बीवी के साथ जबरन अप्राकृतिक यौन संबंध बनाना तलाक का मजबूत आधार : कोर्ट

Update: 2019-05-28 15:33 GMT

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आधुनिक जीवन शैली में इंटरनेट, नये मोबाईल फोन, लैपटॉप पर पोर्न की सहज उपलब्धता से भारतीय समाज के एक वर्ग में विकृत सेक्स की मानसिकता घर करती जा रही है। इसी तरह का गाज़ियाबाद का एक मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष आया है....

वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट

क्या किसी वहशी पति के साथ कोई पत्नी जीवन यापन कर सकती है? क्या विवाह के नाम पर किसी पति को पत्नी के साथ उसकी मर्जी के खिलाफ अप्राकृतिक सेक्स, गुदा मैथुन, मौखिक सेक्स और प्रकृति के खिलाफ सेक्स की इजाजत दी जा सकती है? क्या ऐसे पति के साथ कोई पत्नी रह सकती है, जो रोज उसकी बेटी के साथ वही सब करने की धमकी देता हो, जो वह अपनी पत्नी के साथ आए दिन जबरन करता हो? इन सबका जवाब है नहीं, नहीं और नहीं।

आधुनिक जीवन शैली में इंटरनेट, नये मोबाईल फोन, लैपटॉप पर पोर्न की सहज उपलब्धता से भारतीय समाज के एक वर्ग में विकृत सेक्स की मानसिकता घर करती जा रही है। इसी तरह का गाज़ियाबाद का एक मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष आया है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अप्राकृतिक सेक्स, गुदा मैथुन, मौखिक सेक्स और प्रकृति के खिलाफ सेक्स किसी महिला, पत्नी या अन्य की मर्जी के खिलाफ करना एक आपराधिक अपराध ही नहीं है बल्कि वैवाहिक अत्याचार या अनैतिक भी है और यह एक महिला के खिलाफ क्रूरता करने के समान है, जो किसी शादी को खत्म करने के एक उचित आधार है। ऐसी कोई भी बात जो पत्नी का अनादर करती है, उसके शारीरिक व मानसिक तौर पर पीड़ा पहुंचाती है। यह पीड़ा क्रूरता है। जबरन सेक्स, अप्राकृतिक या प्राकृतिक, एक पत्नी की निजता में अवैध घुसपैठ या अनुचित हस्तक्षेप है, जो उस पर किए जाने वाली क्रूरता के समान है।

संजीव गुप्ता बनाम रितु गुप्ता प्रथम अपील 296 /2018 में तलाक की डिक्री की पुष्टि करते हुए जस्टिस शशिकांत गुप्ता और जस्टिस प्रदीप कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने कहा कि एक आपराधिक अपराध होने के अलावा गुदा मैथुन या सोडोमी और अप्राकृतिक सेक्स का कार्य भी एक वैवाहिक अत्याचार या अनैतिक है और तलाक मांगने का आधार भी है।

खंडपीठ ने माना है कि जबरन सेक्स, अप्राकृतिक या प्राकृतिक, पत्नी की गोपनीयता में एक अवैध घुसपैठ या अनुचित हस्तक्षेप है और यह उस पर क्रूरता करने के समान है। खंडपीठ ने एक जिला अदालत के आदेश को उचित ठहराया है, जिसमें एक पत्नी द्वारा दायर तलाक की अर्जी को स्वीकार कर लिया गया था।

गौरतलब है कि प्रतिवादी-याचिकाकर्ता पत्नी ने विवाह विच्छेद हेतु हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (1) के तहत तलाक की मांग करने वाली याचिका दायर किया था। प्रतिवादी-याचिकाकर्ता ने कहा है कि दोनों की 01 जुलाई 2012 को हिंदू रीति-रिवाज और परंपरा के अनुसार आर्य समाज मंदिर, आर्यनगर गाजियाबाद में शादी हुई।

स्वागत समारोह होटल कंट्री-इन, साहिबाबाद, गाजियाबाद में भी आयोजित किया गया था। सब-रजिस्ट्रार से पहले 02 जुलाई 2012 को विवाह पंजीकृत किया गया था, शादी में पर्याप्त दहेज दिया गया था। जानकारी के मुताबिक पहले पीड़िता महिला प्रियंबदा की ओंकार चावला के साथ शादी हुई थी, जिनसे दो बच्चे पैदा हुए। बड़ा बेटा एकांश है और छोटी बेटी खुशी है। पर एक सड़क दुर्घटना में उनके पति ओंकार चावला की मृत्यु हो गई। उसके बाद उसने दूसरी शादी की।

अपीलकर्ता के साथ शादी से पहले-विपरीत पार्टी यानी प्रियंबदा ने बताया था कि उसके दो बच्चे हैं और अगर वह उन्हें स्वीकार करता है, तो ही वह शादी करेगी। शुरुआत में वह सहमत नहीं था और उसने शादी करने से इनकार कर दिया, लेकिन उसके बाद उसने उसे विश्वास में लिया कि वह उसके दोनों बच्चों को स्वीकार करेगा। उसने दोनों बच्चों को चंडीगढ़ के द ब्रिटिश स्कूल में दाखिला करा दिया। इससे उसकी पत्नी को विश्वास हो गया कि उसके पति ने उसके दोनों बच्चों को स्वीकार कर लिया है।

