हिमाचल प्रदेश पुलिस के इस रण-बांकुरे का नाम है अर्जुन सिंह । अर्जुन 2009 बैच के सिपाही हैं। जबकि उनकी पत्नी सुमन भी हिमाचल प्रदेश पुलिस में 2010 बैच की सिपाही है...
संजीव कुमार सिंह चौहान की रिपोर्ट
सिरमौर: इंसानी दुनिया में जिस कोरोना के कहर ने तबाही मचा रखी है। उसी कोरोना की कमर तोड़ने की उम्मीद ने हिमाचल पुलिस को एक कर्मवीर सिपाही भी बख्शा है। वो सिपाही अर्जुन सिंह (28), जिसने कोरोना की कमर तोड़ने की जिद में न तो नवजात बेटे की मौत का गम मनाना गंवारा किया। इतना ही नहीं इस दिलेर ने विधवा मां और पत्नी के आंसू पोंछने को घर की देहरी लांघना भी मुनासिब नहीं समझा। क्योंकि यह बहादुर सिपाही पिता की हैसियत से जब दु:ख की इस घड़ी में, अपने नवजात शिशु की मौत पर मिट्टी डालने की रस्म निभाने जा रहा था, उस समय उसकी ड्यूटी कोरोना संक्रमित एक तबलीगी के साथ लगी हुई थी।
दुनिया कोरोना की इस महामारी के दौर में खुद को बचाने के लिए जूझ रही है। तब हिमाचल प्रदेश पुलिस के इस सिपाही ने बेटे की मौत का गम मनाना भी मंजूर नहीं किया। महज इसलिए कि, मां और पत्नी को ढांढ़स बंधाऊंगा तो ऐसा न हो कि वे भी कोरोना संक्रमित हो जाएं। या फिर जाने-अनजाने इन भावुक पलों में हुई एक भूल के चलते कहीं कोई और नया कोरोना पीड़ित दुनिया को न मिल जाए।
यह भी पढ़ें- मां का अंतिम संस्कार कर तुरंत काम पर लौटे इस कलेक्टर को एक सलाम तो बनता है!
हिमाचल प्रदेश पुलिस के इस रण-बांकुरे का नाम है अर्जुन सिंह (28)। अर्जुन 2009 बैच के सिपाही हैं। जबकि उनकी पत्नी सुमन भी हिमाचल प्रदेश पुलिस में 2010 बैच की सिपाही है। अर्जुन करीब डेढ़ साल से नाहन जिला सिरमौर ट्रैफिक में तैनात हैं। जबकि पत्नी सुमन की पोस्टिंग शिलाई थाने में है। नाहन के लोग अक्सर दिन भर अर्जुन को ट्रैफिक इंतजाम रोड पर संभालते हुए देखते हैं। अब तक जो अर्जुन हिमाचल प्रदेश पुलिस के सिपाही और नाहन में ट्रैफिक पुलिस कर्मी भर थे। वे ही अर्जुन कोरोना जैसी महामारी में सूबे की पुलिस के सिरमौर और जनता के चहेते सिपाही बन चुके हैं।
बीते गुरुवार को सुमन को प्रसव पीड़ा के चलते अस्पताल में दाखिल होना पड़ा था। जब सुमन अस्पताल पहुंची उस वक्त अर्जुन की ड्यूटी एक कोरोना संक्रमित तबलीगी (पॉजिटिव) को नाहन से बद्दी ले जाने में लग गयी। इसी बीच रास्ते में पता चला कि, अर्जुन की पत्नी ने जिस नवजात शिशु को जन्म दिया, उसकी मृत्यु हो गयी। ऐसे में अर्जुन ने खुद ही तय किया कि, वो यह बात फिलहाल किसी से नहीं कहेगा। न ही नवजात की मौत का दु:ख मनायेगा।
यह भी पढ़ें- ग्राउंड रिपोर्ट: गुजरात के भुज में खाने के लिए संघर्ष के कर रहे मजदूर, किसानों का भी बुरा हाल
अर्जुन ने आईएएनएस से फोन पर बातचीत में इसकी वजह बताई, "दुख की इस घड़ी में टूटन तो बहुत मसहूस हुई। फिर लगा कोरोना पॉजिटिव तबलीगी को साथ लेकर जा रहा हूं। अगर मैं टूटकर बेटे की मौत का दुख मनाने लगा तो मां और पत्नी भी टूट जायेंगी।"
