इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह उस राजनीति के शिकार हुए हैं जो अपने फायदे के लिए ज़हर पैदा करती है : रवीश कुमार

Update: 2018-12-04 12:10 GMT

गाय के नाम पर उपद्रवी भीड़ को इतना हौसला किसने दिया है, क्या वह गाय का नाम लेते हुए देश की कानून व्यवस्था से आज़ाद हो चुकी है....

रवीश कुमार, वरिष्ठ टीवी पत्रकार

आज यूपी पुलिस के जवानों और अफसरों के घर क्या खाना बना होगा? मुझे नहीं मालूम। इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की तस्वीर उन्हें झकझोरती ही होगी। नौकरी की निर्ममता ने भले ही पुलिस बल को जिंदगी और मौत से उदासीन बना दिया हो लेकिन सांस लेने वाले इन प्राणियों में कुछ तो सवाल धड़कते ही होंगे कि आख़िर कब तक ये भीड़ पुलिस को चुनौती देकर आम लोगों को मारेगी और एक दिन पुलिस को भी मारने लगेगी।

आम तौर पर हम पत्रकार पुलिस को लेकर बेरहम होते हैं। हमारी कहानियों में पुलिस एक बुरी शै है। लेकिन इसी पुलिस में कोई सुबोध कुमार सिंह भी है जो भीड़ के बीच अपनी ड्यूटी पर अड़ा रहा, फ़र्ज़ निभाते हुए उसी भीड़ के बीच मार दिया गया।

एडीजी लॉ एंड आर्डर आनंद कुमार को सुन रहा था। अनुभवी पुलिस अफसर की ज़ुबान सपाट तरीके से घटना का ब्यौरा पेश कर रही थी। पुलिस को भावुक होने का अधिकार नहीं। वो सिर्फ अपने राजनीतिक आका के इशारे पर भावुक होती है और लाठियां लेकर आम लोगों को दौड़ा देती है। मगर आनंद कुमार के सपाट ब्यौरे ने उस भीड़ के चेहरे को उसी निर्ममता से उजागर कर दिया जिसके बीच इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह मार दिए गए।

उनका साथी सिपाही भी गंभीर रूप से घायल है। आनंद कुमार की वेदना ब्यौरे के पीछे दिखती जा रही थी, मगर अपने मातहत की मौत के वक्त भी वे उसी फर्ज़ से बंधे होने की नियति को पूरा कर रहे थे, जिसने उन्हें इशारा समझने के लायक तो बना दिया मगर ड्यूटी करने लायक नहीं रखा। मैं चाहता हूं कि आनंद कुमार की बात को शब्दश: यहां पेश किया जाए, ताकि आप पूरा बयान पढ़ सकें। जान सकें कि क्या-क्या हुआ। देख सकें कि क्या कुछ हो रहा था।

"आज की यह ब्रीफिंग एक दुखद घटना के बारे में है जो जनपद बुलंदशहर में थाना क्षेत्र स्याना में घटित हुई। आज सुबह साढ़े दस-ग्यारह बजे थाना स्याना में सूचना मिली कि ग्राम माहू के खेतों में कुछ गौवंश के अवशेष पड़े हुए हैं। इसकी सूचना वहां के भूतपूर्व प्रधान रामकुमार द्वारा दी गई, जिससे वहां के प्रभारी निरीक्षक सुबोध कुमार सिंह तुरंत मौके पर गए और वहां जाकर उन्होंने मौके का मुआयना किया।

उत्तेजित ग्रामीणों को वहां पर समझाया-बुझाया गया कि इस पर कार्रवाई की जाएगी। और यह समझा बुझाकर कि पुलिस अपनी कार्रवाई कर रही है तब तक वहां के एसडीएम और सीओ को भी सूचना हुई कि मौके पर पहुंचें। इस बीच उत्तेजित ग्रामीण जो अवशेष थे जानवरों के, संभावित तौर पर गौवंश के, उनको ट्रैक्टर-ट्राली पर डालकर चौकी चिंगरावटी में गए। उसके 10 मीटर पहले वहां पर ट्रैक्टर-ट्राली से स्याना-गढ़ रोड को ब्लाक कर दिया। वहां जो भी बल्लम डालियां पड़ी थीं उसे लगाकर और ट्रैक्टर-ट्राली भी लगाकर रोड को जाम कर दिया।

इस कार्रवाई पर वहां के प्रभारी निरीक्षक, चौकी इंचार्ज, सीओ ने ग्रामीणों से वार्ता की। वार्ता में उनको समझाया-बुझाया कि आवश्यक कार्रवाई की जाएगी। अभियोग दर्ज किया जाएगा। पहले शुरूआती दौर में ग्रामीण सहमत हो गए लेकिन बाद में जाम खोलने की बात हुई जिसे लेकर उत्तेजित ग्रामीणों में आक्रोश व्याप्त हो गया। ग्रामीणों ने चौकी चिंगरावटी पर भारी पथराव किया। पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने का प्रयास किया। लाठी चार्ज किया, माइल्ड। हटाने का प्रयास किया। लेकिन भीड़ में 400 के करीब लोग थे, तीन गांव के थे, महाव, चिंगरावटी और नयावास। उन लोगों ने वहां पर जो करीब 15 वाहन थे, उनको डैमेज किया। तीन-चार वाहनों में आग भी लगा दी। भारी संख्या में पथराव होने के दृष्टिगत पुलिस ने हवाई फायर किया।

