मोदी सरकार के चौथे साल में पहुंचा विदेशी निवेश सबसे निचले स्तर पर

Update: 2018-07-02 06:53 GMT

प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्राओं की हकीकत सामने है, क्योंकि इससे पहले जब—जब उनके विदेश यात्राओं पर सवाल उठते थे तो भाजपा समर्थक और भक्त कहते थे कि विदेशी निवेश बढ़ाने के लिए वे ऐसा करते हैं, मगर अब आंकड़े सच बयां कर रहे हैं...

जनज्वार, दिल्ली। प्रधानमंत्री मोदी जब भी विदेश यात्रा पर जाते थे और आम जन जब उनकी विदेश यात्राओं को बेमतलब का कहता था थे तो भक्त कहते थे कि मोदी जी विदेशी निवेश को आकर्षित करने जाते हैं, उनकी यात्राओं से विदेशी निवेश बढ़ रहा है, पर अब चौथे साल में हालात सामने हैं और आंकड़े लोगों की जुबान पर।

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देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बीते वित्त वर्ष 2017—18 के बीच अपने सबसे निचले स्तर पर रहा, जो पिछले पांच वर्षों में सबसे कम है। औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग 'डीआईपी' जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार इस वर्ष मार्च तक विदेशी निवेश महज तीन फीसदी विकास दर के साथ 4,485 करोड़ डॉलर (2.9 लाख करोड़ रुपये से थोड़ा ज्यादा) रह गया है।

इसके उलट रिपोर्ट के मुताबिक ही भारतीय निवेशकों द्वारा अन्य देशों में किया गया निवेश 1,100 करोड़ डॉलर के साथ दुगुने से ज्यादा पहुंच गया है।

वित्त वर्ष 2016-17 में देश में एफडीआइ यानी विदेश निवेश की विकास दर 8.67 थी, तो वित्त वर्ष 2013-14 में यह दर आठ फीसद, वित्त वर्ष 2014-15 में 27 फीसद और 2015-16 में 29 फीसद थी।

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युनाइटेड नेशंस कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट (अंकटाड) ने भी अपनी एक हालिया रिपोर्ट में कहा था कि वित्त वर्ष 2016 के 4,400 करोड़ डॉलर एफडीआइ के मुकाबले वर्ष 2017 में एफडीआइ आवक घटकर मात्र 4,000 करोड़ डॉलर रह गई।

विशेषज्ञों की राय में अर्थव्यवस्था की स्थिति किसी देश में एफडीआई के विस्तार को दर्शाती है। पिछले कुछ सालों में जिस तरह घरेलू निवेश दर में गिरावट दिख रही है अब एफडीआई के हालात भी उसी राह पर हैं। विदेशी निवेश को बढ़ाने के लिए सरकार को सबसे पहले घरेलू निवेश को प्रोत्साहन देना होगा। उसके बगैर विदेशी निवेश में उछाल के सिर्फ दावे किए जा सकते हैं, उन्हें हकीकत में बदलना असंभव है।

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