मेडिकल प्रवेश घोटाले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के सिटिंग जज के खिलाफ सीबीआई ने की एफआईआर

Update: 2019-12-07 05:57 GMT

तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के सिटिंग जज जस्टिस एसएन शुक्ला के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की अनुमति दे दी थी। देश में ऐसा पहली बार हुआ है। इससे पहले 1991 में सुप्रीम कोर्ट ने के वीरास्वामी केस में ऐसी अनुमति नहीं दी थी...

जेपी सिंह की रिपोर्ट

जनज्वार। सीबीआई ने मेडिकल कॉलेज प्रवेश घोटाले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के सिटिंग जज श्रीनारायण शुक्ला के खिलाफ केस दर्ज किया है। जस्टिस शुक्ला पर एक मामले में मेडिकल कॉलेज का पक्ष लेने का आरोप है। सीबीआई टीम ने शुक्रवार को शुक्ला के लखनऊ स्थित आवास की तलाशी ली। इतिहास में पहली बार किसी सिटिंग जज के खिलाफ केस दर्ज हुआ है। मेडिकल कॉलेज घोटाले में सीबीआई ने शुक्रवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज एसएन शुक्ला के लखनऊ स्थित घर पर छापेमारी की। सीबीआई ने इस मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज आईएम कुद्दुसी, प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट के भगवान प्रसाद यादव और पलाश यादव के खिलाफ भी केस दर्ज किया है।

सीबीआई की वेबसाईट के अनुसार 4 दिसंबर को धारा 120 बी आईपीसी सपठित भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 7, 8,12 और 13 (2), 13 (1 डी) के तहत आरोपियों पर मामला दर्ज किया गया है। एफआईआर दर्ज होने के बाद सीबीआई ने लखनऊ, मेरठ और दिल्ली में कई स्थानों पर छापेमारी की। मई 2017 में केंद्र ने प्रसाद इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज समेत 46 अन्य मेडिकल कॉलेजों को उप-मानक सुविधाओं और आवश्यक मानदंडों को पूरा न करने के कारण छात्रों का एडमिशन लेने से मना कर दिया था।

केंद्र के इस फैसले को ट्रस्ट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका के माध्यम से चुनौती दी थी। इसके बाद एफआईआर में नामजद लोगों ने साजिश रची और अदालत की अनुमति से याचिका वापस ले ली गई। अधिकारियों ने कहा कि 24 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट की लखनऊ पीठ के समक्ष एक और याचिका दायर की गई थी।

एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि कि याचिका पर 25 अगस्त 2017 को अदालत की एक खंडपीठ ने सुनवाई की, जिसमें जस्टिस शुक्ला शामिल थे और उसी दिन एक आदेश पारित किया गया था। अधिकारियों ने कहा कि अपने पक्ष में आदेश पाने के लिए ट्रस्ट की ओर से एफआईआर में नामित एक आरोपी को अवैध रूप से पैसा दिया गया था। जस्टिस शुक्ला ने उच्चतम न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करके कथित तौर पर एक निजी मेडिकल कॉलेज का पक्ष लेते हुए 2017-18 में छात्रों के दाखिले की डेडलाइन को बढ़ा दिया। जस्टिस शुक्ला को इन हाउस कमिटी ने गंभीर अनियमितताओं का दोषी पाया और उनसे जनवरी 2018 में सभी न्यायिक कार्य वापस ले लिए गए।

त्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के सिटिंग जज जस्टिस एसएन शुक्ला के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की अनुमति दे दी थी । देश में ऐसा पहली बार हुआ है। इससे पहले 1991 में सुप्रीम कोर्ट ने के वीरास्वामी केस में ऐसी अनुमति नहीं दी थी। सीजेआई ने सीबीआई को इलहाबाद हाई कोर्ट में कार्यरत जज जस्टिस एसएन शुक्ला के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधी कानून (प्रिवेंशन ऑफ करप्शन ऐक्ट) के तहत मुकदमा दर्ज करने की अनुमति दे दी थी । जस्टिस शुक्ला पर एमबीबीएस पाठ्यक्रम में दाखिले के लिए कथित तौर पर प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों का पक्ष लेने का आरोप है।

सके पहले तत्कालीन सीजेआई जस्टिस रंजन गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर जस्टिस शुक्ला को हटाने का प्रस्ताव संसद में लाने को कहा था। 19 महीने पहले पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने भी यही सिफारिश की थी जब एक आंतिरक समिति ने जस्टिस शुक्ला को गंभीर न्यायिक कदाचार का दोषी पाया था। पीएम मोदी को पत्र लिखने से पहले सीजेआई गोगोई ने न्यायिक कार्य फिर से आवंटित करने का जस्टिस शुक्ला का आग्रह खारिज कर दिया था।

स्टिस शुक्ला के खिलाफ कदाचार की उत्तर प्रदेश के महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह की शिकायत पर सितंबर 2017 में सीजेआई दीपक मिश्रा ने एक आंतरिक जांच समिति गठित कर दी थी। इस समिति में मद्रास हाई कोर्ट की तत्कालीन चीफ जस्टिस इंदिरा बनर्जी, सिक्किम हाई कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस एसके अग्निहोत्री और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस पीके जयसवाल शामिल थे। समिति को जांच कर पता करना था कि क्या जस्टिस शुक्ला ने वाकई सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में विद्यार्थियों के ऐडमिशन की समयसीमा बढ़ा दी थी?

रअसल सीबीआई ने सीजेआई गोगोई को पत्र लिखा था। इसमें जस्टिस शुक्ला के खिलाफ जांच को आगे बढ़ाने की अनुमति मांगी गई थी। इसी सिलसिले में पिछले महीने सीजेआई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था। उन्होंने कहा था कि संसद में जस्टिस शुक्ला को हटाए जाने को लेकर प्रस्ताव लाया जाए। पूर्व सीजेआई दीपक मिश्रा ने जस्टिस शुक्ला को उस वक्त इस्तीफा देने या समय से पूर्व रिटायर होने के लिए कहा था, मगर जस्टिस शुक्ला ने इस बात से इनकार कर दिया था। 2018 में उनसे कानूनी कामकाज वापस ले लिए गए थे।

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