गुजरात में 'स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' के लिए 14 गांव के आदिवासियों को किया जा रहा बेदखल
सरकार ने आदिवासी जमीन संरक्षण के लिये बनाये नियम खत्म कर दिये हैं, अलग से स्टेट्स ऑफ यूनिटी एरिया डिव्लेपमेंट एंड टूरिज्म गर्वेनेस एक्ट 2019 के बनाया गया....
जनज्वार ब्यूरो। कई बार विस्थापन का दंश झेलने वाले गुजरात के आदिवासी एक बार फिर विस्थापन होने के कगार पर है। उनकी खेती बाड़ी की जमीन पर सरकार की नजर है। स्टेच्यू ऑफ यूनिटी जब उम्मीद के मुताबिक पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाया तो गुजरात सरकार ने इस क्षेत्र को पर्यटकों के बीच में लोकप्रिय बनाने के लिए यहां इलाका पर्यटन क्षेत्र के तौर पर विकसित करने का निर्णय लिया है।
इसके लिये केवडिया और नर्मदा जिले के छह पंचायतों की 12 एकड़ जमीन का अधिगृहण करने की योजना सरकार ने बनायी है। यह जमीन आदिवासियों है। अभी तक आदिवासियों को कानून के तहत भूसंरक्षण मिला हुआ था। लेकिन गुजरात सरकार ने स्टे्टस ऑफ यूनिटी एरिया डिव्लेपमेंट एंड टूरिज्म गर्वेनेस एक्ट 2019 बना कर आदिवासी की शेड्यूल के तहत संरक्षित जमीन के अधिग्रहण तैयारी कर ली है।
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जमीन अधिग्रहण का विरोध कर रहे भारतीय ट्राइबल पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राज बसावा ने बताया कि सरकार की योजना है कि नर्मदा ओर केवडिया जिले की छह पंचायतों की जमीन को अधिग्रहण कर इस इलाके को पर्यटन के तौर पर विकसित किया जाये।
उन्होंने बताया कि इस अधिग्रहण से उन्हें दिक्कत यह है कि एक तो गुजरात ने बहुत ही सोची समझी चाल के तहत आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल करने की कोशिश की है। दूसरा जो अधिनियम लागू किया इससे आदिवासियों के जमीन के हक को सुरक्षित रखने वाला शेड्यूल ही खत्म कर दिया है। यह सरसकार की सरासर गलत नीति हैं।
उन्होंने बताया कि सरकार कोठी पंचायत के तहत आने वाले गांव भूमालिया, गटाभानिया, केवड़िया ओर कोठी गांव की करीब 5145 हेक्टेयर जमीन, वगाड़िया गांव की 486,लिमड़ी पंचायत के तहत आने वाले गांव लिमड़ी और नवा फाम की 950 हेक्टेयर, गौरा गांव की 922, इन्दिरावरना पंचायत के पांच गांव बोरिया, इन्दिरावरना, मोटा पिपारिया, नैना पिपारिया व वसंत पारा की 1650 हेक्टेयर जमीन गुरुदवेस्वर गांव की 1126 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहण की जानी है।
उन्होंने बताया कि अधिग्रहण की जाने वाली इस कुल 10,279 हेक्टेयर जमीन में 20 हजार लोगों की रोटी चल रही है। अब यदि इनके हाथ से जमीन छीन ली तो यह खायेंगे क्या?
उन्होंने बताया कि सरकार मुआवजे की बात करती है, लेकिन सवाल यह है कि सरदार सरोवर बांध के विस्थापितों को अभी तक पूरा मुआवजा मिला क्या? इससे भी बड़ी बात तो यह है कि मुआवजा इस समस्या का समाधान नहीं है। पहले सरदार सरोवर बांध के लिये जो जमीन अधिग्रहण की थी, उसके विस्थापित आज किस हाल में है? क्या सरकार के पास इसका जवाब है।
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ग्रामीणों को गुस्सा इस बात को लेकर भी है कि सरकार ने बहुत ही सोची समझी रणनीति के तहत काम किया। जब देश भार में कोरोना को लेकर लॉकडाउन किया, इसके बाद गुजरात सरकार ने इस जमीन का कब्जा लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी।
यह तो ग्रामीणों के साथ अन्याय है। क्योंकि इस हालात में यदि ग्रामीण विरोध के लिए एकजुट होते हैं तो प्रशासन उनके खिलाफ महामारी अधिनियम के तहत मामला दर्ज क सकता है। यह अलग बात है कि ग्रामीणों ने प्रशासन की कार्यवाही का विरोध किया। उनकी आवाज को दबाने के लिये वहां ग्रामीणों की कुल संख्या की तीन से चार गुणा पुलिस फाेर्स वहां तैनात कर दी गयी।
ग्रामीणों ने बताया कि सरकार उन्हें हाशिये का आदमी मानती है। यहीं वजह है कि सरदार सरोवर बना तो उनकी जमीन पर है, लेकिन वह इस सरोसर से सिचांई का पानी तो दूर की बात पीने के लिये भी पानी नहीं ले सकते हैं। पानी की रखवाली के लिये पुलिस तैनात की गयी है। इससे ज्यादा और अन्याय क्या होगा उनके साथ? ग्रामीणों ने सवाल किया।
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राज बसवा ने बताया कि जो जमीन सरकार चाह रही है, दरअसल वह जमीन बहुत ही हरियाली है। यहां अच्छा खासा हरित क्षेत्र है, सरकार की सोच है कि यह पर्यटन के लिए बहुत ही उपयोगी जमीन साबित हो सकती है। इतना ही नहीं आगे चल कर सरकार यहां बड़े बड़े निर्माण भी कर सकती है। उन्होंने बताया कि यह आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल करने की एक कोशिश है। यहीं वजह है कि वह इसका लगातार विरोध कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि हम विकास का विरोध नहीं कर रहे हैं। लेकिन विकास सिर्फ एक वर्ग विशेष ही क्यों हो रहा है? आदिवासी भी तो इसी देश के नागरिक है। उनके लिये विकास क्यों नहीं। आखिर विकास के लिये उन्हें ही क्यों बार बार बेदखल होना पड़ता है?