NRC-NPR पर ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा- भारत के अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का उल्लंघन न करे मोदी सरकार

Update: 2020-04-10 11:28 GMT

ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि भारत सरकार की नीतियों ने पूरे देश में मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों में भय पैदा करने वाली भीड़ को हिंसा और पुलिस की निष्क्रियता के लिए दरवाजा खोल दिया है...

ह्यूमन राइट्स वॉच ने एक रिपोर्ट जारी कर कहा कि भारत का नया नागरिकता कानून भेदभावपूर्ण है। भारत की नीतियों ने मुसलमानों के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा दिया है। हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार ने दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम को अपनाया, जो पहली बार धर्म को नागरिकता का आधार बनाता है। रिपोर्ट के मुताबिक यह अधिनियम 'अवैध प्रवासियों' की पहचान करने के लिए एक योजनाबद्ध राष्ट्रव्यापी सत्यापन प्रक्रिया से लाखों भारतीय मुसलमानों के नागरिकता के अधिकारों को खतरे में डाल सकता है।

ह्यूमन राइट्स वॉच ने 'गद्दारों को गोली मारो : भारत की नई नागरिकता नीति के तहत मुसलमानों के साथ भेदभाव' नाम से एक 82 पन्नों की रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि जब सरकार समर्थकों ने नई नागरिकता नीति का विरोध करने वालों पर हमला किया था तो पुलिस और अन्य अधिकारी बार-बार हस्तक्षेप करने में विफल रहे। पुलिस द्वारा इस नई नागरिकता नीति के आलोचना और शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वालों पर अत्यधिक घातक बल का उपयोग किया गया।

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ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया की डायरेक्टर मीनाक्षी गांगुली ने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोविड-19 के खिलाफ एकजुट लड़ाई की अपील तो की है लेकिन मुस्लिम विरोधी हिंसा और भेदभाव के खिलाफ लड़ाई में एकता के लिए अभी तक कोई आह्वाहन नहीं किया है। गांगुली ने कहा कि सरकार की नीतियों ने पूरे देश में मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों में भय पैदा करने वाली भीड़ को हिंसा और पुलिस की निष्क्रियता के लिए दरवाजा खोल दिया है।

ह्यूमन राइट्स वॉच के मुताबिक यह रिपोर्ट दिल्ली, असम और उत्तर प्रदेश के कानूनी विशेषज्ञों, शिक्षाविदों, कार्यकर्ताओं और पुलिस अधिकारियों, पीड़ितों के साथ 100 से ज्यादा साक्षात्कारों पर आधारित है। नया संशोधित नागरिता कानून पड़ोसी मुस्लिम बहुल देश अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के अनियमित प्रवासियों को शरण प्रदान करने के लिए फास्ट ट्रैक का रास्ता देता है लेकिन यह मुसलमानों को छोड़ देता है। 'अवैध प्रवासियों की पहचान' करने के उद्देश्य से भाजपा सरकार एनआरसी, एनपीआर के माध्यम से देशव्यापी नागरिकता सत्यापन प्रक्रिया लाने पर जोर दे रही है। जबकि कोरोना वायरस के प्रसार के चलते एनपीआर के काम को टाल दिया गया है। गृहमंत्री और अन्य भाजपा नेताओं के बयानों से आशंका जताई जा रही है कि लाखों भारतीय मुसलमानों से उनसे नागरिकता के अधिकार छीन लिए जा सकते हैं जिनमें से कईयों के परिवार देश में पीढ़ियों से रह रहे हैं और उनका बहिष्कार किया जा सकता है।

संयुक्त राष्ट्र और कई सरकारों ने धर्म के आधार पर नागरिकता कानून को भेदभावपूर्ण बताते हुए सार्वजनिक रूप से आलोचना की है लेकिन भाजपा के पदाधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों का मजाक उड़ाया और उनको धमकियां दी। जबकि उनके (सरकार के) कई समर्थक आलोचकों और सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों पर भीड़ के हमलों में शामिल रहे हैं। भाजपा के कुछ नेताओं के द्वारा उन्हें (प्रदर्शनकारियों को) 'देशद्रोही' बताकर 'गोली मारने' को कहा गया।

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दिल्ली में फरवरी 2020 में सांप्रदायिक झड़प और मुसलमानों पर हिंदू भीड़ के हमलों में 50 से अधिक मौतें हुईं। हिंसा के वीडियो और सबूत पुलिस की भूमिका को बताते हैं। एक घटना में पुलिस अधिकारियों ने भीड़ के हमलों में घायल पांच मुस्लिम लोगों के एक समूह को पीटा, उन्हें ताना दिया औरर उन्हें अपमानित कर राष्ट्रगान गाने का आदेश दिया। इनमें से ए आदमी की बाद में मौत हो चुकी है।

