इश्क इजहार के टोटके मुबारक हो तुम्हें

Update: 2018-06-29 03:06 GMT

सप्ताह की कविता में आज सुधीर सुमन की कविताएं

सुधीर सुमन उन कवि यश:प्रार्थियों में नहीं हैं, जो अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा कवि होने की जुगत भिड़ाते गुजार देते हैं। जनता के अधिकारों के संघर्ष में लगी एक पार्टी से जुड़कर काम करते हुए कविता के साज-संवार पर देने को समय भी नहीं होता उनके पास। कविताएं उनके निज के जीवन में चल रहे अंतरविरोधों, स्वप्नों, इच्छाओं की चुप अभिव्‍यक्तियां हैं। तमाम संघर्षशील युवाओं की तरह सुधीर भी सपने देखते हैं और उनके सपने दुनिया को बदल देने की उनकी रोजाना की लड़ाई का ही एक हिस्सा हैं।

यूं सुधीर अपने सपनों पर जब बात करते हैं तो वह भी उनके रोज के प्रतिरोधी जीवन की छायाएं ही लगती हैं। उनके कुछ सपने राजनीतिक होते हैं और उन्हें वे अपनी डायरी में नोट भी करते हैं। सुधीर की कविताएं एक तरह से कविता के फार्म में उनके स्वप्नों की एक कोटि ही हैं। इसलिए अपनी ओर से कभी उन्होंने अपने कवि पर ध्यान नहीं दिया। बस कविता के फार्म में अपनी बातें नोट करते गए। सुधीर को हमेशा लगता कि जैसे उन कविताओं पर फुरसत में काम की जरूरत है।

जन राजनीति के ज्वार-भाटे के साक्षी रहने और उसमें शामिल रहने के कारण उनकी कविताओं की राजनीतिक निष्‍पत्तियां ठोस और प्रभावी बन पडी हैं। उदाहरण के लिए उनकी गांधी कविता को लिया जा सकता है कि कैसे एक वैश्विक व्‍यक्तित्‍व की सर्वव्यापी छाया शकून का कोई दर्शन रचने की बजाय बाजार के विस्तार का एक औजार बनकर रह जाती है। बुढ़ापा जैसी कई कविताओं में वे अपने निजी दुख से शुरू करते हैं, पर अगले ही पल वह आम जन की त्रासद तस्वीर को अभिव्यक्त करता हुआ कब दुख के कारकों की वैश्विक व्यंजनाओं को सम्मुख रखने लगता है यह पता ही नहीं चलता।

प्यार पर कई कविताएं हैं सुधीर की और उनके रंग भी जुदा-जुदा हैं। सुधीर के यहां प्यार अभावों के बीच भावों के होने का यकीन और ‘दुख भरी दुनिया की थाह’ और ‘उसे बदलने की' चाह है। प्यार अक्सरहां सामने वाले पर गुलाम बनाने की हद तक हक जताने का पर्याय बना दिखता है पर सुधीर का इश्क हक की जबान नहीं जानता।

कवि की विडंबना है कि वह विकास के चमचमाते स्वप्नों के भीतर की सच्चाई जानता है। निठारी कांड के आरोपियों के सफैद फ्लैटों और व्हाइट हाउस के बीच के संबंधों को वह देख पाता है और यह सब उसे कभी चैन से नहीं बैठने देता, वह देखता है कि विकास की इस सफेदी की चमक के पीछे उसके रक्त का निचोड़ छुपा है, मौत और जीवन की संधिरेखा पर जीता है वह। यह सब देखना और जानना कवि को अकेला करता जाता है। इस अकेलेपन से जूझता कवि खुद से संवाद करता है। सुधीर की कविताओं से गुजरना अपने समय के संघर्षों और त्रासदियों को उसके बहुआयामी रूपों में जानना है। यह जानना हमें अपने समय के संकटों का मुकाबला निर्भीकता से करने की प्रेरणा देता है। आइए पढ़ते हैं सुधीर सुमन की कुछ कविताएं -कुमार मुकुल

बंटवारा

आकाश खुश हुआ

अपनी छाती पर

सरसराती पतंग को देख

आकाश को खुश जान

पतंग मुस्कुरा उठी

इठलाकर झूमने लगी

दोनों खोए रहे

एक-दूसरे में।

सहसा एक और पतंग आयी

पहली की ओर

दोस्ती का हाथ बढ़ाया

पहली ने उपेक्षा से

आंखें फेर लीं अपनी

आकाश का विशाल मन

रोक न पाया खुद को

और नई पतंग को भी दुलराया

जल पड़ी पहली इससे

चीखी - ‘आकाश सिर्फ मेरा है’

अब दोनों ने बांट दिया उसे

बंटने के दर्द से रो पड़ा आकाश

रोते ही उसकी

दोनों पतंगें गल पड़ीं।

कविता की मंजिल

मुझे नहीं चाहिए ऐसी खुशी

जो मिले

किसी पीड़ित चेहरे को दिखाने की

वाहवाही से

दुख-दर्द का सौदागर नहीं

कवि हूं, व्यवसायी नहीं

है सच, नहीं गा सकता

आंसुओं व अतृप्ति से अलग तराने

भरे पेट आराम के लिए

नहीं सुना सकता दिलबहलाव की चीजें

नहीं चाहिए इनामो इकराम

छोटी-सी बात के लिए

कविता ही तो रची है

दुनिया नहीं बदली न!

अक्षरों की भीड़ नहीं समृद्धि

कविता होगी तब समृद्ध

जब होंगे सारे सपने पूरे

लोकप्रियता नहीं पराकाष्ठा

ऐसी ऊंचाई का क्या

जहां कवि अकेला हो

नियति का अस्वीकार

कविता की गति है।

गर मुरझाए रहेंगे लोग

अधूरी रहेगी कविता

कवि लाने चला है

बच्चों सी हंसी हर चेहरे पे

बंधन टूटेंगे जिस दिन

मुक्ति मिलेगी सबको

मंजिल पाएगी उसी दिन

कविता अपनी।

रकीब से-1

गर बह गए होते

दिल के अरमां आंसुओं में

तो फिर कहना क्या

वफा है अपनी जगह

तन्हाई भी

और वे अरमां भी

घुल गए हैं जो

मेरे लहू के समुंदर में

अब ज्वार उठते रहेंगे

तूफान आते रहेंगे

आंखों से टपक भला

वे चैन कहां लेंगे।

रकीब से-2

जो सांसें

धड़क रहीं

मेरी सांसों संग

जो सूरत ख्यालों में

है हर पल

उसपे हक क्या जताना

गर इश्क है तो

बार-बार दावेदारी क्यों

इश्क इजहार के टोटके

मुबारक हो तुम्हें

मेरे पास जो है वो है।

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