अगर सेंसर बोर्ड के कहेनुसार फिल्म में कट किए गए तो रह नहीं जाएगी देखने लायक, साथ ही नाम बदलने को भी कहा सेंसर बोर्ड ने
जनज्वार, मुंबई। फिल्म पदमावती को लेकर चल रहे विवाद के बीच सेंसर बोर्ड का एक उलझाने वाला और कड़ा फैसला फिल्म को लेकर आ गया है। माना जा रहा है कि अगर फिल्म के निर्देशक संजय लीला भंसाली सेंसर बोर्ड की बातों को हू—ब—हू मान लेंगे तो फिल्म देखने लायक नहीं रह जाएगी।
सेंसर बोर्ड के मुखिया और संगीतकार प्रसून जोशी ने फिल्म को रिलीज करने की पहली बड़ी शर्त उसके नाम बदलने के मामले में रख दी है। सेंसर बोर्ड का कहना है कि फिल्म का नाम पदमावती की जगह 'पदमावत' कर दिया जाए, तभी फिल्म रिलीज होगी। गौरतलब है कि पदमावती जिस सूफी कवि मलिक मोहम्मद जायसी के काव्य ग्रंथ पर आधारित है, उस ग्रंथ का मूल नाम 'पदमावत' ही है।
सेंसर बोर्ड द्वारा नियुक्त विशेष समिति का कहना है कि फिल्म में 26 कट भी किए जाएं, क्योंकि इसमें ऐतिहासिक तथ्यों के साथ छेड़छाड़ हुई है।
सेंट्रल फिल्म सेर्टिफिकेशन बोर्ड ने फिल्म के ऐतिहासिक तथ्यों की जांच के लिए जिन लोगों की विशेष समिति बनाई थी, उनमें उदयपुर से इतिहासकार अरविंद सिंह और जयपुर विश्वविद्यालय से प्रोफेसर चंद्रमणि सिंह और केके सिंह शामिल थे।
गौरतलब है कि फिल्म के जारी हुए प्रोमो के बाद देश में बड़ा विवाद इस बात पर छिड़ गया था कि फिल्म में निर्देशक ने राजपूत रानी पदमावती को हमलावर राजा अलाउद्दीन खिलजी के साथ प्यार—मोहब्बत का कुछ सीन है जो ऐतिहासिक तौर पर गलत है। इसके खिलाफ राजपूत जाति की करणी सेना ने पूरे देश में बहुत बवाल काटा और बाद में इस बवाल से प्रभावित सरकारों ने फिल्म के जारी होने पर रोक लगा दी।
फिल्म के निर्देशक संजय लीला भंसाली का कहना है कि इस प्रेम कहानी में कुछ भी ऐसा नहीं है जो इतिहास से छेड़छाड़ करने वाला लगे। पर कई राज्य सरकारों ने साफ कर दिया है कि जबतक सेंसर बोर्ड फिल्म को सर्टिफिकेट नहीं देता, तबतक वह राज्यों में फिल्मों को नहीं चलने देंगे। 1 दिसंबर को जारी होने वाली इस फिल्म को कांग्रेस के पंजाब राज्य समेत उत्तर भारत के सभी भाजपा शासित राज्यों ने फिल्म के सिनेमाघरों में दिखाने पर पाबंदी लगा दी है।