मलाई की आस में भाजपा में शामिल हुए इन नेताओं की महत्वाकांक्षा की आग मंत्री पद पाने के बाद भी ठंडी हुई नहीं लगती है...
देहरादून से मनु मनस्वी
कांग्रेस से बगावत कर भाजपा का दामन थामने वाले हरक सिंह रावत, विजय बहुगुणा समेत उत्तराखण्ड के कई नेताओं को अब भाजपा का माहौल भी रास नहीं आस रहा है। इनमें सबसे बुरी गत तो सतपाल महाराज की हो रखी है, जिन्हें समझ ही नहीं आ रहा कि वे पर्यटन मंत्री बनाए किसलिए गए हैं?
दूसरी ओर कांग्रेस सरकार में उथल पुथल मचाने वालों के लीडर कहे जाने वाले विजय बहुगुणा भी अपने पुत्र साकेत को एडजस्ट करने में असफल रहे हैं और हरक सिंह तो हमेशा की तरह नाखुश ही हैं। मात्र सुबोध उनियाल ही पाला बदलने के बाद खुश नजर आ रहे हैं तो उसका कारण यह भी माना जा सकता है कि कांग्रेस में रहते उन्हें मंत्री पद मिलना लगभग नामुमकिन था।
मलाई की आस में भाजपा में शामिल हुए इन नेताओं की महत्वाकांक्षा की आग मंत्री पद पाने के बाद भी ठंडी हुई नहीं लगती है। वैसे भी जिस भाजपा में कद्दावर नेताओं और पूर्व मुख्यमंत्री रहे खंड़ूड़ी, भगत सिंह कोश्यारी जैसे सिपहसालारों की कद्र न हो, वहां कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए कांग्रेसियों को पर्याप्त तवज्जो मिलनी मुश्किल ही था।
इस पर बीते दिनों मोदी के केदारनाथ आगमन पर स्थानीय विधायक और पर्यटन मंत्री की अनदेखी ने समीकरण बदल दिए हैं। पार्टी सूत्रों से आ रही खबरों पर यकीन करें तो ये सभी सूरमा एक बार फिर सरकार के लिए परेशानी खड़ी कर सकते हैं। यह भी संभव है कि इनके बागी तेवरों के चलते उत्तराखंड में भी उपमुख्यमंत्री का पद सृजित करना पड़ जाए।
वैसे भी इन बागियों को अब जनता के सामने जवाब देना भारी पड़ रहा है कि जिस भ्रष्टाचार, खनन, शराबबंदी के चलते इन्होंने कांग्रेस की लुटिया डुबोई थी, वे सभी समस्याएं जस की तस हैं तो भाजपा में शामिल होने का अर्थ ही क्या रह गया?
बहरहाल, इन नए-नए भाजपाइयों के हावभाव बता रहे हैं कि राज्य में फिर एक बार उठापटक का दौर शुरू हो सकता है। इसमें फायदा किसी का भी हो, पर नुकसान जनता ही उठाएगी हर बार की तरह।