झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 : लोहारदगा के लोग बोले बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या, इसके लिए भाजपा सरकार जिम्मेदार

Update: 2019-11-29 15:11 GMT

झारखंड विधानसभा की 13 सीटों पर सोमवार 30 दिसंबर को होगा मतदान, लोहारदगा सीट के लोगों ने कहा भाजपा के सरकार में युवाओं को नहीं मिल रहा रोजगार, दंगा-फसाद कराती है भाजपा...

जनज्वार। झारखंड विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के लिए एक दिन का समय भी नहीं बचा है। कल चुनाव का पहला दिन है। पहले चरण में मतदान झारखंड के जिन छह जिलों की 13 विधानसभाओं में होंगे, वो लोहरदगा, घुमला, लातेहार, पलामू, गढ़वा और चतरा हैं। ये जिले बॉक्साइट कारखानों, खनन और माओवाद प्रभावित और पिछड़े हैं। जनज्वार की टीम ने लोहरदगा विधानसभा सीट के इलाकों का दौरा किया। टीम ने लोकल ट्रेन से लोहारदगा तक का सफर किया।

स दौरान ट्रेन में सफर कर रहे एक स्थानीय व्यक्ति ने कहा कि जो कुछ भी दंगा फसाद हो रहा है। बेरोजगार युवाओं को रोजगार नहीं दिया जा रहा है। इसके लिए भाजपा जिम्मेदार है। भाजपा के आने से समाज में हिंदू - मुसलमान, मंदिर-मस्जिद का तनाव बढ़ गया है। सरकार अगर ठीक रहती तो आज ऐसा नहीं होता।

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स दौरान प्रभात खबर अखबार के वरिष्ठ पत्रकार गोपी कुंवर से भी चुनावी माहौल के बार में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इन चुनावों में मुख्य रुप से तीन मुद्दे हैं -बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और विकास। लोहरदगा को बॉक्साइट नगरी के रुप में भी जाना जाता है, यहां बॉक्साइट की बहुत सारी खदानें हैं। यहीं से बॉक्साइट उत्तर प्रदेश और झारखंड की विभिन्न फैक्ट्रियों में जाता है, लेकिन लोहरदगा विधानसभा में आज बेरोजगारों की बड़ी फौज खड़ी है। युवा वर्ग को रोजगार नहीं मिल रहा है, इसलिए वे कुंठित होकर मुख्यधारा से भटककर उग्रवाद की ओर जा रहे हैं। सबसे बड़ी समस्या यहां बेरोजगारी है।

स दौरान जब पत्रकार गोपी कुंवर से हमने सवाल पूछा कि यहां सुखदेव भगत और डॉ. रामेश्वरु राम जैसे दो बड़े नेता चुनाव लड़ रहे हैं। लगातार राजनीति में सक्रिय हैं। दोनों आदिवासी नेता हैं फिर ये हालत क्यों बनी हुई है? तो इसके जवाब में गोपी कुंवर ने कहा कि यह इलाका भी आदिवासियों का हैं और सीट भी आदिवासियों के लिए आरक्षित है लेकिन नेताओं ने आजतक लोहरदगा को सिर्फ चारागाह समझा। वोट के समय यहां आते हैं। सांसद बने तो दिल्ली में रह जाते हैं और विधायक बने तो रांची में रह जाते हैं। यहां की जनता से उनकी मुलाकात कभी-कभार होती है। वोट मांगने आते हैं लोग उनके लोकलुभावन नारों में फंस जाती है। फिर वह सोचती है कि किसी को तो देना ही है, जो जीत रहा उसी को दे दो।

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गोपी कुंवर आगे बताते हैं, 'यहां जाति का मुद्दा नहीं है, यहां लोग हवा में बहते हैं। अगर रुझान भाजपा का है तो अधिकतर लोग चाहेंगे कि भाजपा जीते। इस सीट पर पहले आजसू पार्टी दो बार जीती क्योंकि आजसू बिल्कुल नई पार्टी यहां आई थी। इससे पहले यह कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था लेकिन आज की स्थिति बदल गई है। आज यहां त्रिकोणीय मुकाबला है। मुख्य रुप से भाजपा, आजसू और कांग्रेस के बीच है।

ह आगे बताते हैं, 'आज जो यहां पर चुनाव हो रहा है वो मुद्दों पर तो हो रहा है लेकिन जनता निराश होती जा रही है। अभी लोग खेती के काम में व्यस्त हैं, गांव में कहीं चौपाल नहीं लगी है, कहीं कोई चुनावी चर्चा नहीं है। लोगों को नेताओं की हकीकत मालूम है।'

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स दौरान जब उनसे पूछा गया कि पत्रकारिता को लेकर लोग इन दिनों बहुत सवाल उठ रहे हैं तो क्या यहां भी आप लोगों की पत्रकारिता को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं? तो इसके जवाब में उन्होंने कहा, 'जहां तक पत्रकारिता में गिरावट का सवाल है, आप छोटी जगहों पर जाएंगे तो आपको सिर्फ ईमानदारी नजर आएगी। यहां गिरावट का कोई स्कॉप नहीं है, यदि बाजार हो तो चीजें बिकती हैं..यहां बाजार नहीं है। यहां पर ईमानदारी की पत्रकारिता अभी भी जिंदा है। आप देखेंगे कि यहां जनसरोकार की खबरें प्रकाशित होती हैं। अगर निष्पक्ष पत्रकारिता देखनी हो तो लोहरदगा में देखी जानी चाहिए।'

क ट्रेन यात्री से जब चुनाव और नेताओं को लेकर जब सवाल किया तो उन्होंने शायराना अंदाज में कहा- जिंदगी की राहों में बहुत से यार मिलेंगे, हम कहां हमसे भी अच्छे हजार मिलेंगे, इन हजार की संख्या में हमें मत भुला देना, क्योंकि हम कहां आपको बार-बार मिलेंगे।

 

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