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एक होमगार्ड था, उसने भी 303 से हवाई फायर किए। ग्रामीणों ने कट्टे द्वारा फायरिंग की। इसके बाद इसी फायरिंग में वहां के इंस्पेक्टर को संभवत: बड़ा ब्रिकबैट (पत्थर) उनके सर पर लगा। हेड इंजरी हुई। उसके बाद प्रयास किया कि थाने की गाड़ी में अस्पताल ले जाएं लेकिन ग्रामीण वहां भी आ गए। फिर भारी मात्रा में पथराव किया। खैर वहां से किसी तरीके से सुबोध कुमार सिंह को बुलंदशहर भेजा गया, उपचार के लिए, लेकिन उपचार के दौरान उनकी दुखद मृत्यु हो गई।"

आप इस ब्यौरे को पूरा पढ़िए। अंदाजा कीजिए कि हमने आसपास कैसी भीड़ बना दी है। मैंने अपनी किताब दि फ्री व्यास में एक रोबो-रिपब्लिक की बात की है जो हर तरफ तैयार खड़ी है जो ज़रा सी अफवाह की चिंगारी पर किसी को घेरकर मार सकती है। सांप्रदायिक बातों से भरते-भरते एक नागरिक को रोबोट में बदल दिया जाता है, जो खुद अपने स्तर पर हिंसा को अंजाम दे दे जिसके बाद हिंसा की जवाबदेही किसी नेता पर नहीं आए। पहले की तरह किसी पार्टी या मुख्यमंत्री पर न आए।

आज उसी रोबो-रिपब्लिक की एक भीड़ ने इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह को मार दिया। आप देखेंगे कि इस हिंसा की ज़िम्मेदारी किसी पर नहीं आएगी। पुलिस जब दूसरों के मारे जाने पर इस भीड़ को पकड़ नहीं पाई तो अपने साथी की हत्या के इतने आरोपों को कैसे सज़ा तक पहुंचा पाएगी।

पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आ गई है। इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की मौत गोली लगने से हुई है। जो भी वीडियो हासिल है, उसे आप ग़ौर से देखिए। किस उम्र के लड़के पुलिस पर पथराव कर रहे हैं। इतना कट्टा कहां से आया, गोलियां चलाने की हिम्मत कैसे आई जो एक पुलिस इंस्पेक्टर को घेर लेती है और अंत में मार देती है। गाय के नाम पर उसे इतना हौसला किसने दिया है। क्या वह गाय का नाम लेते हुए देश की कानून व्यवस्था से आज़ाद हो चुकी है?

इस घटना से यूपी पुलिस को सोचना पड़ेगा। उसे पुलिस बनने का ईमानदार प्रयास करना होगा। वर्ना उसका इक़बाल समाप्त हो चुका है। पुलिस का इक़बाल अफसरों के जलवे के लिए बचा है। वैसे वो भी नहीं बचा है। आपको याद होगा अप्रैल 2017 में सहारनपुर ज़िले में तत्कालीन एसएसपी लव कुमार के सरकारी बंगले पर भीड़ घुस गई थी। यूपी पुलिस चुप रही। उसे अपने राजनीतिक आका के सामने यस सर, यस सर करना ज़रूरी लगा। क्या उस मामले में कोई कार्रवाई हुई? जब यूपी पुलिस के आईपीएस अफ़सर अपने आईपीएस साथी के प्रति ईमानदार नहीं हो सके तो कैसे उम्मीद की जाए कि वे इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह के हत्यारों को पकड़ने के मामले में ईमानदारी करेंगे।

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यह कोई पहली घटना नहीं है। मार्च 2013 में प्रतापगढ़ के डीएसपी ज़ियाउल हक़ को इसी तरह गांव वालों ने घेर कर मार दिया। मुख्य आरोपी का पता तक नहीं चला। जून 2016 में मथुरा में एसपी मुकुल द्विवेदी भी इसी तरह घेरकर मार दिए गए। 2017 में नई सरकार आने के बाद न जाने कितने पुलिस वालों को मारने की घटना सामने आई थी। नेता खुलेआम थानेदारों को लतियाने जूतियाने लगे थे। कई वीडियो सामने आए मगर कोई कार्रवाई हुई, इसका पता तक नहीं चला।

यूपी पुलिस आज की रात ख़ुद का चेहरा कैसे देख पाएगी। उसके जवान व्हाट्सऐप में सुबोध कुमार सिंह की गिरी हुई लाश को देखकर क्या सोच रहे होंगे? चार साल में जो ज़हर पैदा किया है वो चुनावों में नेताओं की ज़ुबान पर परिपक्व हो चुका है। हमारे सामने जो भीड़ खड़ी है, वो पुलिस से भी बड़ी है।

सुबोध कुमार सिंह भारत की राजनीति के शिकार हुए हैं जो अपने फायदे के लिए ज़हर पैदा करती है। नफ़रत की आग पड़ोस को ही नहीं जलाती है। अपना घर भी ख़ाक कर देती है। यूपी पुलिस के पास कोई इक़बाल नहीं बचा है सुबोध कुमार सिंह को श्रद्धांजलि देने का। उसे अगर शर्म आ रही होगी तो वह शर्म कर सकती है। आज की रात सिर्फ यूपी पुलिस ही नहीं, हम सबके शर्मिंदा होने का दिन है।

(यह लेख पहले एनडीटीवी में प्रकाशित)

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