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झारखंड चुनाव में पर्दे के पीछे कारपोरेट वार, अंबानी का चैनल नहीं दिखायेगा भाजपा नेता सरयू राय के पक्ष में कोई पॉजिटिव न्यूज
यूपी की 55 और गोवा की 40 सीटों पर वोटिंग शुरू।
जब से भारतीय जनता पार्टी का उभार हुआ है, तब से झारखंड में कुछ नए कॉरपोरेट प्लेयर भी उभरे हैं बड़ी तेजी से, इनमें विशेष रूप से शामिल हैं अडानी, अंबानी, जिंदल, एसआर समेत तमाम औद्योगिक घराने...
जेपी सिंह की रिपोर्ट
कहने को तो झारखंड विधानसभा 2019 का चुनाव हो रहा है, लेकिन पर्दे के पीछे मिनी कॉरपोरेट वार चल रहा है। झारखंड की अपार खनिज संपदा का दोहन इसके मूल में है। एक ओर सरकार की कृपापात्र नयी कारपोरेट लॉबी है तो दूसरी ओर पुराने घराने हैं।
इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अम्बानी के चैनल के संपादकीय विभाग को साफ तौर पर हिदायत दी गयी है कि झारखंड भाजपा के बागी नेता सरयू राय की कोई भी सकारात्मक खबर नहीं चलानी है। इसकी पुष्टि चैनल के अंदरूनी सूत्रों ने की है।
दरअसल, रघुबर सरकार के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री सरयू राय का जमशेदपुर पश्चिम से भाजपा ने टिकट काट दिया है। इसके बाद राय भाजपा से बगावत कर मुख्यमंत्री दास के खिलाफ जमशेदपुर पूर्वी से निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर गए हैं। इस मामले को लेकर मचे घमासान के पीछे भी कॉरपोरेट इंट्रेस्ट को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, क्योंकि सरयू राय ने झारखंड में लूट के खिलाफ बिगुल बजा रखा है।
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दरअसल झारखंड खनिज संपदा में अग्रणी प्रांत है। यहां कई प्रकार के मूल्यवान खनिज पदार्थ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। इसके अलावा प्रचुर मात्रा में वन संपदा भी झारखंड के पास है। आंकड़े बताते हैं कि देश की अधिकतर ताप विद्युत्त परियोजना झारखंड के कोयले से चल रही है। लौह अयस्क के मामले में भी झारखंड धनी प्रांतों में से एक है। ऐसे में झारखंड में कॉरपोरेट का इंट्रेस्ट स्वाभाविक हो जाता है।
यह कोई नई बात नहीं है। इन प्राकृतिक संपदाओं के दोहन को लेकर औद्योगिक और व्यापारिक घरानों के बीच वर्चस्व की लड़ाई भी पुरानी है। पहले भी भारत में कॉरपोरेट घरानों के बीच जंग की खबर आती रही है। झारखंड पहले भी इसका केन्द्र रहा है। संयुक्त बिहार और उसके बाद झारखंड में टाटा, बिरला, डिन्हाल्को, उषा मार्टिन, रुंगटा माइंस बड़ा कॉरपोरेट प्लेयर था, लेकिन जब से भारतीय जनता पार्टी का उभार हुआ है, तब से झारखंड में कुछ नए कॉरपोरेट प्लेयर भी बड़ी तेजी से उभरे हैं, जिसमें अडानी, अंबानी, जिंदल, एसआर आदि का नाम विशेष रूप से लिया जा सकता है।
यही नहीं झारखंड की सबसे प्रभावशाली मारवाड़ी लॉबी भी झारखंड की राजनीति में न केवल हस्तक्षेप करती रही है, बल्कि समय-समय पर इस राजनीति को प्रभावित भी करती रही है। भारतीय जनता पार्टी में रघुबर के उभार से इस लॉबी को अब परेशानी होने लगी है। दरअसल, रघुबर दास की लॉबी ने एक रणनीति के तहत प्रदेश में नए-नए कॉरपोरेट को खड़ा कर दिया है। हालांकि इसके लिए केन्द्र की वर्तमान भाजपा लॉबी भी जिम्मेदार है।
इस नए व्यापारिक समीकरण के उभार के कारण पुराने व्यापारिक घराने बेहद दबाव महसूस कर रहे हैं। भाजपा की केन्द्र और राज्य सरकार ने झारखंड में एसआर, एम्टा पॉवर, अडानी, जिंदल को ज्यादा महत्व दिया है। इसके अलावा सरकारी ठेके पट्टे में भी बड़ी कंपनियों के स्थान पर स्थानीय ठेकेदारों को भाजपा ने प्रश्रय दिया है। इसके कई उदाहरण हैं।
भाजपा की इस रणनीति के कारण पुराने कॉरपोरेट घराने और प्रदेश का प्रभावशाली व्यापारी एवं अभिजात्य समुदाय सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कुछ आंतरिक रूप से तो कुछ वाह्य रूप से भाजपा के विरोधियों को सहयोग करने लगे हैं। अभी हाल ही में झारखंड चेंबर आफ कॉमर्स ने बाकायदा पत्रकार वार्ता कर भाजपा के खिलाफ पूरे प्रदेश के 13 विधानसभा क्षेत्रों से अपने उम्मीदवार को उतारने की घोषणा कर दी है। चेंबर ने पत्रकार वार्ता के दौरान रघुबर सरकार पर कई गंभीर आरोप भी लगाए। इससे साफ लगने लगा है कि प्रदेश में कॉरपोरेट घरानों के बीच जम कर लड़ाई प्रारंभ हो गयी है।
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक भाजपा के साथ आल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू पार्टी) का समझौते के टूटने कारण भी कॉरपोरेट वार ही है। आजसू के केन्द्रीय अध्यक्ष सुदेश महतो के बारे में यह चर्चा आम है कि उनके संबंध मूरी स्थित हिंडाल्को के साथ बेहद मधुर हैं। दूसरी ओर रघुबर सरकार से टाटा का प्रबंधन को खफा बताया जा रहा है। इसका प्रभाव समाचार माध्यमों पर भी देखने को मिल रहा है।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो रघुबर दास के खिलाफ कॉरपोरेट की पुरानी लॉबी जबरदस्त तरीके से सक्रिय है, जबकि नए कॉरपोरेट घराने भाजपा को सहयोग कर रहे हैं। प्रदेश में जो अप्रत्याशित राजनीतिक समीकरणों में परिवर्तन हुआ है, वह संयोग नहीं है बल्कि कॉरपोरेट घरानों की चाल है। यदि भाजपा की झारखंड में जीत होती है तो यह मान लेना चाहिए कि पुराने कॉरपोरेट के दिन झारखंड से लद गए और उन्हें रघुबर के रहमोकरम पर यहां व्यापार करना होगा।
यदि ऐसा नहीं हुआ तो फिर झारखंड एक नए तरीके के कॉरपोरेट वार में फंस जाएगा। हालांकि पुरानी कॉरपोरेट लॉबी भी कमजोर नहीं है, लेकिन नए के साथ सरकार खड़ी दिख रही है। इसलिए संभावनाएं कुछ और संकेत दे रही हैं। इस चुनाव में प्रभावशाली व्यापारिक समूह जो प्रदेश के चेम्बर को लीड करते हैं, उनकी भी स्थिति कमजोर होगी। फिर चेंबर को भी अपनी रणनीति में परिवर्तन करना पड़ सकता है।