गुजरात में बढ़ रही छोटे व्यापारियों की आत्महत्या की घटनाएं

Update: 2019-01-02 07:28 GMT

टॉप 5 अमीरों की लिस्ट में गुजरातियों का नाम देखकर धोखा मत खाइए कि मोदी का गृहराज्य गुजरात व्यापारियों के लिए स्वर्ग है, एक दूसरी तस्वीर भी है कि यह राज्य छोटे व्यापारियों का मरघट बन चुका है। छोटे व्यापारी परिवार समेत आत्महत्या करने को अभिशप्त हैं...

सुशील मानव की रिपोर्ट

गुजरात मॉडल का हौव्वा खड़ा करके विकास को देश की 130 करोड़ आबादी पर थोप दिया गया, जिसने देश की सामाजिक सौहार्द्र, सहिष्णुता, भाईचारा, आपसी भरोसा, देश की अर्थव्यवस्था को नेस्तनाबूत कर दिया। उस गुजरात मॉडल की हकीकत सामने आने लगी है।

यूनीसेफ की बच्चों पर सर्वे में गुजरात के बच्चे सबसे ज्यादा कुपोषित और कम वजन के पाये गये हैं। दूसरी ओर हाल ही में फोर्ब्स इंडिया ने भारत के 100 अमीर लोगों की लिस्ट जारी की है। इस लिस्ट में देश के पांच सबसे बड़े अमीर लोग गुजरात के हैं। इनमें रिलायंस ग्रुप के मुकेश अंबानी, सन फार्मा के दिलीप संघवी, अडानी समूह के गौतम अडानी, विप्रो के अजीम प्रेमजी और शपूरजी पलोंजी ग्रुप के पलोंजी मिस्री के नाम हैं।

टॉप फाइव अमीरों की लिस्ट में गुजरातियों का नाम देखकर कहीं आप ये धोखा न खा जायें कि गुजरात व्यापारियों के लिए स्वर्ग है तो जरा रुकिए। मैं आपको एक दूसरी तस्वीर भी दिखाता हूँ, जिसमें गुजरात छोटे व्यापारियों का मरघट बन चुका है। छोटे व्यापारी परिवार समेत आत्महत्या करने को अभिशप्त हैं।

सोमवार 31 दिसंबर 2018 को गुजरात के जामनगर जिले के किसान चौक इलाके में होलसेल के व्यापारी दीपक पन्नालाल साकरिया (45) ने पहले पत्नी आरती (42), माता जयाबेन साकरिया (78), 10 वर्षीय पुत्री कुमकुल तथा पांच वर्षीय पुत्र हेमंत को पानी में जहर मिला कर पिला दिया। इसके कुछ देर बाद खुद भी जहर पीकर आत्हमत्या कर ली। परिवार आर्थिक संकट से जूझ रहा था।

मृतक दीपक साकरिया की माता की बीमारी पर हर महीने 20 हजार रुपये खर्च होते थे। मकान के लिए बैंक में 15 हजार की किस्त भरनी पड़ती थी । जांच में सामने आया है कि मृतक दीपक भाई ने पिछले तीन महीने से मकान की किस्त नहीं भरी थी। इससे वे काफी चिंता में थे। दीपक ने चार दिन पहले ही अपने मौसी के लड़के से कहा था कि मां के इलाज और मकान की किस्त मिलाकर महीने में कुल 40 हजार रुपये भरने लगते हैं, लेकिन उसकी आमदनी केवल 15 से 20 हजार है। इन रुपयों से केवल घर भी ठीक से नहीं चलता है।

ये कोई पहला मामला नहीं है। इससे पूर्व पिछले वर्ष जून व सिंतबर महीने में भी इस प्रकार की घटनाएं घटित हुई हैं। आर्थिक संकट के चलते ही वडोदरा के मकरपुरा क्षेत्र स्थित चित्रकूट सोसायटी निवासी व कलर व्यवसायी विक्रमकुमार अरविंद कांत त्रिवेदी (55), पत्नी हीनाबेन त्रिवेदी (52) एवं पुत्र हर्निल त्रिवेदी (23) ने कार में कीटनाशक पीकर जान दे दी थी।

जबकि 2018 के सितंबर महीने में अहमदाबाद के नरोदा इलाके में रहने वाले व्यापारी कुणाल त्रिवेदी (50), उसकी पत्नी कविता (45) और बेटी शिरीन (16) ने जहरीला पदार्थ पीकर जान दे दी थी। जिसे राज्य प्रशासन और मीडिया ने अंधविश्वास से जोड़कर गुजरात सरकार की नाकामी की पर्दादरी कर दी थी।

चेतनाविहीन धार्मिक समाजों में लोगों का मनोविज्ञान ही कुछ इस तरह का होता है कि वो अपनी आर्थिक परेशानियों का कारण सरकार और उसकी नीतिंयों को नहीं बल्कि ग्रहों, नक्षत्रों, बुरी शक्तियों और अपने किस्मत को मानकर उसका निराकरण तंत्र-मंत्र और दूसरे धार्मिक कर्मकांडों के जरिए तलाशने की कोशिश करते हैं और दिन—ब—दिन लगातार मानसिक रूप से और बीमार होते जाते हैं जिसका अंत इस तरह के सामूहित आत्महत्या पर आकर होता है, जिसे मीडिया प्रशासन और सरकार अंधविश्वास या मोक्ष की तलाश कहकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेता है।

जबकि हक़ीकत यही है कि नोटबंदी और उसके ठीक बाद लागू की गई जीएसटी ने छोटे व्यापारियों की कमर तोड़ दी है। या यूँ कहें कि छोटे व्यापारियों को खत्म करके अडानी—अंबानी जैसे कार्पोरेट घड़ियालों के लिए पूरा बाज़ार साफ किया गया है।

गुजरात मॉडल की सच्चाई यही है कि एक ओर तो बड़े पूँजीपति और अमीर होते जा रहे हैं, तो छोटे व्यापारी लगातार हतोत्साहित करके सामूहिक आत्महत्या को विवश किये जा रहे हैं। पूँजीवादी व्यवस्था की यही प्रवृत्ति है। वो पूँजी और दूसरे संसाधनों को सबमें वितरित करने के बजाय एक जगह केंद्रीकृत करता चलता है और तब समाज में तरह तरह की बीमारियाँ विसंगतियाँ और विद्रूपताएं पैदा होती हैं। तरह तरह के अपराध पनपते हैं।

पूँजी की एकीकृत सत्ता समाज की बहुत बड़ी आबादी में घोर आर्थिक अभावों को पैदा करके ही कायम की जाती है, जिसे कायम रखने के लिए फिर नोटबंदी, तालाबंदी, सीलन और आर्थिक मंदी जैसे तरह तरह के दमन शोषण और उत्पीड़न के अभियान चलाए जाते हैं।

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