गुजरात में 44 फीसदी किसान कर्जदार तो 40 फीसदी ने छोड़ी किसानी

Update: 2017-11-10 18:21 GMT

गुजरात के करीब 50 ब्लॉक में आज तक नहीं पहुंची कभी बिजली

दोषपूर्ण आर्थिक नीतियों के चलते कृषि धीरे-धीरे घाटे का सौदा बन गई है, जिसके कारण किसान कर्ज के दुश्चक्र में फंस गए हैं

सियाराम मीणा की रिपोर्ट
                                                                      
2014 के लोकसभा चुनावों से पहले वर्तमान प्रधानमंत्री अपने कई भाषणों में यह कहते नजर आये कि भारतीय जनता पार्टी अगर सत्ता में आती है तो स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट को लागु किया जायेगा। लेकिन अभी तक केंद्र सरकार ने इस चुनावी वादे के बारे में खामोश बैठी है।

गुजरात का किसान कर्ज के कारण आत्महत्या कर रहा है। जिस गुजरात विकास मॉडल को बहुत प्रचारित किया जा रहा है उसी विकास मॉडल वाले राज्य में रह रहा किसान बहुत दयनीय स्थिति में जीवन यापन कर रहा है। किसान आत्महत्या में गुजरात टॉप 10 राज्यों की श्रेणी में शामिल है।

25 मार्च को द टाइम्स ऑफ़ इण्डिया में छपी रिपोर्ट में यह सामने आया कि 2013 से 2015 के बीच गुजरात में 1,483 किसानों ने आत्महत्या की है। साथ ही यह भी देखने को मिला है कि कई किसान आत्महत्या के मामलों में प्राथमिकी रिपोर्ट भी दर्ज नहीं हुई हैं ।

गुजरात का लगभग 40 फीसदी किसान खेती करना छोड़ चुका है। इस प्रदेश का लगभग 44% किसान कर्ज में डूबा हुआ है। जहाँ गुजरात की सरकार यह दावा करती है कि वह किसानों को 24 घंटे कृषि की बिजली देती है, जो कि पूरी तरह से सच नहीं है। इसकी हकीकत यह कि गुजरात के किसानों को 8 घंटे से भी कम बिजली मिलती है।

दक्षिण गुजरात जो आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है वहाँ के डांग, नर्मदा राजपिपला जैसे जिलों कई गाँवों में अभी बिजली नहीं पहुँच पाई हैं। इन जिलों में सिंचाई के लिए न तो नलकूप है न ही नहर की व्यवस्था है। दक्षिण गुजरात का पूरा कृषि क्षेत्र पूरी तरह सिर्फ बारिश पर टिका हुआ है।

यही स्थिति उत्तरी गुजरात के किसानों की है। उत्तरी गुजरात के क्षेत्र में भू-जल स्तर 450 फीट से भी नीचे जा चुका है। इस क्षेत्र में भी नहरों की कोई व्यवस्था नहीं है। आज भी गुजरात के लगभग 40 से 50 ब्लॉक ऐसे हैं जो पूरी तरह अँधेरे में डूबे हुये हैं।
 
विशेषज्ञ मानते हैं कि कृषि क्षेत्र में निरंतर मौत का तांडव दोषपूर्ण आर्थिक नीतियों का नतीजा है। दोषपूर्ण आर्थिक नीतियों के चलते कृषि धीरे-धीरे घाटे का सौदा बन गई है, जिसके कारण किसान कर्ज के दुश्चक्र में फंस गए हैं। पिछले एक दशक में कृषि ऋणग्रस्तता में 22 गुना बढ़ोतरी हुई है। अत: सरकार को किसानों के लिये प्रभावी नीतियों का निर्माण करना होगा।, साथ ही बढ़ते शहरीकरण को कम करने का प्रयास किया जाना चाहिए।                                                                                                                                                                                               (सियाराम मीणा गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय के भाषा एवं साहित्य अध्ययन केंद्र में शोध छात्र हैं।)

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