गुजरात से लेकर यूपी तक हुआ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण, विकास गया तेल लेने

Update: 2017-11-24 08:52 GMT

विकास का हिसाब मांगने से मुश्किल में फंसी भाजपा को अब गुजरात में राहत लग रही है और घलुआ में यूपी भी मिलता दिख रहा है, क्योंकि अब सीन में विकास नहीं सांप्रदायिकता है...

जनज्वार। विकास की बंदूक से सांप्रदायिकता की गोली दागने वाली भाजपा फिर एक बार सफल होती दिख रही है। उसने इस बार सभी दलों को पदमावती बनाम खिलजी के खेल में ऐसा फंसाया है कि लोग न यूपी के नगर निगम चुनाव में पानी, सड़क, सफाई की बात कर रहे हैं और न ही नोटबंदी व जीएसटी से त्रस्त गुजरात में विकास के 'पापा' से हिसाब से मांग रहे हैं।

भाजपा ने बड़ी तैयारी के साथ अपनी चाहत के मुताबिक सभी दलों को पदमावती के शो में ला पटका है। आप विरोध करें या समर्थन, पर आपको पदमावती पर बोले बिना कोई रहने देने वाला नहीं है। बीते 2017 यूपी चुनावों में भाजपा जिंदा लोगों के लव जेहाद के किस्से ले आई थी, अबकी वह मरे हुए साहित्यिक—ऐतिहासिक पात्रों के भरोसे गुजरात विधानसभा और यूपी नगर निकाय चुनावों को पार कर जाना चाहती है। और वह सफल होती भी दिख रही है।

पदमावती का पूरा विवाद ही हिंदू महिला और मुस्मिल मर्द के आसपास लाकर खड़ा कर दिया गया है, इसलिए आम हिंदू इसको इसी रूप में देख रहा है और इसमें भाजपा चैंपियन है। वह बिना किसी बहस मुबाहिसे में पड़े इस बात को लोगों में पैठाने में सफल रही कि हिंदू लड़की, हिंदू औरत की इज्जत का मखौल उड़ाया गया है, उसकी इज्जत को इसमें तार—तार किया गया है।

ऐसा कर बीजेपी ने हिंदू मुस्लिम को आमने सामने ला खड़ा किया है। नोटबंदी और जीएसटी जैसे मुदों को भाजपा ने पदमावती के शगूफे से ढक दिया और पूरा देश पदमावती के पक्ष और विपक्ष में खड़ा होता दिख रहा है। कोई पदमावती की महानता गा रहा है तो कोई खिलजी के साथ हुए अन्याय को तीर लिए उड़ रहा है।

यूपी के नगर निकाय के चुनावों जहां ज्यादातर जगह पर भाजपा का राज है वहां वह फिर से अपना राज दोहरा सकती है क्योंकि नाली, पानी, सफाई, बिजली, सड़क आदि सवाल बहुत मामूली और हाशिए के हो गए हैं और फिल्म 'पदमावती' का विमर्श लोगों का सबसे पसंदीदा विषय बना हुआ है।

भाजपा ने कहा है कि वह गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा में 'पदमावती' को रिलीज नहीं होने देगी। अगर फिल्म रिलीज भी होगी तो उस पर कुछ शर्तें लागू होंगी।

महंगाई, जीएसटी, नोटबंदी को लेकर भाजपा उन्नीस दिख रही थी, लेकिन पदमावती और मुलायम सिंह के बयान ने उसे संजीवनी दी है। हिंदू —मुस्लिम सांप्रदायिकता के मसले पर वो हमेशा बीस पड़ी है, बीस पड़ेगी। चाहे कोई कितने तरह का ज्ञान बघार ले या फिर तथ्यों को लाकर चौराहे पर ही क्यों न बेचने लगे?

खैर! सपा ने भी इस सांप्रदायिकता को हवा देने का ही काम किया। 22 नवंबर कोअपने 78वें जन्मदिन पर यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने फिर दोहराया कि हां, हमने कारसेवकों को गोली मरवाई, जरूरत पड़ती तो और की जान लेते। कारसेवक वो हैं जो आरएसएस से जुड़े कार्यकर्ता थे, जिन्हें 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के दौरान गोली मारी गयी थी।

इसने पदमावती विमर्श से उभरे हिंदू बनाम मुस्लिम ध्रुवीकरण को और बल दिया है। वैसे भी मुलायम जबसे बेटे से अलग हुए हैं वह भाजपा के स्लीपर सेल की तरह काम करते हैं। वह हमेशा कुछ ऐसा करते हैं जिससे भाजपा को फायदा हो।

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