ख्यात लेखक-व्यंग्यकार सुशील सिद्धार्थ का हार्ट अटैक से निधन

Update: 2018-03-17 11:29 GMT

श्रेष्ठ कवि, ग़ज़लकार, हिंदी और अवधी दोनों में, श्रेष्ठ व्यंग्यकार, समीक्षक, संचालक, वक्ता, संपादक सुशील सिद्धार्थ का आज सुबह हार्ट फेल होने से निधन...

दिल्ली, जनज्वार। आज 17 मार्च की सुबह तकरीबन 7 बजे हार्ट फेल होने के चलते हिंदी के ख्यात लेखक, व्यंग्यकार, कवि, कहानीकार और किताबघर में संपादक सुशील सिद्धार्थ का निधन हो गया।

मूल रूप से लखनऊ के रहने वाले सुशील साहित्य जगत में दशकों से सक्रिय हैं। सुशील जी दिल्ली में अकेले रहते थे। उनकी पत्नी लखनऊ में और बेटा अहमदाबाद में नौकरी करते थे। अंतिम समय में वह बिल्कुल अकेले थे।

उनका पार्थिव शरीर उनके घर लखनऊ ले जाया जा रहा है। वहीं उनका अंतिम संस्कार होगा।

इस चर्चित व्यंग्यकार के व्यंग्य विभिन्न दैनिक समाचार पत्र—पत्रिकाओं में छपते रहते हैं। उनके निधन पर साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। प्रसिद्ध गजलकार लक्ष्मी शंकर वाजपेयी उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए लिखते हैं, 'स्तब्ध हूं..आहत से अधिक दहशत मे हूं.. परसों फोन पर बात हुई थी,सुबह ख़बर मिल रही है कि सुशील सिद्धार्थ जी नहीं रहे.. श्रेष्ठ कवि, ग़ज़लकार, हिंदी और अवधी दोनों मे, श्रेष्ठ व्यंग्यकार, समीक्षक, संचालक, वक्ता, संपादक और सबसे बढ़कर विनम्र इंसान..और बेहब प्यारे मित्र.. कोई ऐसे छोड़कर जाता है सुशील जी...'

हिंदी की प्रसिद्ध लेखिका मैत्रेयी पुष्पा लिखती हैं, 'सुशील सिद्धार्थ... इतनी जल्दी भी क्या थी जाने की। मेरे पास श्रद्धांजलि के सिवा अब कुछ नहीं।'

लेखक दयानंद पांडे ने उन्हें याद करते हुए लिखा है, आज की सुबह रुला गई। संघर्ष ही जिन की कथा रही वह सुशील सिद्धार्थ आज सुबह-सुबह हम सब से विदा हो गए। संघर्ष का समुद्र उन्हें बहा ले गया। उन की ठिठोलियां, गलबहियां याद आ रही हैं। छोटी-छोटी नौकरियां, छोटे-छोटे दैनंदिन समझौते करते हुए सुशील अब थक रहे थे। दिल्ली उन्हें जैसे दूह रही थी। सुई लगा-लगा कर। वह व्यंग लिखते ही नहीं थे, जीते भी थे। एक अच्छे अध्येता, लेखक, कवि, वक्ता, व्यंग्यकार और एक अच्छे दोस्त का इस तरह जाना खल गया है उम्र में हम से छोटे थे सुशील सिद्धार्थ, जाने की उम्र नहीं थी फिर भी चले गए। वह दिल्ली में रहते थे, पत्नी लखनऊ, बेटा अहमदाबाद। ज़िंदगी में उन की यह बेतरतीबी देख कर मैं अकसर उन से कहता था कि दिल्ली छोड़ दीजिए, लखनऊ लौट आइए। वह मुस्कुरा कर ज़िंदगी की दुश्वारियां गिनाते और कहते बस जल्दी ही आप के आदेश का पालन करता हूं बड़े भाई। लेकिन दिल्ली क्या वह तो दुनिया छोड़ गए। बड़े ठाट के साथ मुझे बड़े भाई कहने वाले सुशील की अब याद रह गई है। उन के शेर याद आते हैं, जाने किस बात पर हंसे थे हम/ आज तक यह शहर परीशां है।
/ हाकिमे शहर कितनी नेमते लुटाता है/ नींद छीन लेता है लोरियां सुनाता है।

और भी अनेक लेखकों ने सुशील सिद्धार्थ के अचानक हुई मौत पर शोक व्यक्त करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए दुख व्यक्त किया है।

व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय लिखते हैं, 'विवेक मिश्र ने अत्यधिक दुखद एवं अविश्वसनीय सूचना दी कि प्रिय सुशील सिद्धार्थ हम सबको छोड़कर चले गए हैं। सुशील ऐसा वैक्यूम छोड़ कर गए हैं जो भरा नही जा सकता। हार्टफेल के कारण उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां उन्हें मृत घोषित किया गया। अंतिम संस्कार के लिए उनके पार्थिव शरीर को लखनऊ भेजने की व्यवस्था विवेक मिश्र कर रहे हैं। मैं सन्न हूँ। हम सब दिवंगत सुशील की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें।'

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