भाजपा शासित राज्यों (विशेषकर उत्तर प्रदेश में) में प्रदर्शनों के दौरान कम से कम 30 लोग मारे गए थे। अन्य विरोध प्रदर्शनों के दौरान जब सरकार समर्थकों ने प्रदर्शनकारियों पर हमला किया तो इसमें पुलिस हस्तक्षेप करने में विफल रही। दिल्ली के एक विश्वविद्यालय का एक छात्र जो भाजपा समर्थक समूह के हमले में घायल हो गया था उसने बताया कि जब हिंसा भड़की तब पुलिस परिसर में मौजूद थी। हमने उनसे मदद मांगी और लेकिन हमलावरों से बचने के लिए हम वहां से निकल गए लेकिन पुलिस कभी हमारी सहायता के लिए नहीं आई।

नआरसी ने भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में पहले से ही लगभग दो मिलियन (करीब 19 लाख) लोगों को मनमाने ढंग से बंदी और राज्यहीनता के खतरे में छोड़ दिया है। अगस्त 2019 में असम यह रजिस्टर पूरा करने वाला पहला राज्य बन गया। ह्यूमन राइट्स वॉच ने पाया कि असम में प्रक्रिया में मानकीकरण का अभाव था जिसके कारण अधिकारियों द्वारा मनमाने और भेदभावपूर्ण निर्णय लिए जाते थे और उन गरीब निवासियों पर अनुचित मुसीबत डाल दी जिनके पास नागरिकता के दावे को साबित करने के लिए पहचान के दस्तावेज नहीं थे। इसमें महिलाएं सबसे अधिक प्रभावित हुईं क्योंकि पुरुषों की तुलना में उनके पास दस्तावेजों तक पहुंच नहीं थी। असम की इस प्रक्रिया ने राष्ट्रव्यापी नागरिकता रजिस्ट्री पर आशंकाओं को बढ़ा दिया है।

ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि असम में जो फॉरेन ट्रिब्यूनल नागरिकता तय करते हैं उनमें पारदर्शिता की कमी है। अधिकार समूहों और मीडिया ने बताया था कि स्पष्ट राजनीतिक दबाव के कारण हिंदुओं की तुलना में ज्यादा मुसलमानों को विदेशी घोषित करने की कोशिश की गई। यहां तक ​​कि कुछ सरकारी अधिकारियों और सैन्य कर्मियों को भी अनियमित अप्रवासी घोषित किया गया।

क महिला जिसका परिवार फॉरेन ट्रिब्यूनल में अपनी नागरिकता के दावों को साबित नहीं कर सका, उसने कानूनी लड़ाई के लिए अपने घर की दो गायों, मुर्गियों और बकरियों को तक बेच दिया। महिला ने कहा कि अब हमारे पास बेचने के लिए कुछ भी नहीं है।

नागरिकता संशोधन अधिनियम भारत के अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का उल्लंघन करता है क्योंकि यह जाति, रंग, वंश या राष्ट्रीयता के आधार पर किसी को नागरिकता से वंचित करता है। भारत सरकार को नागरिकता संशोधन को निरस्त करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भविष्य की किसी भी शरणार्थी नीति धर्म के आधार पर भेदभाव न करे और अंतरराष्ट्रीय कानूनी मानकों का अनुपालन करे।

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ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि जब तक मानकीकृत प्रक्रियाओं को स्थापित करने के लिए सार्वजनिक परामर्श नहीं होते हैं, राष्ट्रव्यापी नागरिकता सत्यापन परियोजना को छोड़ देना चाहिए और इस प्रक्रिया में यह सुनिश्चित करें कि यह गरीब, अल्पसंख्यक समुदायों, प्रवासी या आंतरिक रूप से विस्थापित आबादी और महिलाओं पर अनुचित मुसीबत डाले।

गांगुली ने कहा, 'भारत सरकार ने नागरिकता सत्यापन प्रक्रियाओं से नागरिकता कानून को नष्ट करने की कोशिश की है, लेकिन भाजपा नेताओं द्वारा विरोधाभासी, भेदभावपूर्ण और घृणा से भरे दावों के कारण अल्पसंख्यक समुदायों को आश्वस्त करने में विफल रही है। सरकार को तुरंत उन नीतियों को उलट देना चाहिए जो अंतर्राष्ट्रीय कानूनी दायित्वों का उल्लंघन करते हैं।'

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