झारखंड चुनाव 2019 : रांची के झिरी इलाके को बनाया डंपिंग जोन, दिन में भी मच्छरदानी लगाने को मजबूर ग्रामीण

Update: 2019-12-05 06:24 GMT

नारकीय जीवन जीने को मजबूर झिरी इलाके के लोग, लगातार फैल रही गंदगी से लोगों का जीना हुआ मुहाल, बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं लोग, आश्वासन देकर चुप्पी साध लेते हैं जनप्रतिनिधि...

अनिमेश बागची की ग्राउंड रिपोर्ट

जनज्वार, रांची। बजबजाती नालियां, गंदगी का अंबार और कूड़े का पहाड़-नाक भौं सिकोड़कर ही सही, लेकिन झिरी पंचायत के लोगों के लिए राजधानी रांची से सटे इस इलाके में निवास करना अब मजबूरी की तरह ही नजर आता है। रातू इलाके के नजदीक रिंग रोड से सटे झिरी की पहचान अब गंदगी के पर्याय के तौर पर बन चुकी है। इलाके से पहली बार गुजरने वाले लोगों के लिए यहां के गंदगी के पहाड़ किसी आश्चर्य से कम नहीं होते। रिंग रोड से इस इलाके की ओर रुख करें, तो आसमान पर चैबीसों घंटे उड़ते असंख्य चील और कौवे और दूर से दिखते कूड़े के दर्जनों पहाड़ यहां के भयावह हालत को बयां करते दिखायी देते हैं।

हां से गुजरते लोग नाक पर रुमाल रखकर अथवा सांस रोककर इस जगह से हड़बड़ी में निकल जाना पसंद करते हैं। इलाके के लोग यहां की नारकीय व्यवस्था के लिए रांची नगर निगम और सरकार को कोसते हैं। चुनाव के इस मौसम में जहां रिंग रोड से सटे ग्रामीण इलाकों में उत्सव का माहौल है, वहीं दूसरी ओर झिरी के लोग अपने जनप्रतिनिधियों की लानत-मलामत करने से परहेज नहीं कर रहे।

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झिरी पंचायत वर्षों से रांची नगर निगम का डंपिंग जोन बना हुआ है। समय के साथ जहां झारखंड की राजधानी रांची की आबादी में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई, वहीं यहां कूड़े का अंबार भी बढ़ता गया। झिरी के पुराने वासिंदे गर्व से कहते हैं कि कभी इस इलाके की आबोहवा इतनी अच्छी थी कि यहां के लोग अपने इलाके के बारे में अपने नाते-रिश्तेदारी में गर्व से किया करते थे, लेकिन कुछ वर्षों के दौरान हालात ऐसे बन गये हैं कि रिश्तेदार और सगे-संबंधी भी उनके घरों में आने से कतराने लगे हैं। चौबीसों घंटे गंदगी लेकर आते-जाते ट्रैक्टर और ट्रक रोजाना लोगों की तकलीफों में इजाफा करते दिखते हैं।

बातचीत में इलाके के लोग बताते हैं कि खासकर बरसात के मौसम में लोगों का जीना मुहाल हो जाता है। लोग शाम होते ही अपने घरों में दुबक जाते हैं। इस समय मच्छरों के चलते पूरे पंचायत में लोगों का चलना-फिरना भी दूभर हो जाता है। लोग जल्दी से जल्दी अपने घर में लगे मच्छरदानियों में घुस जाना पसंद करते हैं।

झिरी में कई सालों से फुचका (गोलगप्पा) बेचने वाले दिलीप साहू बेबाकी से बोलते हैं कि जन प्रतिनिधियों को इस इलाके की कोई परवाह ही नहीं है और वे वोट मांगने के दौरान महज लोगों को इस बात का आश्वासन देकर चुप्पी साध लेते हैं कि वे मामले को आगे बढ़ायेंगे। इसके बाद पूरा मामला टांय-टांय फिस्स हो जाता है।

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दिलीप का मानना है कि अब तो यहां लोग शादी-विवाह करने से भी कतराने लगे हैं। पहले की तुलना में लोगों का इस इलाके के घरों में भी आना-जाना कम हो चुका है। बीमारी का एक अनजाना सा डर हमेशा ही छाया रहता है। यहां के ढेरों लोग मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया जैसे रोगों की चपेट में आते रहते हैं।

झिरी के लोगों को अपने जनप्रतिनिधियों से काफी शिकायतें हैं। यह क्षेत्र हटिया विधानसभा में पड़ता है और वर्तमान में यहां से भाजपा के नवीन जायसवाल विधायक हैं। इलाके के लोगों का गुस्सा इस बात पर है कि पिछले पांच सालों के दौरान भाजपा के विधायक के होने और राज्य की सत्ता में भाजपा नीत गठबंधन के शासन करने के बावजूद इस इलाके के हालात ज्यों के त्यों बने रहे। यहां तक कि लोगों ने यहां के हालात को लेकर कई दफे शिकायतें की। लोकतांत्रिक तरीके से धरना-प्रदर्शन भी हुए, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ। शासन के लोग जहां नगर निगम को इसके लिए दोष देते फिरते हैं, वहीं नगर निगम इस मामले में वर्षों से कुछ कर उदासीन बना हुआ है।

झिरी में बने आनंद नगर कॉलोनी के लोग दिन में भी मच्छरदानी लगाकर सोते हैं। कई घरों की खिड़कियों में मच्छरदानियां लगी हुई हैं। लोग हमेशा एक अनजाने डर के साये तले रहते हैं। आनंद नगर के रहने वाले महेश सिंह कहते हैं कि कुछ साल पहले तक नगर निगम की ओर से दवाईयों का छिड़काव किया जाता था, लेकिन अब तो यह पूरी तरह से बंद हो गया है और क्षेत्र के लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है।

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नंद नगर में बच्चों का एक छोटा सा स्कूल है, लेकिन बच्चों के स्कूल जाने से लेकर उनके वापस घर आने तक उनके अभिभावक सशंकित रहा करते हैं। कचरे के ढेर के चलते इस जगह के लोग रिंग रोड में वाहनों के आने की दिशा में चलकर रास्ता पार करते हैं। इस चलते कई लोगों की दुर्घटना भी हो चुकी है।

झिरी में पिछले पंद्रह सालों से रह रहे मंजीत सिंह कहते हैं कि अक्सर मरे हुए जानवरों को भी लोग ट्रैक्टर वालों की मदद से चुपचाप रात में आकर यहां फेंक जाते हैं। इससे इलाके के कुत्ते पहले से ज्यादा आक्रामक हो गये हैं और वे मवेशियों पर हमले करने लगे हैं। कई बार ऐसे वाकिये हो चुके हैं, जब यहां के मवेशियों को कुत्तों ने बेरहमी से नोंचकर मार डाला।इलाके के जलप्रतिनिधि यहां की स्थिति के बारे में गोल-मोल जवाब देते हैं। शायद झिरी की नियति भी यही है। ऐसे में यहां के वोटरों की खामोशी अपने आप यहां के नारकीय हालात को बयां करते दिखायी दे रही है।

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