शादी के रिसेप्शन की समाप्ति के बाद दोनों एक ही होटल के एक कमरे में और दूसरे कमरे अपीलकर्ता-विपरीत पार्टी के पिता और उनके मित्र सोनारिया रुके। पति के पिता ने उसके आभूषण और उपहारों को सुरक्षित रखने के नाम पर ले लिया। उसके पति ने शादी की रात उससे बहुत ही क्रूर तरीके से व्यवहार किया और अप्राकृतिक सेक्सके लिए उसे मजबूर किया और उसके साथ जानवर से भी बदतर अशिष्ट और अमानवीय तरीके से शारीरिक संबंध बनाया।

इससे खून बहने लगा और उसे बहुत दर्द महसूस हुआ। 02 जुलाई 2012 को पत्नी की बहन की शादी में भाग लेने के बाद दोनों अपने कमरे में गए और फिर पति ने अप्राकृतिक सेक्स का प्रयास किया और जब उसने मना किया तो उसको चरित्रहीन बता कर उससे मारपीट की और एक बार फिर अप्राकृतिक यौन संबंध बनाये। 03 जुलाई 2012 को दोपहर में महिला के परिजन उससे मिलने उसके घर आये तो उसने तब उसने उन्हें इस बारे में बताया तो वे उसे वापस अपने पैतृक घर गाजियाबाद लेकर चले गये।

इस मामले में लड़के के पिता ने अपने लड़के का ही पक्ष लिया। इसके बाद वह सोनारिया और मनोज के साथ अपने दोस्तों के साथ आये और उसे घर चलने और समझौते करने के लिए कहने लगे। लेकिन उसने कहा कि वह तभी उसके साथ जाएगी जब वह उसके साथ अप्राकृतिक यौन संबंध नहीं बनाएगा, न ही वह उसके साथ क्रूरता करेगा।

17 जुलाई 2012 को पति से समझौते के बाद वह उसके साथ चली गयी, लेकिन उसका व्यवहार नहीं बदला और एक दिन उसके पति ने यह धमकी दी कि तुमने मना किया तो मैं तुम्हारी बेटी के साथ वही सब करूंगा जो तुम्हारे साथ करता हूँ। शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न और यौन शोषण के कारण वह 14 अगस्त 2012 को वह अपने माता-पिता का घर वापस चली आई।

इस घटना के बाद उसे पता चला कि उसका पति अपनी पिछली पत्नी के साथ भी ऐसा ही अमानवीय और क्रूर व्यवहार करता था, इसलिए पहली पत्नी ने तलाक ले लिया था। इसके बाद उसने 9 अगस्त को अपने पति के खिलाफ 498ए, 323, 504, 377 भारतीय दंड संहिता तथा 3⁄4 दहेज कानून के तहत एफआईआर दर्ज़ करा दी। उसके अमानवीय व्यवहार को देखते हुए, उसके साथ जीना संभव नहीं था। उसके साथ उसके जीवन को खतरा था, इसलिए तलाक के लिए याचिका दायर करना पड़ा।

खंडपीठ ने केरल हाईकोर्ट द्वारा बीनी टी. जोन बनाम साजी कुरूविला नामक मामले में दिए गए फैसले का हवाला दिया, जिसमें माना गया था कि प्रकृति के खिलाफ सेक्स करना, गुदा मैथुन, अप्राकृतिक सेक्स, मौखिक सेक्स एक वैवाहिक अत्याचार व अनैतिक है और विवाह के विघटन का एक आधार भी।यह भी कहा गया है कि वैवाहिक मामलों में आवश्यक प्रमाण का मानक वही है जो किसी सिविल मामले में आवश्यक है।

तलाक की डिक्री की पुष्टि करते हुए कोर्ट ने कहा कि एक आपराधिक अपराध होने के अलावा गुदा मैथुन या सोडोमी और अप्राकृतिक सेक्स का कार्य भी एक वैवाहिक अत्याचार या अनैतिक है और तलाक मांगने का आधार भी है।

इसके पहले इसी तरह के एक अन्य मामले में जून 2018 को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस एमएम एस बेदी और जस्टिस हरिपाल वर्मा की खंडपीठ ने फैसला दिया था कि विवाह में ‘जबरन सेक्स’ या फिर ‘सेक्स के अप्राकृतिक जरिये को अपनाना और उसे अपने साथी पर थोपना’ तलाक लेने के लिए वैध आधार हैं। अदालत ने इसके साथ ही बठिंडा की एक महिला द्वारा तलाक के लिए दी गई अर्जी को स्वीकार कर लिया था। चार साल पहले एक निचली अदालत ने महिला की तलाक की याचिका को खारिज कर दिया था और कहा था कि इसे साबित करने के लिए कोई मेडिकल साक्ष्य मौजूद नहीं है।

फैसले में कहा था कि महिला द्वारा लगाये गये आरोप बेहद गंभीर हैं, लेकिन इस घटना को पुष्ट करने वाले कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है, क्योंकि सोडोमी अथवा अप्राकृतिक सेक्स या फिर ओरल सेक्स, जो कि जबरन तरीके से विषम परिस्थितियों में होते हैं, जिन परिस्थितियों का ना तो कोई गवाह बन सकता है और न ही इन्हें मेडिकल साक्ष्यों द्वारा सिद्ध किया जा सकता है।

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