क्योंकि हर हंसने वाली लड़की आपसे प्यार नहीं करती

Update: 2017-07-11 11:15 GMT

हर हंसने वाली लड़की, आपके प्यार में पड़ने वाली नहीं है। लड़कियों को हंसने दीजिए- यह उनका नेचुरल राइट है...

अक्षय कुमार की ‘‘टॉयलेट- एक प्रेमकथा’, फिलहाल गलत ही वजहों से सेंटर ऑफ अट्रैक्शन हो रही है। हाल ही में उसका एक गाना रिलीज हुआ है- ‘‘हंस मत पगली, प्यार हो जाएगा’। सोनू निगम का गाया यह सुंदर गीत रोमांटिक प्रतीत होता है। प्रतीत इसलिए क्योंकि यह कतई रोमांटिक नहीं है।

रोमांस और स्टॉकिंग को आप अगर एक समझते हैं तो आपको इस गाने में कुछ भी अजीब नहीं लगेगा। लेकिन स्टॉकिंग रोमांस तो बिल्कुल नहीं है। स्टॉकिंग मतलब किसी का पीछा करना और अक्षय इस पूरे गाने में हीरोइन भूमि का पीछा करते रहते हैं। बिना बताए उसका फोटो खींचते हैं, वीडियो बनाते हैं।

अगर हममें से किसी के साथ कोई मर्द ऐसा करेगा तो हम उसके साथ कैसा व्यवहार करेंगे? उसे जेल की हवा खिलवाएंगे। 2013 में स्टॉकिंग को भारतीय दंड संहिता की धारा 354 डी के तहत अपराध घोषित किया जा चुका है।

ऐसी ही सजा वरुण ‘बद्रीनाथ’ धवन को भी हो सकती थी- अगर आलिया ‘वैदेही’ भट्ट गलबहियां डालने की बजाय गुस्से में पुलिस में रिपोर्ट कर देती। ‘बद्रीनाथ की दुलहनिया’ इस साल की हिट फिल्मों में से एक है। लेकिन इस फिल्म की कहानी भी स्टॉकिंग से ही आगे बढ़ती है।

फिल्म में आलिया पर लट्टू होने के बाद वरुण अपने दोस्त से कहता है- ‘प्रेम का समय तो कब का गया, हम तो सीधे शादी रचाएंगे।' फिर वह रिश्ता लेकर आलिया के घर पहुंच जाता है। वह उसे जेल की हवा खिलाने की धमकी देती है, लेकिन वह पीछे नहीं हटता। बाद में दसवीं पास हीरो को हीरोइन कबूल कर लेती है।

दर्शक मन ही मन सोचते हैं, भला इतना प्यार करने वाला लड़का मिल रहा है तो हीरोइन को प्रॉब्लम क्या है.. प्रॉब्लम हीरोइन को नहीं, हमें है। क्योंकि असल में हर पीछा करने वाला लड़का खुद को हीरो ही समझता है और लड़की से पूछता है- तुम्हें प्रॉब्लम क्या है। इसी तरह हर दिन किसी न किसी अपराध को अंजाम दिया जाता है।

पिछले साल फरवरी में स्नैपडील कर्मचारी दीप्ति सरना का अपहरणकर्ता देवेंद्र भी खुद को हीरो ही समझता था। वह भी बिना कुछ कहे एक साल तक दीप्ति का पीछा ही कर रहा था। अक्षय कुमार या वरुण धवन या उनके जैसे दूसरे हीरो अगर हीरोइन का पीछा करके, उसे हासिल कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं... देवेंद्र ने मन ही मन ऐसा ही सोचा था। क्या हम उसे भी फिल्मी हीरो की तरह माफ कर सकते हैं?

दरअसल बॉलीवुड ने कभी-भी समझदारी भरा बर्ताव नहीं किया। यह साठवें दशक में भी था, अब भी है। अपने समय के रोमांटिक हीरो देवानंद ‘मुनीमजी’ में ‘जीवन के सफर में राही..’ और ‘पेइंग गेस्ट’ में ‘माना जनाब ने पुकारा नहीं..’ गाते-गाते नलिनी जयवंत और नूतन को परेशान ही करते रहते हैं। राज कपूर ‘संगम’ में वैजयंती माला के पीछे पड़ते हैं और गाते हैं- ‘बोल राधा बोल संगम होगा कि नहीं।'

‘शोले’ में धर्मेंद्र तांगे पर जबरन सवार होकर हेमा मालिनी के लिए गाते रहते हैं- ‘कोई हसीना जब रूठ जाती है... सलमान ‘किक’ के गाने ‘जुम्मे की रात’ में जैक्लीन का स्कर्ट उड़ाते हैं। हिट ‘बाहुबली’ में हीरो प्रभास, हिरोइन तमन्ना भाटिया को ‘स्त्रियोचित’ वेशभूषा देने के लिए उसके सैनिकों वाले कपड़े उतारते चलते हैं। इस सीन को तो समीक्षकों ने ‘रेप ऑफ अवंतिका’ ही नाम दे दिया था।

लेकिन क्या इन सभी फिल्मों में कोई हीरो जेल जाता है? उसे तो पुरस्कार के तौर पर हीरोइन का प्यार मिल जाता है। परेशानी यह है कि ये सभी कारनामे हिट हीरो करते हैं, विलेन नहीं। विलेन रोल मॉडल नहीं होते। रोल मॉडल हीरो होते हैं और वे दर्शकों को बताते हैं कि लड़की की ना में ही उसकी हां होती है। दर्शक भी अपने हीरो का कारनामा असल जिंदगी में दोहराना चाहते हैं।

22 सितंबर, 2016 को बुराड़ी, दिल्ली में करुणा कुमार पर 30 बार कैंची से वार करने वाला सुरेंद्र भी उसी ऑडियंस का हिस्सा रहा होगा, जो स्टॉकिंग को रोमांटिक एक्सपीरियंस मानती है। इसीलिए अक्षय कुमार से लेकर सभी बड़े नायकों को यह समझना चाहिए कि स्टॉकिंग क्यूट या रोमांटिक नहीं।

2014 में पीछा करने वाले 4,700 केस दर्ज हुए थे। बेशक, आपकी हीरोइनों की तरह कितनी ही लड़कियां पुलिस थाने गई ही नहीं होगी, इसकी भी कल्पना की जा सकती है। यह और बात है कि हीरोइनों की तरह इन लड़कियों ने पीछा करने वाले लड़कों के साथ बात भी नहीं बढ़ाई होगी। वे थाने इसलिए नहीं गई होंगी, क्योंकि वे मामले को तूल नहीं देना चाहती होंगी या वे डर के मारे चुप रह जाती होंगी।

यह भी हो सकता है कि उन्हें लगता होगा कि पुलिस वाले उन्हें न्याय नहीं दे पाएंगे। लेकिन इस तरह वे भविष्य के खतरे को आमंत्रित ही करती हैं। इसीलिए जागरूक नागरिक की तरह आप भी सचेत हो जाइए। हर हंसने वाली लड़की, आपके प्यार में पड़ने वाली नहीं है। लड़कियों को हंसने दीजिए- यह उनका नेचुरल राइट है।

(राष्ट्रीय सहारा से साभार, यह लेख द मासा के नाम से लिखा गया है।)

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