हाशिमपुरा नरसंहार में पीएसी जवानों ने फेंक दिया था 42 नौजवानों को मारकर मुरादनगर की गंग नहर और गाजियाबाद में हिंडन नहर में, पकड़े गए 50 में से सिर्फ 5 नौजवान किसी तरह जान बचाने में हुए थे कामयाब
वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट
मेरठ के हाशिमपुरा में 1987 में हुए नरसंहार मामले में बुधवार 31 अक्टूबर को दिल्ली हाईकोर्ट ने तीस हजारी कोर्ट का फैसला पलटते हुए सभी 16 आरोपी पीएसी के जवानों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए सभी दोषियों की ज़मानत भी ख़ारिज कर दी है और दोषियों पर 10 हज़ार का जुर्माना भी लगाया गया है।
गौरतलब है कि 31 साल पहले मई 1987 में मेरठ के हाशिमपुरा में 42 लोगों की हत्या कर दी गई थी। हाईकोर्ट ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय के 42 लोगों का नरसंहार लक्षित हत्या थी। पीड़ितों के परिवारों को न्याय के लिए 31 साल इंतजार करना पड़ा और आर्थिक मदद उनके नुकसान की भरपाई नहीं कर सकती।
इस मामले में 21 मार्च 2015 को निचली अदालत ने अपने फैसले में सभी 16 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था।अदालत ने कहा था कि अभियोजन पक्ष आरोपियों की पहचान और उनके खिलाफ लगे आरोपों को बिना शक साबित नहीं कर पाया।
ट्रायल कोर्ट के इस फैसले को यूपी सरकार, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और कुछ अन्य पीड़ितों ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। इसके अलावा भाजपा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भी याचिका दायर कर तत्कालीन मंत्री पी. चिदंबरम की भूमिका की जांच की मांग की थी। हाईकोर्ट ने सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की। मामले में 17 आरोपी बनाए गए थे, लेकिन ट्रायल के दौरान एक आरोपी की मौत हो गई थी।
दिल्ली हाईकोर्ट ने 6 सितंबर को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले में फैसला सुनाते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने सभी 16 जवानों को उम्रकैद की सजा सुनायी। मामले में 19 पीएसी जवानों को हत्या, हत्या का प्रयास, सबूतों से छेड़छाड़ और साजिश रचने की धाराओं में आरोपी बनाया था। 2006 में 17 लोगों पर आरोप तय किए गए। सुनवाई के दौरान दो आरोपियों की मृत्यु हो गई थी।
क्या था घटनाक्रम
फरवरी 1986 में केंद्र सरकार ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने का आदेश दिया, तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में माहौल गरमा गया था। इसके बाद 14 अप्रैल 1987 से मेरठ में धार्मिक उन्माद शुरू हुआ। कई लोगों की हत्या हुई, तो दुकानों और घरों को आग के हवाले कर दिया गया था। हत्या, आगजनी और लूट की वारदातें होने लगीं। इसके बाद भी मेरठ में दंगे की चिंगारी शांत नहीं हुई थी।
मई का महीना आते आते कई बार शहर में कर्फ्यू जैसे हालात हुए और कर्फ्यू लगाना भी पड़ा। जब माहौल शांत नहीं हुआ और दंगाई लगातार वारदात करते रहे, तो शहर को सेना के हवाले कर दिया गया था। इसके साथ ही बलवाइयों को काबू करने के लिए 19 और 20 मई को पुलिस, पीएसी तथा सेना के जवानों ने सर्च अभियान चलाया था।
