क्रिकेट अगर खेल होता तो महिला टीम की जीत देश की खबर न होती

Update: 2017-07-03 17:24 GMT

हर बात पर बाल की खाल उधेड़ने वाले हमारे सोशल मीडिया ने भी महिला क्रिकेट टीम की जीत को खास अहमियत नहीं दी। वहीं अगर भारत—पाकिस्तान के पुरुष खिलाड़ियों के बीच मैच हो रहा होता, तो जैसे पूरा देश ठप्प पड़ गया होता, खेलप्रेमियों की सांसें थम गई होतीं...

प्रेमा नेगी

भारतीय महिला क्रिकेट टीम के लिए 2 जुलाई का दिन यादगार दिनों में से एक था। आईसीसी महिला क्रिकेट विश्व कप में भारत ने पाकिस्तान को 95 रन से हराकर शानदार जीत दर्ज की। यह उसकी विश्वकप के लिए खेले गए मैचों में तीसरी जीत थी। मगर महिला टीम की इतनी बड़ी जीत मीडिया के लिए कोई मायने नहीं रखती। अलबत्ता तो किसी ने खास तवज्जो देना जरूरी नहीं समझा, और किसी ने सिर्फ एक लाइन की हेडलाइन बनाकर चलता कर दिया तो अखबारों ने एक कोने में जगह देकर इतिश्री कर ली।

हर बात पर बाल की खाल उधेड़ने वाले हमारे सोशल मीडिया ने भी महिला क्रिकेट टीम की जीत को खास अहमियत नहीं दी। वहीं अगर भारत—पाकिस्तान के पुरुष खिलाड़ियों के बीच मैच हो रहा होता, तो जैसे पूरा देश ठप्प पड़ गया होता, खेलप्रेमियों की सांसें थम गई होतीं। सारे मुद्दे उसके आगे धरे के धरे रह जाते। ज्यादा पहले नहीं अभी थोड़े दिन पहले हुई चैंपियनशिप को ही देख लें, जिसमें हर अखबार, टीवी चैनल के लिए क्रिकेट में देशभक्ति कुलाचें मार रहा था। मानो भारत—पाकिस्तान मैच नहीं, युद्ध होने जा रहा हो।

अगर भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम पाक से मैच जीतती तो हैडिंगें कुछ यूं होती, भारत ने पाकिस्तान को रौंदा, पाकिस्तान ढेर, यहां के हम सिकंदर....आदि—आदि।

ऐसे में सवाल उठता कि क्रिकेट वाकई खेल है, अगर खेल होता तो बेशक कल महिला टीम को मिली इतनी बड़ी उपलब्धि को भी वैसे ही कवरेज मिलनी चाहिए थी, जितनी पुरुष टीम को मिलती है। क्या खेलप्रेमियों को महिला खिलाड़ियों को खेलते देखने में वो मजा नहीं आता, जो मर्दों को खेलते देखने में आता है।

दरअसल, पुरुष क्रिकेट का यह युद्ध पैसे की भरमार कराता है। क्या खिलाड़ी, क्या स्पॉन्सर क्या चैनल सबकी झोली भर जाती है. लेकिन झोली महिला क्रिकेट नहीं भर सकता इसलिए उसकी कोई चर्चा नहीं है। इसलिए भारत में महिला क्रिकेट कोई खेल नहीं है। अगर आपको भरोसा न हो तो दस लोगों से पूछकर देखिये वह जानते ही नहीं होंगे कि महिला क्रिकेट जैसी कोई चीज होती होगी।

सवाल यह भी कि अगर खेल खेल होता तो महिला क्रिकेट टीम की भी जरूर चर्चा होती, क्योंकि वो बहुत अच्छा खेली। मगर यह चर्चा इसलिए नहीं क्योंकि हमारी पुरुष क्रिकेट टीम बाजार में तब्दील हो चुकी है, इसलिए उसकी चर्चा है। चूंकि महिला क्रिकेट टीम को उस तरह स्पांसर नहीं मिलते जैसे पुरुष टीम को मिलते है।, उसकी बोली नहीं लगती, न उसके दलाल हैं और न ही जब वह खेल रहे होते हैं तो मीडिया को करोड़ों रुपए के विज्ञापन मिलते हैं, इसलिए उसका कहीं जिक्र नहीं। हमारा मीडिया तो बाजार का भोंपू है, उसके लिए खेल का मतलब सिर्फ मर्दों द्वारा खेला जाना वाला क्रिकेट है।

कल 2 जुलाई को इंग्लैण्ड में आयोजित मैच में मिताली राज की कप्तानी में हमारी महिलाओं ने पाकिस्तानी टीम को मात्र 76 रनों पर आलआउट कर दिया। बाएं हाथ की स्पिनर एकता बिष्ट का खेल तो गजब का था, जब उन्होंने मात्र 26 रन देकर छह विकेट ले लिए। हमारी लड़कियों ने मात्र दो पाक खिलाड़ियों को दहाई का आंकड़ा पार करने दिया था, बाकि को इकाई में समेटकर रख दिया था।

ऐसा गजब का अगर मर्द खेल रहे होते, तो मीडिया क्रिकेटरों के स्तुतिगान में लग जाता और दूसरे दिन के अखबार जीत की खबरों से पटे होते, वहीं मैच जीतने के साथ ही पटाखे फोड़ने की जैसे होड़ लग जाती।

गौर करने वाली बात यह भी है कि आईसीसी महिला विश्वकप में भारत की यह तीसरी जीत थी। इससे पहले लड़कियां इंग्लैण्ड और वेस्टइंडीज से भी मैच जीत चुकी थीं।

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