फर्जी प्रमाण पत्र जारी करने के खिलाफ 20 दिनों से धरने पर हैं गुजरात के आदिवासी
अनुसूचित जनजाति के फर्जी प्रमाण पत्र जारी करने के विरोध में गांधीनगर में धरने पर बैठे हैं आदिवासी, प्रमाण पत्रों को खारिज करने की मांग...
जनज्वार। गुजरात सरकार के द्वारा असंवैधानिक तरीके से अनुसूचित जनजाति (ST) के फर्जी प्रमाण पत्र जारी करने के खिलाफ पिछले 20 दिनों से राजधानी गांधीनगर में समस्त प्रदेश के आदिवासी समाज के लोग धरने पर बैठे हैं। 1956 में राष्ट्रपति के आदेश के अनुसार गुजरात राज्य के गिर, आलेच और बरड़ा के जंगलों के (देहाती पड़ाव) में रहने वाले भारवाड़, चारण और रबारी समुदाय के 480 परिवारों की पहचान करके उनको अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया था।
आदिवासी समाज ने शिकायत की है कि राज्य सरकार ने आरक्षण के दायरे को गलत तरीके से बढ़ा दिया है और इसका लाभ उन लोगों को दिया जा रहा है जो 1956 में चिन्हित समूहों में नहीं आते हैं। ऐसे एसटी प्रमाण पत्र जारी करने से वंचितों में कोटा का दायरा बढ़ जाता है। राज्य सरकार ने सौराष्ट्र में गीर, बरड़ा और आलेच के घर के बाहर रहने वाले व्यक्तियों को एसटी प्रमाणपत्र जारी किए।
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1956 में अधिसूचित क्षेत्र के रहने वाले मात्र 450 परिवारों को यह दर्जा दिया गया था लेकिन वर्तमान समय में पूरे गुजरात में 1991 से लेकर 2019 तक गुजरात सरकार ने गैर कानूनी तरीके से लगभग 1 लाख से भी अधिक भरवाड़, रेबारी, चारण समुदायों के लोग जो गिर, बरड़ा और आलेच के जंगल विस्तार से बाहर रहते हैं उनको गैरकानूनी तरीके से एसटी के प्रमाण पत्र जारी कर दिए गए हैं।
जिसके खिलाफ पूरे गुजरात प्रदेश का आदिवासी समुदाय अहिंसात्मक तरीके से धरने पर बैठे हैं। इन प्रदर्शन करने वाले आदिवासियों की मांग है कि गलत तरीके से जो एसटी के प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं उनको तुरंत प्रभाव से खारिज किए जाए।
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आदिवासियों का कहना है कि अगर गुजरात सरकार 26 फरवरी 2020 तक इसका समाधान नहीं करती है तो इस आंदोलन को व्यापक रूप दिया जाएगा।
आदिवासी समाज की ओर से केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को लिखा गया पत्र
आदिवासियों की इस मांग को लेकर कई विधायकों और सांसदों ने राज्य सरकार और केंद्र सरकार को अवगत कराया है लेकिन उस पर अभी किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं की गई है। आदिवासी समाज ने इस मामले को लेकर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को भी पत्र भेजा है।
आदिवासी समाज की ओर से अनुसूचित जनजाति की सूची से रबारी, भारवाड़ और चारवाण के आदिवासियों को हटाए जाने के संबंध में केंद्रीय आदिवासी मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा को भी पत्र भेजा गया है।