जसिंता केरकेट्टा की कविता 'समय की सबसे सुंदर तस्वीर'

Update: 2019-12-19 05:49 GMT

झारखंड की युवा कवयित्री जसिंता केरकेट्टा की देश के विभिन्न हिस्सों में स्त्रियों पर हो रहे अत्याचारों और विश्वविद्यालयों में CAB का विरोध कर रहे छात्रों पर हो रही हिंसा पर झकझोर कर देने वाली कविता 'समय की सबसे सुंदर तस्वीर'

यह समाज जहां

पुरुष के भीतर के स्त्रीत्व की हत्या

बचपन से ही धीरे-धीरे की जाती है

उसके भीतर की स्त्री भी

एक दिन भागकर

किसी विश्वविद्यालय में ही बच पाती है

विश्वविद्यालय में ही युवा

इतिहास, भूगोल, गणित पढ़ते हुए

सीखते हैं समाज बदलना

और अपने ही नहीं

दूसरों के हक के लिए भी घर से निकलना

वे धीरे-धीरे पुरुष से मनुष्य होना सीखते हैं

और साथ संघर्ष करती स्त्रियों को भी

देह से ज्यादा जानने, समझने लगते हैं

विश्वविद्यालय के युवा

आदमी के हक की आवाज उठाते हैं

व्यवस्था के लिए किसी आदमी को

मशीन भर हो जाने से बचाते हैं

लाश बनकर घर से दफ्तर

और दफ्तर से घर लौटते आदमी को

जिंदा होने की वजह बताते हैं

एक आत्माविहीन समाज

जो पुरुषों को स्त्रियों से

सामूहिक दुष्कर्म करना सिखाता है

और उसकी हर हत्या पर

चुप्पी साधे रहता है

जहां सदियों से यही रीति चलती है

उसी समाज के किसी विश्वविद्यालय में

साथ पढ़ती, लड़़ती स्त्रियां

घेरकर एक पुरुष को

पुलिस के निर्मम डंडे से बचाती हैं

विश्वविद्यालय ही पेश कर सकता है

किसी समाज को बेहतर बनाने की नजीर

विश्वविद्यालय से ही निकल सकती है

इस धरती को सुंदर बनाने वाली

समय की सबसे सुंदर तस्वीर...

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