'कूड़े और बजबजाती गंदगी पर बैठे अपने शहर छपरा को देखते-देखते बूढ़े हो चले हैं हम'

Update: 2019-10-14 04:51 GMT

छपरावासी कहते हैं, हमारे शहर में बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएं जरूर खड़ी हो गईं हैं, पर बस्तियों में कूड़े-कचरे का अंबार जो पहले नजर आता था, वह आज भी नजर आता है, बल्कि पहले की बनिस्पत ज्यादा ही...

छपरा से राजेश पाण्डेय की रिपोर्ट

जनज्वार। बिहार का छपरा शहर कचरे के ढेर पर बैठा है। यहां के किसी भी गली-मुहल्ले में जाइए, कूड़ा-कचरा से सामना होना तय है। बजबजाती नालियां, कचरे के ढेर में भोजन तलाशते आवारा पशु सहज ही दिख जाएंगे। कहने को प्रमंडलीय मुख्यालय और नगर निगम है यह, मगर जनसुविधाएं नगण्य।

हां के सारण कमिश्नरी के मुख्यालय छपरा को लोगों ने आजिज आकर 'नगर निगम' का नामकरण 'नरक निगम' कर दिया है। भुक्तभोगी शहरवासी कहते हैं, 'हमारे लिए यह स्थिति कोई नई नहीं, वरन दशकों से है। पीढ़ियां गुजर गयीं, पर नहीं बदली शहर की सूरत। जो समस्या हमारे दादा की पीढ़ी ने झेली, वही पिता की पीढ़ी ने और अब हम स्वयं झेल रहे हैं।'

कूड़े के ढेर पर बैठे शहरवासी कहते हैं, 'ऐसा नहीं है कि यह शहर कोई कम वीआईपी है। यहां प्रमंडलीय आयुक्त, प्रक्षेत्रीय डीआईजी तक बैठते हैं। यहां के सांसद राजीव प्रताप रूडी अभी बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं, केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। यहां से सांसद रहे राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद सूबे के मुख्यमंत्री रहे। यहीं के दारोगा प्रसाद भी मुख्यमंत्री रहे, मगर चाहे उस वक्त का दौर हो या आज का, शहर की सूरत जस की तस है।'

क्षेत्रवासी कहते हैं, 'हमारे शहर में बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएं जरूर खड़ी हो गईं हैं, पर बस्तियों में कूड़े-कचरे का अंबार जो पहले नजर आता था, वह आज भी नजर आता है, बल्कि पहले की बनिस्पत ज्यादा ही। छपरा नगर परिषद का प्रमोशन हुआ और यह छपरा नगर निगम बन गया। यहां अब चेयरमैन की जगह मेयर और नगर आयुक्त आ गए, मगर इससे न शहर को कोई फायदा हुआ, न शहर के वाशिंदों को। हां,सफाई का बजट जरूर दस-बीस गुणा बढ़ गया। यह बजट कहां जा रहा, किसी को नहीं पता।'

कूड़ा—कचरा और बरसात के पानी से बेहाल छपरावासी

सामाजिक-राजनीतिक सरोकारों से जुड़े लोग कहते हैं, ऐसा भी नहीं कि शहर के लोगों ने गन्दगी से निजात पाने की कोशिश नहीं की। कई जनांदोलन हुए, कई संगठनों ने स्वयं सफाई की पहल की, पर दूरगामी परिणाम नहीं निकल सका।

किसी भी शहर की समस्या के मूल कारण को समझने के लिए पहले उस शहर के मिजाज को समझना जरूरी होता है। लिहाजा जनज्वार ने भी शहर की बजबजाती गन्दगी के कारणों के साथ शहर के मिजाज को भी समझने की कोशिश की। छपरा का शहरी इलाका कोई बहुत बड़ा नहीं, बमुश्किल 20 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बसा है। 44 वार्ड हैं और लगभग डेढ़ दर्जन मुहल्ले।

