Begin typing your search above and press return to search.
राष्ट्रीय

ग्राउंड रिपोर्ट: गुजरात के भुज में खाने के लिए संघर्ष के कर रहे मजदूर, किसानों का भी बुरा हाल

Janjwar Team
17 April 2020 8:21 AM IST
ग्राउंड रिपोर्ट: गुजरात के भुज में खाने के लिए संघर्ष के कर रहे मजदूर, किसानों का भी बुरा हाल
x

गरीब मजदूरों का कहना है कि उनके पास अभी तक सरकार का कोई आदमी नहीं पहुंचा है. वहीं मजदूर और मशीनें न होंने से किसानों का भी बुरा हाल है उन्हें खरीददार नहीं मिल रहे....

गुजरात के भुज से दत्तेश भावसार की रिपोर्ट

जनज्वारः लॉकडाउन घोषित होने के बाद देश भर में लोगों को परेशानियों का सामाना करना पड़ रहा है. जन जवार की टीम ने गुरुवार को गुजरात के कच्छ जनपद के भुज शहर में विधायक द्वारा गोद लिए हुए इलाके (विस्तार) के लोगों से बात की. साथ ही जानने की कोशिश की कि यहां के किसान और मजदूरों की हालत कैसी है.

लोगों का कहना है कि उन्हें अभी तक कोई नेता या सरकारी अधिकारी उनका हालचाल जानने नहीं पहुंचा है. इस इलाके में अधिकार दिहाड़ी मजदूर रहते हैं. लॉकडाउन के बाद से उनके पास कोई काम नहीं है जिससे उनकी हालत बहुत चिंताजनक है.

यह भी पढ़ें- लॉकडाउन में अनलॉक हो गई है कालाबाजारी, गरीबों का राशन गबन कर रहे राशन डीलर

यह विस्तार भुज के विधायक आचार्य डॉ नीमाबेन भावेशभाई ने गोद लिया हुआ. वह यहां से 70 किलोमीटर दूर गांधीधाम में रहती हैं. हालांकि इस इलाके में कई स्वयंसेवी संस्थाएं लोगों की मदद कर रही हैं लेकिन सरकार की तरफ से इलाके की अनेदखी की जा रही है.

लोगों ने यह भी आरोप लगया है कि यहां से स्कूली बच्चों को दोपहर का भोजन नहीं मिल रहा है. उनका आरोप है कि स्कूली बच्चों को एक चिट्ठी थमाई गई थी जिसके मुताबिक उन्हें डेढ़ किलो गेहं और डेढ़ किलो चावल मिलने थे लेकिन इन्हें लेने के लिए 4 किलोमीटर दूर जाना पड़ रहा है. लॉकडाउन की वजह से वहां जाना बहुत मुश्किल है, सार्वजनिक परिवहन सेवा है नहीं और अगर कोई अपने वाहन पर जाता है तो उसे पुलिस जब्त कर लेती है. इसलिए इस दोपहर के भोजन को हासिल करना असंभव सा हो गया है.

यह भी पढ़ें- कैंसरग्रस्त पत्नी के इलाज के लिए 130 किमी पैदल चला पति, मगर मदद नहीं सिर्फ मीडिया माइलेज मिला

सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इस विस्तार में आंगनवाड़ी होने के बावजूद भी यहां दोहपर के भोजन के वितरण की कोई व्यवस्था नहीं की गई है यह भी कहीं ना कहीं सरकार की नीतियों पर सवालिया निशान खड़ा करता है.

मुश्किल में मजदूर

कच्छ जनपद में करीबन 350 कंपनियां हैं छोटी बड़ी मिलाकर इन कंपनियों में हजारों मजदूर काम करते हैं उन मजदूरों की हालत भी कोई अच्छी नहीं है सांगी सीमेंट के प्लांट में कई मजदूरों की हालत बहुत ही चिंताजनक है वहां के मजदूर उपेंद्र से बात करके हमने जाना कि उस विस्तार में छोटी बड़ी सब कंपनियों में मिलाकर 10 हजार के करीब मजदूर काम करते हैं.

इनमें से कुछ कंपनियों में काम करते हैं और कुछ ठेकेदारों के पास काम करते हैं जो ठेकेदारों के पास काम करते हैं उनके पैसे ठेकेदार के पास बकाया है और कंपनी ठेकेदार को पैसे देगी तब ही इन मजदूरों की पेमेंट होगी.

यह भी पढ़ें- पानीपत में प्रवासी मजदूरों का बुरा हाल, नहीं मिल रहा खाना, आर्थिक मदद का भी कुछ पता नहीं

हालांकि इन कंपनियों के मजदूरों की तरफ से शिकायत किए जाने के बाद यहां पर कुछ अधिकारियों ने दौरा किया लेकिन मजदूरों की हालत आज भी जस की तस बनी हुई है.

यह मजदूर अहमदाबाद की एक कंपनी के मुलाजिम हैं इसलिए सांगी सीमेंट ने कोई भी मदद करने से इंकार कर दिया और मजदूरों की हालत आज भी चिंताजनक बनी हुई है जबकि बीकेटी कंपनी में भी ठेकेदारों के पास काम करने वाले लोगों ने बताया कि हमारे पास भी कुछ संस्थाओं ने मदद की इसलिए कुछ दिनों का भोजन उपलब्ध है इसके बाद की स्थिति क्या होगी यह कोई भी मजदूर बताने की स्थिति में नहीं है.

किसानों की हालत बहुत खराब

वहीं गुजरात के किसानों की हालत भी काफी खराब है. गुजरात में रवि की फसल तैयार हो चुकी है परंतु उस फसल को निकालने के लिए किसानों के पास कोई व्यवस्था नहीं है. गेहूं और ज्वार की फसल ज्यादातर हार्वेस्टर मशीन से निकाली जाती है और ये मशीनें अधिकतर पंजाब और हरियाणा से आती हैं. लेकिन इस वर्ष पंजाब और हरियाणा से हार्वेस्टर मशीन ना आने से किसान अपने आप को बेबस महसूस कर रहे हैं.

फल और सब्जियों की खेती करने वाले किसानों की हालत कुछ अलग नहीं है. फल और सब्जियां कोई निकालने वाला नहीं है जिसकी वजह से कोई खरीददार भी नहीं है. पिछले साल सब्जियां 20 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकी थी लेकिन इस बार सब्जियां खरीदने वाला कोई नहीं है. ऐसे ही एक परेशान किसान हारुन भाई ने बताया कि उनके खेतों में 30 टन सब्जी पड़ी हुई है लेकिन इनको खरीदने वाला कोई नहीं है.

यह भी पढ़ें- पंजाब के गांवों में सिखों के बीच जातिगत भेदभाव को खत्म कर रहा कोरोना वायरस

किसान दयालाल भाई ने बताया कि उनकी भी समस्या यही है कि कटाई करने के लिए मजदूर आते थे वे सारे मजदूर होली की छुट्टियों में गए हुए थे होली के बाद कुछ हालात ऐसे हुए की मजदूर आ ही नहीं पाए और लोकडाउन होने की वजह से उनकी फसलें खेतों में ही पड़ी ही रह गई.

उन्होंने बताया कि इसका नुकसान यह होगा कि रबी की फसल निकालने में 1 माह की देरी हो जाएगी इसका मतलब यह है कि अगली फसल 1 माह के बाद बोई जाएगी और वह फसल जब तक पकेगी तब तक बारिश आ चुकी होगी यानी किसानों की यह फसल भी बर्बाद होगी और आने वाली दो फसलों पर भी इसका असर देखने को मिलेगा.

Next Story

विविध