कोरोना के कहर के बाद करोड़ों कर्मचारियों की इस कानून के तहत चली जायेगी नौकरी

Update: 2020-04-09 05:08 GMT

अगर 12 महीने की अवधि के दौरान कोई कर्मचारी 45 दिन से अधिक अवधि तक काम नहीं करता है तो 45 दिनों की समाप्ति के बाद उसे किसी प्रकार के मुआवजे का भुगतान नहीं किया जा सकता है....

दिल्ली, जनज्वार। किसी प्राकृतिक आपदा की स्थिति में कारोबार कुछ दिनों तक जारी रखन में लाचार नियोक्ता व कंपनी अपने कर्मचारियों की छंटनी कर सकती है।

द्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के प्रावधानों के अनुसार, अगर कर्मचारी 45 दिनों तक काम नहीं करता है तो नियोक्ता उसकी छंटनी कर सकता है।

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मौजूदा लॉकडाउन के दौरान माना जाता है कि कुछ महीनों तक व्यावसायिक गतिविधियां चालू नहीं हो पाएंगी और कुछ कंपनियां व प्रतिष्ठान अपना काम चालू नहीं कर पाएंगे।

यानी कोरोना से हुए लॉकडाउन के बाद जब भारत में बड़ी संख्या में उद्योग-धंधे प्रभावित हुए हैं तो लाखों—लाख लोग एक झटके में बेरोजगार हो जायेंगे। महामारी के बाद देश में जो सबसे बड़ी समस्या आयेगी वह होगी रोजगार की। खबरों के मुताबिक लॉकडाउन से 40 करोड़ से भी ज्यादा लोग प्रभावित होंगे। न केवल गरीब तबका बल्कि मध्यवर्ग और उच्च वर्ग भी इससे काफी हद तक प्रभावित होगा।

गुरुग्राम स्थित सेंट्रम स्ट्रेटजिक कंसल्टिंग के अनुपम मलिक ने कहा कि लगता है कि अगले पांच से छह महीने कारोबारी गतिविधियां आरंभ नहीं हो पाएंगी और उसके बाद धीरे-धीरे कंपनियों को पर्याप्त मुनाफा नहीं होगा।

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द्योगिक विवाद अधिनियम के तहत दिए कानूनी प्रावधानों व विकल्पों के अनुसार, अगर कोई नियोक्ता अपने कर्मचारी को प्राकृतिक आपदा के कारण काम नहीं दे पाता है तो ऐसी स्थिति में कर्मचारी को कार्य से मुक्त ही समझा जाता है। अधिनियम की धारा-2 (केकेके) के तहत इसे छंटनी की परिभाषा के तहत शामिल किया गया है।

लिक ने कहा कि मौजूदा हालात मे न तो कर्मचारी काम पर जा सकता है और न ही उनकी सुरक्षा का भरोसा दिलाया जा सकता है। जाहिर है कि नियोक्ता पर कर्मचारियों के स्वास्थ्य व सुरक्षा की जिम्मेदारी है। साथ ही ग्राहकों के प्रति भी उनकी जिम्मेदारी है।

न्होंने कहा कि इसलिए मौजूदा लॉकडाउन और कर्फ्यू में कर्मचारी को कार्यमुक्त माना जाता है।

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धिनियम के प्रावधानों के अनुसार, अगर 12 महीने की अवधि के दौरान कोई कर्मचारी 45 दिन से अधिक अवधि तक काम नहीं करता है तो उसे 45 दिनों की समाप्ति के बाद उसे किसी प्रकार के मुआवजे का भुगतान नहीं किया जा सकता है, बशर्ते इस प्रकार का करार नियोक्ता और कर्मचारी के बीच हो।

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत में लगभग 90 पर्सेंट वर्कफोर्स असंगठित अर्थव्यवस्था से ही जुड़ी है और कोरोना जैसे संकट में से इनमें से करीब 400 मिलियन यानी 40 करोड़ मजदूरों को बेरोजगारी और गरीबी के दलदल में फंसना पड़ सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना वायरस के लॉकडाउन के चलते बड़े पैमाने पर मजदूरों को नुकसान पहुंचा है और अपना रोजगार गंवाने के बाद ये लोग ग्रामीण इलाकों में पलायन कर चुके हैं।

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सी रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना महामारी के चलते पूरी दुनिया में 2020 की दूसरी तिमाही में 6.7 पर्सेंट वर्किंग आवर्स का नुकसान हो सकता है। बीते 75 सालों में अंतरराष्ट्रीय सहयोग की इस वक्त सबसे ज्यादा जरूरत है और सबसे बड़ी परीक्षा है। यदि एक देश भी फेल होता है तो पूरी दुनिया फेल हो जाएगी।’ उन्होंने कहा कि हमें वैश्विक समाज को मजूबत करने के लिए प्रयास करने होंगे।

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