हाशिमपुरा के अलावा शाहपीर गेट, गोला कुआं, इम्लियान सहित अन्य मोहल्लों में पहुंचकर सेना ने मकानों की तलाशी लीं। इस दौरान भारी मात्रा में हथियार और विस्फोटक सामग्री मिली थीं। सर्च अभियान के दौरान हजारों लोगों को पकड़ा गया और गिरफ्तार करके जेल भेज दिया था। इसी दौरान 22 मई की रात हाशिमपुरा कांड हुआ।
अप्रैल 1987 में मेरठ में दंगे पर काबू पाने के लिए पीएसी बुलाई गई थी, जिसे बाद में हटा लिया गया था।इ19 मई 1987 को फिर से दंगे भड़कने और 10 लोगों के मारे जाने के बाद कर्फ्यू लगाते हुए 30 कंपनी पीएसी की बुलाई गई थी। गुलमर्ग सिनेमा में आगजनी के बाद मृतकों की संख्या 22 पर पहुंच गई थी। 22 मई को मुस्लिम बहुल हाशिमपुरा मोहल्ले में प्लाटून कमांडर सुरेंद्र पाल सिंह के नेतृत्व में 19 पीएसी जवानों को भेजा गया था।
चश्मदीदों के मुताबिक 22 मई 1987 की रात सेना ने जुमे की नमाज के बाद हाशिमपुरा और आसपास के मुहल्लों में तलाशी, जब्ती और गिरफ्तारी अभियान चलाया था। उन्होंने सभी मर्दों—बच्चों को मुहल्ले के बाहर मुख्य सड़क पर इकट्ठा करके वहां मौजूद पीएसी के जवानों के हवाले कर दिया। हालांकि आसपास के मुहल्लों से 644 मुस्लिमों को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन उनमें हाशिमपुरा के 150 मुस्लिम नौजवान भी शामिल थे।
इन्हीं 150 में से 50 नौजवानों को पीएसी के ट्रक नंबर यूआरयू 1493 पर लाद दिया गया, जिस पर थ्री नॉट थ्री राइफलों से लैस पीएसी की 41वीं बटालियन के 19 जवान थे। इन जवानों ने सारे नौजवानों को मारकर मुरादनगर की गंग नहर और गाजियाबाद में हिंडन नहर में फेंक दिया। इन सभी लड़कों में से सिर्फ पांच ऐसे थे जो किसी तरह अपनी जान बचाने में कामयाब रहे थे।
इसी साल मुड़ा केस का रुख
दिल्ली हाईकोर्ट में एनएचआरसी की अपील पर केस का रुख इसी साल 28 मार्च को तब मुड़ा जब घटना के समय पुलिस लाइन में तैनात रणवीर सिंह विश्नोई पेश हुए और उसने तीस हजारी कोर्ट में अतिरिक्त साक्ष्य के तौर पर पुलिस की जनरल डायरी पेश की।
सेशन कोर्ट ने माना था कि हाशिमपुरा से पीएसी के ट्रक में 40.45 लोगों को अगवा किया गया था और इनमें से 42 लोगों को गोली मारकर मुरादनगर गंगनहर में फेंक दिया गया। कोर्ट में पेश जीडी में 22 मई 1987 की सुबह 7.50 बजे लिसाड़ी गेट थानांतर्गत पिलोखड़ी पुलिस चौकी पर पीएसी भेजे जाने, पीएसी के जवानों, शस्त्रों और गोलियों का ब्यौरा दर्ज था।
इसमें पीएसी के 17 जवानों सुरेंद्र पाल सिंह, निरंजन लाल, कमल सिंह, श्रवण कुमार, कुश कुमार, एससी शर्मा, ओम प्रकाश, समीउल्लाह, जयपाल, महेश प्रसाद, राम ध्यान, लीलाधर, हमवीर सिंह, कुंवर पाल, बुद्ध सिंह, बसंत वल्लभ और रामबीर सिंह के नाम थे।
1996 में दाखिल की गयी थी चार्जशीट
मामले में आरोप पत्र साल 1996 में गाजियाबाद के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष दाखिल किया गया था। जनसंहार के पीड़ितों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मामले को सितंबर 2002 में दिल्ली स्थानांतरित कर दिया। यहां की तीसहजारी सत्र अदालत ने जुलाई 2006 में आरोपियों के खिलाफ हत्या, हत्या के प्रयास, सबूतों से छेड़छाड़ तथा साजिश का आरोप तय किया था। 2015 में इस नरसंहार पर फैसला आया था और निचली अदालत ने सभी 16 आरोपियों को सबूत के अभाव में संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया था।