ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार, सहारा समय कथा चयन पुरस्कार और कथाक्रम कहानी पुरस्कार से नवाजे जा चुके शशिभूषण द्विवेदी व्यंग्यकार के बतौर भी चर्चित रहे...
जनज्वार। हिंदी के चर्चित कवि-कथाकार शशिभूषण द्विवेदी का आज 7 मई की शाम को हार्ट अटैक के चलते अचानक निधन हो गया। वे हिंदुस्तान अखबार के संपादकीय विभाग में कार्यरत थे।
26 जुलाई 1975 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में जन्मे शशिभूषण द्विवेदी ने हिंदी साहित्य को कई चर्चित रचनायें दीं। ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार, सहारा समय कथा चयन पुरस्कार, और कथाक्रम कहानी पुरस्कार से नवाजे जा चुके शशिभूषण द्विवेदी व्यंग्यकार के बतौर भी चर्चित रहे।
शायद शशिभूषण द्विवेदी को अपनी मौत का आभास हो, तभी तो 4 मई को लिखी अपनी एक पोस्ट में वह कहते हैं, "अतीत झूठा होता है। स्मृति में ठीक-ठीक वापसी संभव ही नहीं। हर अनुभव अंततः एक क्षणभंगुर सत्य ही है।'
उनके अचानक हुए निधन पर श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए वरिष्ठ लेखक पंकज चतुर्वेदी कहते हैं, 'एक फक्कड़, अघोरी किस्म का इंसान, अच्छा लेखक समय से बहुत पहले चला गया। मेरे घर के करीब ही रहता था। कभी कभार बरमूडा शर्ट और चप्पल डाल कर आ जाता। बेतकल्लुफ। शशि भूषण के असामयिक निधन की खबर बेहद दुखद है।'
विशाल श्रीवास्तव लिखते हैं, 'यह साल ही मनहूस है। हिंदी के अप्रतिम कथाकार, मित्र शशिभूषण द्विवेदी का इस तरह चला जाना भीतर से तोड़ देने वाली घटना है। 2006 में भोपाल में हुए कार्यक्रम में उनसे पहली मुलाकात आज स्मृतियों में कौंध रही है। अभी भी लगता है कि कोई कह दे कि यह ख़बर गलत है। बहुत दुःखद।'
जनस्वास्थ्य चिकित्सक एके अरुण उनके निधन पर दुख व्यक्त करते हुए लिखते हैं, 'भाई शशिभूषण ऐसे भी कोई जाता है भला? यह भी नहीं सोचा कि यह वक्त जाने का नहीं है भाई! बड़ी ज़रूरत है! फिर भी नहीं माने! श्रद्धांजलि तो औपचारिकता बन गई है!'
पत्रकार—लेखक विमल कुमार कहते हैं, 'दो दिन पहले ही शशिभूषण से बात हुई थी। उनका सहारा समय में छपा राजनीतिक व्यंग्य बड़ा धारदार था। उसमें राबड़ी लालू पर होली का जबरदस्त कटाक्ष था। वह उनकी पहली रचना थी जिसने ध्यान खींचा था। प्रभात रंजन का जानकी पुल भी उसी समय आया था।'
सईद अयूब कहते हैं, 'क्या-क्या देखना बदा है यार? कैसी-कैसी ख़बरें सुननी पड़ेंगी? एक झपकी लेकर उठो तब तक किसी के चुपके से गुज़र जाने की ख़बर आ जा रही है। कथाकार भाई शशिभूषण द्विवेदी नहीं रहे। विश्वास किया जा सकता है इस ख़बर पर? उफ़्फ़! तमाम बातों को लेकर मेरा उनसे विरोध रहा। इस विरोध को वे भी समझते थे और मैं भी लेकिन हमारी आपस में कभी तल्ख़ी नहीं पैदा हुई। आख़िरी बार जनवरी में पुस्तक मेले में एक झलक हमने एक दूसरे की देखी थी। बस एक झलक क्योंकि तब तक भीड़ का रेला हम दोनों को एक दूसरे से अलग कर गया था। मेले में यूँ लुका-छिपी, मिलना-बिछड़ना लगा रहता है पर यूँ किसी का ज़िन्दगी भर के लिए ऐसे बिछड़ जाना कि मिलकर शिकायतें भी न की जा सकें। क्या कहूँ? सदमा लगा यह ख़बर सुनकर। आपको विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करने के अलावा और क्या कर सकता हूँ? इस लॉक डाउन में तो अंतिम दर्शन भी सम्भव नहीं। बेहद उदास कर गया आजका दिन और यह ख़बर।'
ममता सिंह उन्हें श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए कहती हैं, 'ज़िन्दगी क्षणभंगुर है, पर इतनी....? अगले पल क्या होने वाला है किसी को नहीं पता....शशिभूषण द्विवेदी को निजी तौर पर ज़्यादा नहीं जानती, पर उनकी कहानियों और उनकी पत्रकारिता से ख़ूब वाकिफ़ हूँ.... अचानक शशि भूषण जी के इस दुनिया से चले जाने की ख़बर, स्तब्ध कर गई। यक़ीन नहीं हो रहा....'
विमल चंद्र पांडेय लिखते हैं, 'क्या चल क्या रहा है यार, मौत जैसे मज़ाक हो गई है। मैं अपने सभी प्रिय लोगों के गले लग कर थोड़ी देर चुप रहना चाहता हूँ फिर लगता है जैसे मौका नहीं मिलेगा। सबके मरने में थोड़ा थोड़ा मरते अचानक मर जाना है एक दिन। सब जा रहे हैं बारी-बारी जैसे कोई ज़रूरी कार्यक्रम हो रहा कहीं। यार शशि भाई क्या तरीका है ये आज सुबह में आपके लिए लिखा एक स्टेटस दिखा रहा था, सोचा था बात करूंगा। सोचता ही रह गया।'
लेखक विवेक मिश्रा कहते हैं, 'ये क्या सुन रहा हूं यार...जैसे बिना घड़ी देखे फोन घुमा देते थे, वैसे ही बेवक्त दुनिया से चल दिए।'
उमाशंकर सिंह परमार लिखते हैं, 'शशिभूषण जी सबके प्रिय रहे , फोन में बात हो या फेसबुक में, मजाक हँसी चुहल से भरी आत्मीयता उनका स्थाई भाव रही।'