हर की लंबाई ज्यादा और चौड़ाई कम। हमने लोगों से बात कर समस्या का मूल कारण जानना चाहा। इसके लिए सबसे पहले हम शहर के पश्चिमी छोर पर स्थित ब्रह्मपुर मुहल्ले में पहुंचे। इसी से जुड़े कुछ छोटे मुहल्ले अजायबगंज, मासूमगंज, श्यामचक, नबीगंज, शेखटोली आदि भी हैं। इनमें शेखटोली को छोड़ सभी मुहल्ले मिश्रित आबादी वाले और सैकड़ों वर्ष पूर्व के बसे हैं।

ब्रह्मपुर ही नहीं, बल्कि इन सभी मुहल्लों में हर सड़क पर हमें कचरों का अंबार मिला। मुहल्लों के छोर पर डंप किए गए कचरे के ढेर दिखे। यहां हमें इमरान अली मिले, जो फल के आढ़ती हैं और निकट के जलालपुर में उनकी आढ़त की दुकान है। इमरान कहते हैं, 'कचरे का ढेर देखते-देखते हम बूढ़े हो चले। न मुहल्ले की सूरत बदली न हाकिमों की सीरत।'

गंदगी से पटा यह सीन छपरा शहर में हर गली-मोहल्ले में आम है

मरान कचरे के जमाव के लिए सीधे तौर पर नगर विधायक को दोषी मानते हैं, चूंकि चुनावों के दौरान वोट मांगने के क्रम में उन्होंने कचरे से निजात दिलाने का वादा किया था। शहर के पूरब की तरफ आगे बढ़ते हैं तो यहां दिलीप पांडेय, पुकु पांडेय आदि से मुलाकात होती है। कचरे और इसके निपटान के बारे में पूछने पर सीधे कहते हैं कि नगर निगम के कर्मी कभी भी कचरा उठाने नहीं आते, जबकि नगर निगम प्रतिदिन डोर टू डोर कचरा उठाने का दावा करता है।

हां से हम पूरब की तरफ आगे बढ़ते हैं और शहर की सबसे पुरानी और सबसे प्रसिद्ध मंडी गुदरी बाज़ार पहुंचते हैं। यहां का हाल तो सबसे बुरा है। सब्जी मंडी के पीछे सड़ी हुई सब्जियों और पत्तों का ढेर है और दुर्गंध के मारे खड़ा होना मुश्किल। यहां के दुकानदार सुभाष प्रसाद, वीरेंद्र प्रसाद कहते हैं, मुख्य सड़क पर सालोंभर जलजमाव रहता है और कचरे का ढेर रहता है। सोनारपटी के सामने दर्जनों मीट-चिकन के दुकान हैं, जहां खुले में ही जानवर काटे जा रहे हैं।

कुछ यही हाल भगवान बाज़ार थाना रोड और शिव बाजार मुहल्लों का है। दोनों जगह मुख्य सड़क के किनारे कूड़ा के टाल हैं। भगवान बाजार थाना के पास भी कचरे का ढेर है तो छपरा जेल के पीछे लगभग 20 मीटर के क्षेत्र में कूड़ा का पहाड़ खड़ा है और यहां आवारा गायें और सुअर चरते हुए नजर आते हैं। स्थानीय निवासी और स्वच्छ छपरा अभियान चला रहे यशवंत सिंह इसके लिए सीधे तौर पर स्थानीय जनप्रतिनिधियों और नगर निगम को जिम्मेदार मानते हैं। कहते हैं, हमारी टीम द्वारा सालोंभर सफाई अभियान चलाया जाता है और संसाधन सीमित हैं।

कुछ ऐसा नजारा है आजकल छपरा की मुख्य सड़कों का

परा शहर के हॉस्पिटल चौक, रामलीला मठिया चौक, सलेमपुर, दलदली बाजार, खनुआ, राहत रोड, करीमचक आदि स्थानों की भी कमोबेश स्थिति है। हालांकि दशकों से गंदगी के अंबार को झेलते आ रहे लोगों में अब इसे लेकर आक्रोश पनप रहा है और यह कभी भी गुबार बनकर फूट सकता है, मगर सवाल है कि क्या शासन-प्रशासन इनकी परेशानियों को समझ कचरे के निपटान के लिए कोई ठोस कदम उठायेगा।

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