दिग्विजय सिंह ने प्रधानमंत्री को लिखा पत्र, पूछा मनरेगा में 450 करोड़ की बकाया मजदूरी कब देगी सरकार

Update: 2018-04-20 22:55 GMT

मनरेगा में 450 करोड़ रुपए का बकाया देश का नहीं बल्कि अकेले मध्यप्रदेश का है, जहां महीनों से मजदूरी करने के बाद अपना मेहनताना लेने के लिए भटक रहे हैं मजदूर

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने अपनी पत्नी अमृता और 250 अन्य लोगों के साथ 3,300 किलोमीटर लंबी नर्मदा परिक्रमा 9 अप्रैल को खत्म की है। नर्मदा यात्रा के दौरान अपने सहयात्रियों के साथ उन्हें नरसिंहपुर जिले में बरमान घाट पहुंचने में उन्हें लगभग छह महीने लगे...

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का पत्र प्रधानमंत्री मोदी के नाम

माननीय, मैं विगत 6 माह से पैदल नर्मदा परिक्रमा पर था जो 9 अप्रैल 2018 को पूर्ण की है। इस दौरान मध्य प्रदेश के अंचलों में रहने वाले अनुसूचित जनजाति बाहुल्य जिलों के लोगों से मिलना हुआ। मुझे यह जानकर बहुत पीड़ा हुई कि प्रदेश के सुदूर अंचल में रहने वाले आदिवासी भाई—बहनों को कई माह से मनरेगा कार्यों की मजदूरी की राशि अभी तक नहीं मिली है। प्रदेश में मजदूरी और सामग्री का 450 करोड़ रुपए का भुगतान राशि आवंटन के अभाव में शेष है।

ये मजदूर परिवार प्रतिदिन बैंक और पंचायतों का चक्कर लगाने को मजबूर हैं।

इससे प्रतीत होता है कि राज्य सरकार के साथ—साथ केंद्र सरकार मनरेगा योजना और उसमें काम करने वाले गरीब लोगों के प्रति कितनी संवेदन शून्य है। विश्व की 'रोजगार की गारंटी' वाली सबसे बड़ी मनरेगा योजना के प्रति मजदूरों का विश्वास कम हो रहा है। और ये पलायन और शोषण को मजबूर हो रहे हैं। कहीं न कहीं सरकारी तंत्र और बिचौलियों द्वारा इन भोले—भाले जनजाति भाइयों को छला और ठगा जा रहा है।

मेरी नर्मदा यात्रा के बीच पैदल चलते हुए मैं 250 परिक्रमावासियों के साथ निमाड़, मालवा और महाकौशल अंचल के लोगों से मिला। उनमें से अनूपपुर में 6 करोड़, डिण्डोरी में 10 करोड़ रुपए, उमरिया 7 करोड़ रुपए, मंडला में 13 करोड़ रुपए, सिवनी में 12 करोड़ रुपए, बालाघाट में 23 करोड़ रुपए, खरगोन 12 करोड़ रुपए, खण्डवा 9 करोड़ रुपए, धार 18 करोड़ रुपए, अलीराजपुर 12 करोड़ रुपए, झाबुआ 10 करोड़ रुपए का मजदूरी और सामग्री का भुगतान किया जाना शेष है।

सरकार के घोर असंवेदनशील होने से मजदूर वर्ग मजदूरी नहीं मिलने से भटक रहा है और भूखे रहने को मजबूर है। वहीं सामग्री देने वाले छोटे—छोटे दुकानदारों का धंधा चौपट हो रहा है।

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