यह भी पढ़ें- मर्द नहीं आए काबू तो लॉकडाउन लागू कराने घरों से निकलीं महिलाएं
बहादुर अर्जुन ने आगे कहा, "मैं इंतजाम करके किसी तरह से घर पहुंचा। नवजात बेटे के शव पर पिता होने की रस्म निभाते हुए मिट्टी (जिसे जीवित तो देखा ही नहीं था) डाली। उसके बाद मैं मां से भी नहीं मिला। पत्नी से बहुत दूर से मिला। उसे दिलासा देना मुनासिब नहीं लगा। इससे वह टूट जाती। अगर वो टूटती तो उसे ढांढस बंधाने मुझे उसके करीब पहुंचना होता। लिहाजा मैं जिन कदमों से पत्नी के सामने गया, उन्हीं से जल्दी से वापस लौट गया।"
हिमाचल पुलिस के इस हीरो से बातचीत के दौरान ही आईएएनएस को पता चला कि, अर्जुन के पिता की बीते साल मृत्यु हो चुकी है। घर में बूढ़ी मां अकेली रहती हैं। उन्होंने भी पोते का मुंह नहीं देखा। बकौल अर्जुन, "अगर मैं मां के सामने जाता तो वे खुद को नहीं संभाल पातीं। और मैं खुद भी शायद मां के सामने हार जाता। लिहाजा मैंने मां से न मिलने में ही अपनी सबकी और समाज की भलाई समझी। ईश्वर का शुक्र है कि पॉजिटिव तबलीगी को छोड़कर आने के बाद भी मैं स्वस्थ हूं। मगर कोरोना का कोई भरोसा नहीं होता। ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग मेंटन करना जरुरी था।"
गुरुवार को इस बारे में हिमाचल प्रदेश के पुलिस महानिदेशक सीताराम मरडी से बात की। उन्होंने कहा, "अर्जुन का पद महकमे में सिपाही जरुर है। उसने मगर महकमे का सिर बहुत ऊंचा कर दिया है। यह मौका सबके हाथ वर्दी की नौकरी में नहीं आता। इतनी कम उम्र में ही अर्जुन की वर्दी की नौकरी में जो स्वर्णिम और परीक्षा की घड़ियां आईं, उसने उसका भरपूर जायज इस्तेमाल किया। रिजल्ट जमाने के सामने है। मैंने अर्जुन को नकद राशि से पुरस्कृत करने की घोषणा की है। साथ ही हिमाचल प्रदेश पुलिस में पुलिस महानिदेशक द्वारा दिया जाने वाला 'क्लास-वन' सर्टिफिकेट भी मैं अर्जुन को देकर सम्मानित करुंगा।"
यह भी पढ़ें- बेसहारा दलित महिला की मौत होने पर बेटे बन गए पुलिसवाले, कंधा देकर किया अंतिम संस्कार
उल्लेखनीय है कि हिमाचल पुलिस में क्लास-2 सर्टिफिकेट उल्लेखनीय सेवाओं के लिए डीआईजी और क्लास-3 सर्टिफिकेट एसपी या एसएसपी द्वारा दिया जाता है। इन तीनों ही सर्टिफिकेट्स में क्लास-वन सर्वोपरि है। अर्जुन की इस यादगार कर्तव्यपरायणता के बारे में आईएएनएस ने सिरमौर के पुलिस अधीक्षक कृष्ण कांत शर्मा से बात की। उन्होंने कहा, "अर्जुन ने इतना बड़ा काम कर दिया है कि अब, उसके बाद मेरा कुछ बोलना या न बोलना बेकार है। अर्जुन के एक दिलेरी भरे फैसले के लिए पूरा पुलिस महकमा कृतज्ञ है। अर्जुन ने जो किया है हाल-फिलहाल तो मुझे उसके सामने जमाने की हर चीज हर बात बौनी नजर आ रही है। अर्जुन की हिम्मत और फैसला लेने की शक्ति ने अर्जुन को ही नहीं, हिमाचल पुलिस को भी एक लम्हे में बुलंदियों पर पहुंचा दिया है। हिमाचल पुलिस को ऐसे ही और अर्जुन की दरकार हमेशा से थी और आईदा भी रहेगी।"