नागपुर की अंडा सेल में बंद प्रो. साईंबाबा की तबीयत नाजुक

Update: 2017-07-17 15:37 GMT

आज जनांदोलनों के लोग अपने ही बीच के आंदोलनकारियों को कैसे भूल जाते हैं, प्रोफेसर साईंबाबा उसकी बानगी भर हैं। 90 फीसदी विकलांग साईंबाबा को हृदय रोग समेत कई गंभीर बीमारियां हैं, लेकिन कोई एक संगठन या पार्टी नहीं हैं जो इस मसले को सरकार या समाज के सामने पुरजोर तरीके से उठाए...

जनज्वार। दिल्ली के नागरिक अधिकार आंदोलनों में सक्रियता से भागीदारी करते रहे दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जीएन साईंबाबा इन दिनों गंभीर रूप से बीमार हैं। देश के सभी इंसाफपसंद लोगों और मानवाधिकार संगठनों से अपील करते हुए उनकी पत्नी एएस बसंता कुमारी ने हस्तक्षेप की मांग की है, जिससे साईंबाबा उनका समुचित ईलाज कराकर उनकी जान बचाई जा सके।

प्रोफेसर जीएन साईंबाबा को महाराष्ट्र के गढ़चिरौली की एक अदालत ने माओवादियों से संबंध होने और उनकी पार्टी गतिविधियों में शामिल होने को लेकर 7 मार्च, 2017 सजा सुनाई थी। वे नागपुर जेल की अंडा सेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। इनके साथ जेएनयू के छात्र रहे हेम मिश्रा और पूर्व पत्रकार प्रशांत राही समेत पांच लोगों को आजीवन कारावास की सजा हुई है।

इससे पहले मई, 2014 में माओवादियों से संबंध होने के आरोप में साईंबाबा को गिरफ़्तार किया गया था। यह सजा उसी मामले में हुई थी। गिरफ्तारी के 14 महीने जेल में रहने के बाद जून 2016 में बोम्बे हाईकोर्ट ने उन्हें स्वास्थ्य कारणों से ही उन्हें जमानत पर रिहा किया था।

साईंबाबा की पत्नी बसंता कुमारी ने एक फेसबुक पर पोस्ट जारी करते हुए लिखा है, 'मेरे पति जीएन साईंबाबा को सजायाफ्ता किए जाने से एक सप्ताह पहले ही डॉक्टर ने कहा था कि उनके पैंक्रियास में संक्रमण और गॉल ब्लैडर में पथरी है। आॅपरेशन से पहले का ईलाज चल ही रहा था कि उनको सजा हो गयी और उन्हें नागपुर जेल में बंद कर दिया गया।'

बसंता आगे लिखती हैं, 'पथरी के कारण उन्हें बहुत दर्द होता है। साथ ही उन्हें हृदय रोग भी है। पर जेल स्टॉफ उनका ईलाज नहीं करा रहा। यहां तक जेल के डॉक्टर को भी नहीं दिखा रहे हैं। उनका ब्लॅड प्रेशर हमेशा ऊपर—नीचे होते रहा है, जबकि जेल द्वारा तैयार रिपोर्ट में उसे नॉर्मल बताया जा रहा है। इसके अलावा उनके किडनी में स्टोन, सीने में दर्द और सांस लेने में समस्या भी रही है। प्रोस्टेट की समस्या के चलते उन्हें पेशाब करने में भी दिक्कत होती है।

बसंता के मुताबिक दिल्ली के वसंतकुंज स्थित रॉकलैंड हॉस्पिटल के डॉक्टरों द्वारा उन्हें हृदय रोग के लिए रोज 2 टैबलेट और पैंक्रियास के दर्द के लिए अन्य दवाएं दी जाती थीं, जिसे जेल प्रशासन नहीं दे रहा है।

पिछले एक महीने में वह दो बार बेहोश होकर गिर चुके हैं, जबकि इस महीने वह दो दिनों के भीतर चार बार बेहोश हो चुके हैं। इस बारे में न तो महाराष्ट्र सरकार, न केंद्र और न ही जेल प्रशासन गौर करने को तैयार है, जबकि दवाओं के अभाव में साईंबाबा के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया है।

इस संबंध में दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ की अध्यक्ष नंदिता नारायण, नेशनल प्लेफार्म फॉर द राइट्स् आॅफ द डिसेबल्ड की महासचिव और जीएन साईंबाबा की पत्नी एएस बसंता कुमारी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के रजिस्ट्रार अशोक कुमार कौल से मिलकर जेल मानदंडों और कैदी मानवाधिकारों को लेकर एक लिखित शिकायत भी दर्ज करा चुके हैं। पर इस संबंध में अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई है।

ऐसे में सवाल यह है कि अगर केंद्र सरकार, राज्य सरकार, जेल प्रशासन व मानवाधिकार आयोग एक आंदोलनकारी की सुध नहीं ले रहे हैं, तो फिर क्या वे लोग भी नहीं लेंगे जिनके साथ उसने आजीवन आंदोलनों में भागीदारी की है।

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