2018 से ही उत्तराखण्ड मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष पद पड़ा है खाली

Update: 2019-12-10 15:14 GMT

उत्तराखंड के राज्य मानवाधिकार आयोग में बीते एक साल से ज्यादा समय बीत जाने के बाद नहीं हुई अध्यक्ष की नियुक्ति, मानवाधिकार दिवस पर जनज्वार ने जाना उत्तराखंड के गांवों का हाल...

अल्मोड़ा से किशोर कुमार की रिपोर्ट

ज विश्व मानवाधिकार दिवस है, यानी दुनियाभर के मनुष्यों के अधिकारों को एक समान मान्यता देने का दिन। इस मौके पर हमने यह जानने की कोशिश की कि उत्तराखंड में मानवाधिकार आयोग की क्या हालत है और नागरिकों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए वह क्या और कैसे काम कर रहा है। इसको लेकर जब जनज्वार ने राज्य मानवाधिकार आयोग को फोन कॉल किया तो मानवाधिकार आयोग के कर्मचारियों-अधिकारियों ने चौंकाने वाली जानकारी दी।

मानवाधिकार की आयोग के अधिकारियों ने बातचीत में बताया कि राज्य मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष का पद अक्टूबर 2018 के बाद से खाली है और मात्र 1 मेंबर हैं न्यायमूर्ति अखिलेश चंद्र शर्मा, जिनके ऊपर उत्तराखंड के लोगों के अधिकारों की सुरक्षा की जिम्मेदारी है। एक करोड़ से अधिक की जनसंख्या के अधिकारों की रक्षा करने की जिम्मेदारी जिस आयोग के पास है वहां बीते एक साल से अधिक समय होने के बावजूद अध्यक्ष नियुक्त नहीं किया गया है।

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ह जानने के बाद जब राज्य मानवाधिकार आयोग से पूछा गया कि आप लोग मानवाधिकार की रक्षा कैसे करते हैं तो जवाब मिला कि जिनके मानवाधिकारों का हनन होता है वे लोग मानवाधिकार को प्रार्थना पत्र लिखते हैं उसके बाद कार्रवाई होती है।

Full View में ग्रामीण क्षेत्र हो या शहरी क्षेत्र लोग मानवाधिकार के प्रति कम जागरूक हैं। अधिकांश जनसंख्या को मानवाधिकार आयोग कहां है और कैसे शिकायत करनी है, इसकी तक जानकारी नहीं है। पिथौरागढ़ के झुलाघाट गांव में अनुसूचित जाति के कई लोग और विशेषकर महिलाएं जो दूसरों के घरों और खेतों में काम करती हैं, उनको लगभग बेगारी करनी पड़ती है। महिलाओं को जब पूछा गया कि खेत में काम करने का आपको कितना पैसा मिलता है तो वह बताती हैं कि हम खेतों में सुबह के समय चार-पांच घंटे काम करते हैं जिसके बदले में 30-40 रुपये ही मिलते हैं।

रकार भी मानवाधिकार के नाम पर केवल खानापूर्ति करना चाहती है क्योंकि जब लोगों को स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार से जुड़ी सुविधाएं नहीं मिलेंगी। अधिकारों की क्या स्थिति होगी सोचा जा सकता है। उधम सिंह नगर जिले के सरगुडा गांव के युवक गजेंद्र पाल कहते हैं कि आज विश्व मानवाधिकार दिवस है लेकिन यह केवल नाम का मानव अधिकार दिवस है। अगर सही मायनों में जाना जाए तो वाकई में यह मानवाधिकार दिवस नहीं है क्योंकि अगर हमने गांव की बात करें, जहां मैं रहता हूं मेरे घर की हालत बदतर है। मैं जिसघर में रहता हूं वहां बरसात में घर पर पानी टपकता है। रहने में बहुत दिक्कत होती है।

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जेंद्र पाल आगे बताते हैं, 'हमारे यहां विभागों से अधिकारी लोग आते रहते हैं, हमने उनसे कई बार कहा कि हमें रहने के लिए मकान चाहिए तो वो लोग केवल आश्वासन देते हैं। कई साल बीत गए, कई शासन-सत्ताएं बदल गईं लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ। वहीं जिनके पास मकान है, आर्थिक स्थिति अच्छी है उनको शासन के द्वारा योजनाओं का लाभ दिया जाता है। '

गजेंद्र आगे बताते हैं, 'गरीब और मजदूर वर्ग के लोगों की कोई सुनवाई नहीं है। मेरे पिता भी मजदूरी करते हैं, हमारी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि हम अपने लिए घर बना सकें। हमारे यहां अस्पताल 25 किलोमीटर दूर है। वहां भी हम जैसे कैसे चले जाएं लेकिन वहां भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।'

Full View सिंह नगर के खटीमा के रहने वाले मुकेश कुमार बताते हैं, मेरी घर की हालत इतनी खराब है कि मैं अच्छी शिक्षा नहीं लेपाता हूं। मेरे पिता मजदूरी करके हमें पढ़वाते हैं। मेरी चार बहनें हैं, उन्हें भी देखना होता है। हमारे घर की हालत इतनी खराब है कि घर में पढ़ने के लिए भी जगह नहीं होती है, घर की छत से पानी टपकता रहता है।

मुकेश आगे बताते हैं, 'पिता की मजदूरी से दो जून की रोटी भी पूरी नहीं पाती है। सरकार से हम कई बार हम मदद की गुहार लगा चुके हैं लेकिन हमारी कोई सुनवाई नहीं होती है। अस्पताल काफी दूर है और इलाज के लिए हमारे पास इतने पैसे भी नहीं होते हैं कि बीमार होने पर इलाज करवा पाएं।'

 

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