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राजनीति

देश में उठा लाश के मानवाधिकार का मामला, कोर्ट ने कहा पुलिस अधिकारी नहीं आरोपी

Prema Negi
23 Jun 2019 8:06 AM GMT
देश में उठा लाश के मानवाधिकार का मामला, कोर्ट ने कहा पुलिस अधिकारी नहीं आरोपी
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हाईकोर्ट ने कहा किसी व्यक्ति के शव का अंतिम संस्कार करने में विफल रहने पर मृतक के मानवाधिकारों का नहीं होता उल्लंघन...

जेपी सिंह की रिपोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर पीठ के जस्टिस अतुल श्रीधरन की एकल पीठ ने राज्य के एडीजी और आईपीएस अधिकारी राजेंद्र मिश्रा के पिता कुलमणि मिश्रा की मौत के बाद अंतिम संस्कार न करके अपने आवासीय परिसर में रखने के विरुद्ध राज्य सरकार द्वारा गठित जाँच और मध्य प्रदेश मानवाधिकार आयोग द्वारा जारी नोटिस को निरस्त कर दिया है।

कोर्ट ने कहा है कि कुछ भी करने की, जो अवैध नहीं है, किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता है। भले ही वह कृत्य स्थापित सामाजिक मान्यताओं के विपरीत ही क्यों न हों। हाईकोर्ट ने इस तर्क से असहमति जताई कि किसी व्यक्ति के शव का अंतिम संस्कार करने में विफल रहने पर मृतक के मानवाधिकारों का उल्लंघन होगा।

एकल पीठ ने कहा है कि याचिकाकर्ताओं के आचरण में स्थापित सामाजिक मान्यताओं से विचलन हो सकता है। यह एक धारणा पर आधारित हो सकता है, जिसे अभी बहुत से लोग नहीं स्वीकार करते, लेकिन याचिकाकर्ताओं को अपनी धारणा और कृत्य में अलग विचार रखने का अधिकार है। एडीजी और आईपीएस अधिकारी राजेंद्र मिश्रा का अपने पिता कुलमणि मिश्रा के शव को अपने घर में रखना कई लोगों को, जो पारंपरिक और अनुरूपवादी हैं, को नागवार लग सकता है, फिर भी किसी भी परिस्थिति में राज्य हस्तक्षेप नहीं कर सकता है और याचियों के निजता के अधिकार को भंग नहीं कर सकता है।

यहां तक कि यह मानते हुए कि एडीजीपी के पिता जीवित नहीं हैं और उन्होंने मानव अवशेष को अपने आवासीय परिसर में रखा है। एकल पीठ ने अंततः यह निष्कर्ष दिया कि इससे राज्य सरकार के हस्तक्षेप करने का आधार नहीं बनता। हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए मध्य प्रदेश मानवाधिकार आयोग के हस्तक्षेप को निरस्त कर दिया।

एकल पीठ ने कहा कि नैतिकता कानून का एक स्रोत हो सकती है, लेकिन यह कानून नहीं है और न ही इसमें कानून का बल है। आज की नैतिकता विधायी प्रक्रिया से कल कानून बन सकती है, लेकिन तब तक समाज की नैतिक मान्यताओं के आधार पर किसी के व्यक्तिगत सोच पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता, जब तक की उस व्यक्ति की इस तरह का आचरण किसी भी मौजूदा कानून का उल्लंघन नहीं करता।

इस प्रकार याचिकाकर्ता संख्या 2 अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक राजेंद्र मिश्रा ने अपने दिवंगत पिता के मानव अवशेषों को अपने आवासीय परिसर में अपने पास रखा है तो इसमें कोई अवैधता नहीं है।

गौरतलब है कि फरवरी 19 में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में एक हैरान करने वाला मामला सामने आया था। राज्य के एडीजी और आईपीएस अधिकारी राजेंद्र मिश्रा के पिता कुलमणि मिश्रा को मृत घोषित कर दिया गया था, लेकिन अधिकारी राजेंद्र मिश्रा पिता के जीवित होने का दावा कर रहे थे। साथ ही वह कई दिनों से अपने पिता की लाश के साथ ही सो रहे थे।

इस मामले की जांच के लिए राज्य सरकार ने पुलिस महकमे के तीन अधिकारियों की एक कमेटी बनाई थी और मानवाधिकार आयोग ने भी नोटिस दिया था। पुलिस मुख्यालय में तैनात अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक राजेंद्र मिश्रा के 84 वर्षीय पिता केएम मिश्रा का भोपाल के एक बंसल हॉस्पिटल में इलाज चल रहा था। उसी दौरान 14 जनवरी को डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। 14 जनवरी की शाम को उनकी मृत्यु हो गई थी और बंसल हॉस्पिटल प्रबंधन ने इसका मृत्यु प्रमाण पत्र भी जारी कर दिया था। उसके बाद एडीजी मिश्रा अपने पिता को चार इमली स्थित अपने सरकारी आवास पर लेकर आ गए और तब से वह कथित तौर पर उनके पिता का शव उनके घर में ही मौजूद है।

जहां एक ओर एडीजी मिश्रा ने दावा किया कि उनके पिता के इलाज में निजी अस्पताल ने असमर्थता जताई और हाथ खड़े कर दिए, जिसके बाद वह अपने पिता को घर ले आए हैं। उनके पिता की हालत गंभीर है, जिसकी वजह से उन्हें कहीं और नहीं ले जा सकते। इस स्थिति में घर पर ही उनका इलाज चल रहा है।

दूसरी तरफ राजेंद्र मिश्रा के पिता का इलाज करने वाले डॉक्टरों का साफ कहना है कि कुलमणि मिश्रा 13 जनवरी को उपचार के लिए अस्पताल लाए गए थे, लेकिन 14 जनवरी को उनकी मौत हो गई थी। उन्हें कई तरह की दिक्कतें थी। उनके शरीर के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। मौत के बाद मृत्यु प्रमाणपत्र भी जारी कर दिया गया था।

यह पूरा मामला बेहद सनसनीखेज़ और हैरत में डालने वाला है। यह प्रकरण तब सामने आया था, जब जनवरी के आख़िरी दिनों में एडीजी मिश्रा के घर आसपास रहने वालों ने शिकायत की कि मिश्रा के घर से अजीब-सी दुर्गंध निकल रही है। इसी बीच मिश्रा के घर पर काम करने वाले पुलिस के दो अर्दली बीमार हुए तो पूरी पोल खुल गई।

मीडिया में छपा कि मौत के बाद भी एडीजी मिश्रा ने अपने पिता के ‘शव’ का अंतिम संस्कार नहीं किया है। एक महीने से शव को वह घर पर रखे हुए हैं और कथित तौर पर टोने-टोटकों में लगे हुए हैं, लेकिन अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक मिश्रा ने अख़बारों में छपी ख़बरों को निराधार क़रार देते हुए दावा किया था कि पिता कुलमणि जीवित हैं।

मध्य प्रदेश मानवाधिकार आयोग ने सख़्त लहज़े में मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव से लेकर डीजीपी और प्रमुख सचिव गृह तक को नोटिस जारी कर 26 मार्च के पहले प्रतिवेदन तलब किया था। इसके विरुद्ध मिश्रा परिवार ने हाईकोर्ट में याचिका डालकर इसे अपनी निजता के हनन का मामला बताया था।

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