'आये ऋतु राज आपे आये...' दिल्ली में

Update: 2018-08-09 12:43 GMT

औढव जाति के इस राग के आरोह में गंधार एवं धैवत वर्जित रहते हैं और ऋषभ एवं धैवत कोमल, माध्यम तीव्र व शेष शुद्ध स्वर लगते हैं...

दिल्ली। रज़ा फाउंडेशन के तत्वावधान में ‘आरम्भ 9’ के अंतर्गत दो दिवसीय आयोजन के पहले दिन 8 अगस्त को नयी दिल्ली के ऐलियेंस फ्रांसिस सभागार में भोपाल घराने के युवा सरोद वादक उस्ताद आमिर खान का सरोद वादन एवं जयपुर घराने की युवा कत्थक नृत्यांगना निष्ठा बुद्धालाकोटी की एकल प्रस्तुति का आयोजन किया गया।

रज़ा फाउन्डेशन साहित्य, कला और संगीत के क्षेत्र में युवाओं के प्रतिनिधित्व को लेकर एक विश्वसनीय संस्था के रूप में सामने आया है। इसके द्वारा आरम्भ कार्यक्रम भारतीय शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य के क्षेत्र में युवाओं को प्रतिनिधित्व देने के लिए सितम्बर 2017 में नयी दिल्ली के त्रिवेणी कला संगम के साथ किया गया था। यह कार्यक्रम इसकी नौवीं कड़ी है।

पहले दिन के कार्यक्रम का आरम्भ युवा सरोद वादक उस्ताद आमिर खान द्वारा राग श्री के अवतरण से हुआ। उस्ताद आमिर खान ने सरोद की शिक्षा अपने दादा चर्चित सारंगी वादक उस्ताद लातिफ़ खान और सरोद वादक उस्ताद रहमत अली खान से तथा अपने बड़े भाई उस्ताद सरवर हुसैन एवं चाचा फारूख लतिफ़ खान से लिया है।

सबसे पहले उस्ताद आमिर खान ने आलाप, जोड़, झाला तथा बाद में विलंबित एवं द्रुत तीन ताल में इस राग के स्वरूप को खड़ा किया। राग श्री पूर्वी ठाट का प्राचीन राग है। यह वक्रता लिए हुए एक मींड प्रधान राग है। इस राग का वादी ऋषभ एवं संवादी पंचम है। इस राग का विस्तार ऋषभ को केंद्र में रखकर किया जाता है। औढव जाति के इस राग के आरोह में गंधार एवं धैवत वर्जित रहते हैं और ऋषभ एवं धैवत कोमल, माध्यम तीव्र व शेष शुद्ध स्वर लगते हैं। उस्ताद आमिर खान का तबला पर पंडित मिथिलेश झा ने साथ दिया।

कार्यक्रम के दूसरे हिस्से में जयपुर घराने की युवा नृत्यांगना निष्ठा बुद्धालाकोटी ने कत्थक की प्रस्तुति दी। निष्ठा मुल्ला अफसर खान एवं प्रेरणा श्रीमाली की शिष्या हैं। निष्ठा बुद्धालाकोटी ने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत ध्रुव-पद शैली में अष्टमंगल ताल में किया, जिसके बोल ‘आये ऋतु राज आपे आये’ था तथा अपने प्रस्तुति की समाप्ति मीरा के पद ‘सोवत ही पलका में मैं तो पलक लगी’ पर ठुमरी शैली में भाव-नृत्य के साथ किया।

निष्ठा ने अपने कत्थक नृत्य में नृत, ठाठ, आमद, सलामी, कवित्त, परन, परमेलु, गत, लड़ी, तिहाई और नृत्य का भरपूर उपयोग किया। उन्होंने अपने घराने के रिवायत के अनुसार विलंवित में गत, घुंघरुओं की जुगलबंदी, शक्तिशाली ततकार, कई चक्कर एवं ताल में जटिल रचनाओं का प्रयोग किया।

इनके साथ तबला पर उस्ताद शकील अहमद खान, सारंगी पर उस्ताद नासिर खान, बोल-पढंत पर सुश्री शिवानी शर्मा, हारमोनियम और गायकी पर पंडित संतोष सिन्हा तथा पखावज पर उस्ताद सलमान वारसी ने संगत किया।

Tags:    

Similar News