नोटबंदी से क्या खोया क्या पाया पर होगी बहस, लोग रखेंगे अपने अनुभव , समाजवादी लोकमंच कर रहा है रविवार को रामनगर में कार्यक्रम
उत्तराखंड, रामनगर। 8 नवम्बर 2016 की रात शायद ही हममें से कोई भूल सकता है। जब हमारे देश के प्रधाननमंत्री ने टीवी, रेडियो पर आकर अपने ओजस्वी भाषण में काला धन, नकली नोट व आतंकवाद को जड़ों से मिटाने के लिए एक नई औषधि का ईजाद कर लिया था। और इस औषधि का नाम उन्होंने 500 व 1000 रु. के नोटों की बंदी को बताया था। इसके बाद 50 से भी अधिक दिनो तक 100 से भी अधिक देशवासियों ने बैंको के आगे लगी कतारों में अपना दम तोड़ दिया।
परन्तु इस सबके बावजूद भी देश का एक बड़ा हिस्सा यह समझता रहा कि हो सकता है उनके दिन बदलेंगे जो खुशी इस देश में उन्हें 70 सालों से नहीं मिली है, शायद हासिल कर लेंगे। अब असली सवाल यह है कि क्या नोटबंदी से आम आदमी के जीवन में कोई सकारात्मक बदलाव आया है, इस नोट बंदी से किसे लाभ पहुंचा है।
नोटबंदी के एक साल का मूल्यांकन करने पर हम देखते हैं कि नोटबंदी ने देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने की जगह पीछे धकेलने का काम किया है। देश का सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी की वृद्धि दर 7 से घटकर 5.7 प्रतिशत रह गयी। देश की 65 प्रतिशत 35 वर्ष से कम उम्र के लोगांे के भविष्य की बात करते हुए, सरकार ने 15 लाख लोगो को नोटबंदी के कारण रोजगार से बेदखल कर दिया गया।
8 नवम्बर 2016 से पूर्व 500 व हजार रु के नोटों के रुप मंे कुल 15.44 लाख रु की मुद्रा चलन में थी जिसमें से 15.28 लाख करोड़ रु. (लगभग 99 प्रतिशत) सरकार के खजाने में वापस जमा हो गये। मात्र 16 हजार करोड़ रु. ही सरकार के खजाने में जमा नहीं हो पाए। अब सवाल यह उठता है कि क्या देश के जमाखोरों भ्रष्टाचारियों के पास मात्र 16 हजार करोड़ रु का ही काला धन मौजूद है।
500 व हजार के नोटों के बदले नये नोटों को छापने में सरकार के 12 हजार करोड़ रु खर्च हो गये। लोगों के पास अब भी 500 व हजार के पुराने नोट बचे हुए हैं। सरकार यदि एक बार पुनः 3 दिन का समय पुराने नोटों को बदलने के लिए जनता को दे दे तो 16 हजार करोड़ रु में से ज्यादातर पुराने नोट सरकारी खजाने में जमा हो जाएंगे।
तो क्या नोटबंदी आय-व्यय के दृष्टिकोण से भी सरकार के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ है। तो क्या जाली नोटों व काले धन को लेकर सरकार के सभी अनुमान, पूर्वानुमान व अर्थशास्त्री फेल हो गये।
नोटबंदी के निर्णय के 5 दिन बाद गोवा में एक जनसभा में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था
‘‘मैने देश से सिर्फ 50 दिन मांगे हैं। 30 दिसम्बर तक मुझे मौका दीजिए यदि 30 दिसम्बर तक मेरी कोई कमी रह जाए, कोई गलती निकल जाए, मेरा कोई गलत इरादा निकल जाए, आप मुझे जिस चैराहे में खड़ा करेंगे, मैं खड़ा होकर के देश जो सजा करेगा सजा भुगतने के लिए तैयार हूं।...................मेरे देशवासियों आपने जैसा हिन्दुस्तान चाहा है मैं देने का वादा करता हूं।’’
परिणाम देश की जनता के सामने हैं जनता को मूल्यांकन करना चाहिए कि क्या नोटबंदी देश हित में थी। यदि नही तो ऐसे शासक को हमें सबक सिखाने के लिए आगे आना चाहिए जिसके एक गलत फैसले ने देश की जनता को तबाही बरबादी के रास्ते पर धकेल दिया। देश की जनता जब नोटबंदी से तबाह बरबाद हो रही थी जब देश के टाटा व महिन्द्रा जैसे पूंजीपति हर्षाेल्लास के साथ ताली बजाकर सरकार का समर्थन कर रहे थे। क्योकि मोदी सरकार ने उनकी अरबो-खरबो की सम्पत्ति पर अंगुली तक नहीं उठाई थी।
पिछले दिनों इंडियन एक्सपे्रस ने काले धन को लेकर खुलासा किया है कि देश 714 भारतीयों के नाम अरबों रु की दौलत विदेशों में रखे जाने के लिए पैराडाइज पेपर्स में सामने आए हैं। इस पर मोदी सरकार व समूचा विपक्ष ने चुप्पी साधी हुयी है। पिछले दिनों आॅक्सफाम ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि देश के मात्र 84 अरबपति घरानों के पास देश की कुल 58 प्रतिशत आबादी के पास मौजूद सम्मति के बराबर सम्पत्ति है। ऐसे में सवाल उठता है कि देश मंे कालाधन क्या मात्र 500 व हजार रु के नोट ही थे। क्या 84 अरबपति घरानों के पास मौजूद अरबों-खरबों की सम्पत्ति कालाधन नहीं है? क्या लोगों के पास बड़ी मात्रा में मौजूद चल-अचल सम्पत्ति कालाधन नहीं है?
इसी सब पर चर्चा करने के लिए रविवार 26 नवंबर को दिन में 11 बजे से एक जन संवाद कार्यक्रम का आयोजन शहीद पार्क, लखनपुर, रामनगर पर किया किया जा रहा है जिसका विषय है — नोटबंदी से उपजे सवालों का क्या है समाधान रखा गया है।