फीस वृद्धि के खिलाफ आइआइटी के छात्र भूख हड़ताल पर

Update: 2017-07-04 12:57 GMT

फीस वृद्धि के साथ साथ यहां के छात्र प्रबंधन की चालबाजियों से भी खफा हैं। वे कहते हैं कि प्रबंधन अपने ही छात्रों से ऐसा बर्ताव कर रहा है जैसे कोई दुश्मन मुल्क से करता है...

विष्णु शर्मा की रिपोर्ट 

आईआईटी मुम्बई के एमटेक और पीएचडी कोर्स में फीस वृद्धि के खिलाफ छात्र भूख हड़ताल कर रहे हैं। पिछले दिनों से जारी विरोध प्रदर्शन और रैलियों से जब बात नहीं बनी तो थक हार कर यहां के छात्रों कल 3 जुलाई से भूख हड़ताल करने का फैसला किया। हड़ताल के जरिए वे कालेज प्रशासन से फीस वृद्धि को वापस लेने की मांग कर रहे हैं।

मई में प्रशासन ने इन छात्रों की फीस में 100 से 300 प्रतिशन की वृद्धि की थी। हाॅस्टल फीस में 300 प्रतिशत, परिक्षा फीस में 100 प्रतिशत और पंजीकरण, मेडिकल और अन्य फीस में लगभग 100 प्रतिशत की वृद्धि की गई है।

विधार्थियों का कहना है कि फीस वृद्धि का निर्णय काॅलेज प्रबंधन ने एक तरफा तौर पर लिया है और विधार्थियों से इस पर किसी भी प्रकार का विचार विमार्श नहीं किया गया। छात्रों के दवाब में 8 जून जो सफाई डीन (छात्र कल्याण) के कार्यालय ने छात्रों को दी है उसे यहां के छात्र अपर्याप्त बता रहे हैं।

फीस वृद्धि के साथ साथ यहां के छात्र प्रबंधन की चालबाजियों से भी खफा हैं। वे कहते हैं कि प्रबंधन अपने ही छात्रों से ऐसा बर्ताव कर रहा है जैसे कोई दुश्मन मुल्क से करता है। फीस बढ़ाने का निर्णय प्रशासन ने ऐन ऐसे वक्त किया जब आगामी सैमिस्टर की फीस भरने की अंतिम तीथि एकदम करीब है। छात्रों का कहना है कि ऐसा इसलिए किया गया है ताकि विरोध कर रहे छात्रों पर दवाब बनाया जा सके।

यह पूछे जाने पर कि फीस के साथ साथ उनको प्राप्त होने वाली छात्रवृत्ति में भी बढोतरी की गई है तो इस पर एक छात्र का कहना है कि फीस के अनुपात में यह वृद्धि बेहद मामूली है।

यहां के छात्रों का कहना है कि आईआईटी मुम्बई और अन्य आईआईटी में जिस तरह के शोध छात्र-छात्राएं करते हैं वैसे शोधों के लिए दुनिया भर की कॉरर्पोरेट संस्थाए सालाना करोड़ों डालर खर्च करती हैं। साथ ही, पीएचडी करने वाले बहुत से छात्रों पर अपने परिवार की जिम्मेदारी भी होती है। उनके मां-बाप और बीवी बच्चे होते हैं जिनकी देखभाल का जिम्मा भी उन्ही पर होता है।

प्रदर्शन कर रहे एक छात्र का कहना है कि आईआईटी में एम.टेक अथवा पीएचडी करने वाले छात्र अध्ययन और शोध के प्रति लगन के कारण बी. टेक. के बाद कई लाख के पैकज को छोड़ कर पीएचडी कोर्स में दाखिला लेते हैं। ये छात्र विदेश नहीं जाते और भारत में ही रह कर अपने देश की सेवा करना चाहते हैं ऐसे में इनको प्रोत्साहन देने की जरूरत है।

अपने कार्यकाल में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भी शोध को विस्तार दिए जाने पर लगातार बल दिया है। प्रत्येक मौके पर उन्होंने शोध संख्या और गुणस्तर को बढ़ाने की अपील की है। ऐसे में वर्तमान सरकार द्वारा शोध संस्थाओं में लगातार की जा रही कटौतियां सरकार की कथनी और करनी के बीच के अंतर को साफ दिखाती हैं।

हाॅस्टल के मासिक किराए को 500 रूपए से बढ़ाकर 2000 रूपए करने का कारण काॅलेज प्रबंधन ने यह बताया है कि इस श्रेणी में 1997 से फीस में वृद्धि नहीं हुई थी। छात्रों का कहना है कि यह कोई कारण नहीं है जिसके आधार पर हाॅस्टल फीस में 300 प्रतिशत की वृद्धि की जाए। वैसे भी जब सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाले आवास का किराया भी इस आधार पर नहीं बढ़ाया जाता तो यहां पढ़ने वाले विधार्थियों के लिए प्रबंधन ऐसा तर्क क्यों दे रहा है।

दूसरी और मेडीक्लेम फीस में की गई वृद्धि (1000 से बढ़ाकर 2000) पर डीन का स्पष्टीकरण है कि इसे दो लाख रूपये के बीमा कवरेज के आधार पर बढ़ाया गया है। छात्रों ने पूछा है कि प्रबंधन यह बताए कि 10 हजार छात्रों में कितने ऐसे छात्र हैं जिनका वार्षिक चिकित्सा खर्च एक लाख रूपये से अधिक आता है।

ऐसे ही कई श्रेणियों में की गई फीस वृद्धि का कोई ठोस जवाब आईआईटी प्रबंधन के पास नहीं हैं।

गौरतलब है कि पिछले साल सरकार ने आईआईटी के स्नातक कोर्स की सलाना फीस में दो गुणा वृद्धि करते हुए इसे 90 हजार प्रति वर्ष से बढ़ा कर 2 लाख प्रति वर्ष कर दिया था। ऐसा लगता है कि वर्तमान सरकार भारत की अधिकांश आबादी को शिक्षा से महरूम करने पर अमादा है।

 

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