मोदी सरकार देगी इजाजत, अब मेलों में कटने के लिए बिकेंगे गाय समेत सभी जानवर

Update: 2017-11-30 10:55 GMT

अब नहीं रहेगा पशुओं को बाजार से खरीदकर काटने पर प्रतिबंध, केंद्र सरकार लेगी अपना नोटिफिकेशन वापस, अब खाने के लिए मेलों में बिकेंगी गाएं, भैंसे और भेड़ें

जनज्वार, दिल्ली। केंद्र ने गायों, बैलों, भैंसो और बड़े जानवरों को मेलों से खरीदकर काटने पर लगाए प्रतिबंध को वापस लेने का फैसला किया है। केंद्र सरकार ने यह फैसला राज्यों से आए फीडबैक और लोगों का सरकार के प्रति बढ़ते रोष के मद्देनजर लिया है। केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के अधिकारियों ने की है।

गौरतलब है कि मोदी सरकार ने 23 मई को नोटिफिकेशन जारी कर आदेश दिया था कि किसी भी पशु मेले या बाजार से काटने के लिए पशु नहीं खरीदे—बेचे जाएंगे।

सरकार के इस राजनीतिक फैसले का आम जनता और किसानों पर बहुत बुरा असर पड़ा। गांवों में आवारा पशुओं की भरमार हो गयी है और पहले से संकट में चली आ रही खेती और संकट में पड़ गयी है। देश भर से दर्जनों खबरें आ चुकी हैं जिसमें लोगों की मौत आवारा पशुओं के हमलों में हुई है। 

इस कानून के लागू होने के बाद से अगर कोई जानवर मेले से खरीदेगा तो उसको प्रमाण देना होता था कि वह काटने के लिए गाय या सांढ या भैंस नहीं ले जा रहा है। सरकार के उटपटांग फैसले से मेले बंद होने लगे थे, क्योंकि 90 फीसदी पशु मेले में बिकते हैं। सिर्फ 10 प्रतिशत पशुओं की ही किसानों से सीधे खरीद—फरोख्त होती है।  बैल, गाय, भैंस, सुराग, हेइफ़र्स और ऊंट की काटने के लिए ब्रिकी पर पूर्ण प्रतिबंध था।

सरकार के उटपटांग फैसले से मेले बंद होने लगे थे, क्योंकि 90 फीसदी पशु मेले में बिकते हैं। सिर्फ 10 प्रतिशत पशुओं की ही किसानों से सीधे खरीद—फरोख्त होती है। उस समय केंद्र के इस फैसले का केरल की सरकार ने खुलकर विरोध किया था और कहा था कि मोदी की गलत नीतियों के कारण न सिर्फ देश की आर्थिकी ढह रही है बल्कि राजनीतिक लाभ के लिए पारिस्थितिकी को नष्ट किया जा रहा है।

ऐसे में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि कई कारणों और मानकों के चलते पशु निरंकुशता 'पशुधन बाजार का विनियमन' नियम 2017 में बदलाव करने जा रहे हैं, जिससे मेलों में पशुओं की बिक्री पर लगा प्रतिबंध खत्म किया जा सके।

मोदी सरकार ने यूपी चुनावों से पहले गाय पर बने सांप्रदायिक माहौल के बीच राजनीतिक जरूरत के हिसाब से यह फैसला लिया था। पर चंद महीनों के बीतने के बीच जब आर्थिक और खेती का व्यापक नुकसान हुआ तो उसे यह फैसला वापस लेना पड़ा। सांप्रदायिक ध्रवीकरण में माहिर भाजपा की इसे चालाकी ही कहेंगे कि धार्मिक माहौल बनने पर वह हिंदू तुष्टकीरण का भी कार्ड खेल लेती है और जब उसकी जरूरत खत्म हो जाती है तो उसे बदल भी देती है।

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