन रही कांग्रेस ने पिछले पांच साल में पार्टी कॉडर को मजबूत करने के लिए कोई काम नहीं किया, वहीं बीजेपी बूथ लेबल से लेकर एक एक कॉडर तक को मजबूत कर रही थी।

आम जनता की राय में भी कांग्रेस के पास राज्य या राष्ट्रीय स्तर पर कोई ऐसी आर्थिक नीति नहीं है, जिससे लगे कि वह बीजेपी से अलग है। उसके पास कोई साफ नीति भी नहीं है। जनता आधार को लेकर लोग परेशान है, मगर कांग्रेस भी यह फैसला नहीं कर पाई कि उसका विरोध करना है या नहीं। दूसरी तरफ जनता को उम्मीद बंधाते हुए पीएम मोदी हर रैली में आधार के दम पर भ्रष्टाचार मिटाने की बात करते हैं।

राज्य में चुनावों से पहले मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने लिंगायतों को अलग धर्म का दर्जा देने की सिफारिश कर दी थी। लिंगायत परंपरागत तौर पर बीजेपी का वोटबैंक है, मगर जैसे ही सिद्धारमैया ने यह घोषणा की भाजपा ने इस मुद्दे को भी भुनाते हुए हिंदुओं के बीच प्रचारित करना शुरू कर दिया कि कांग्रेस हिंदुओं को बांटना चाहती है।

ग्रामीण क्षेत्रों में भी कांग्रेस का प्रदर्शन उम्मीदों से बहुत बुरा गया है। ग्रामीण इलाकों में मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग ने कांग्रेस को वोट ही नहीं दिया है, सिर्फ निम्न वर्ग के वोट कांग्रेस के खाते में गए हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार बीजेपी को यहां इतनी बड़ी सफलता में बीएस येदियुरप्पा की घर वापसी भी मुख्य कारण रही। वर्ष 2013 में येदियुरप्पा के अलग पार्टी बनाने से बीजेपी को खासा नुकसान उठाना पड़ा था। चूंकि येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से आते हैं, तो भाजपा में कैडर बेस से मंच पर नेताओं ने हिंदुओं को बांटने का जो आरोप कांग्रेस पर लगाया, उसका सीधा फायदा पार्टी को चुनाव में मिला।

हालांकि भाजपा ने उसी बीएस येदियुरप्पा को अपने मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी बनाया, जोकि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जेल की हवा खा चुके हैं, मगर जहां लिंगायत मुद्दे को भाजपा भुनाने में सफल रही, वहीं कांग्रेस इस जैनुअन मुद्दे को भी नहीं भुना पाई। वह जनता को यह तक समझाने में नाकामयाब रही कि तुम एक भ्रष्ट नेता की ताजपोशी के लिए वोट करने जा रहे हो।

कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार ने भी भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बावजूद तीन साल तक येदियुरप्पा के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की, दूसरी तरफ बीजेपी ने सिद्धारमैया की महंगी घड़ी जैसे मामूली मुद्दे को चुनावों में भुना लिया।

और कांग्रेस की हार की सबसे बड़ी वजह रही खराब बूथ मैनेजमेंट, जबकि इसमें बीजेपी का कोई सानी नहीं है। इसी के बल पर वह अन्य राज्यों में भी सफलता हासिल करती आई है। काश कि कांग्रेस ने पिछली हारों को देखते हुए अपने गढ़ में ही बीजेपी से बूथ मैनेजमेंट का सबक ले लिया होता तो आज हार का मुंह नहीं देखना पड़ता। 

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