जिम कॉर्बेट पार्क खुलते ही पर्यटक अंदर, खबरें बाहर

Update: 2017-10-28 16:30 GMT

हर महीने एक बाघ के मरने की औसतन आने लगती है। यानी जंगल में कुछ बड़ी गड़बड़ है, जिसे वन अधिकारी छुपाते हैं या यूँ कहें खबर दबाते हैं...

दिनेश मानसेरा

जिम कॉर्बेट पार्क से लगे तराई फॉरेस्ट के आम पोखरा रेंज में एक वन गुज्जर से हाथी दांत बरामद होने की ख़बर से वन महकमा खुश है। वन विभाग के उच्च अधिकारियों द्वारा हाथी दांत पकड़ने वाले वन रेंजरों, कर्मचारियी की पीठ थपथपायी जा रही है,

जबकि हकीकत ये है इनकी रेंज में हाथी जैसे बड़े जानवर को वन गुज्जरों ने करंट लगा कर वन इलाके में मार डाला, उसे गड्डा खोद कर दफना दिया, उसके दो बड़े दांत निकाल लिए और वन विभाग के इन अधिकारियों को हवा तक नही लगी, है न कमाल की बात।

हाथी को दफनाने के लिए कितना बड़ा गड्डा खोदना पड़ता है, ये सबको पता है। कितने आदमियों ने गड्डा खोदा होगा, फिर मरे हुए हाथी को कैसे उसमें सरका के डाला होगा? चलो मान भी लिया जाए कि आदमियों ने गड्डा नहीं खोदा तो किसी जे.सी.बी. मशीन ने खोदा होगा। तो क्या भारी—भरकम मशीन की आवाज या आवाजाही की हरकत वन विभाग के अधिकारियों को सुनाई नहीं दी या उन्होंने अपनी आंखें मूंद लीं?

जंगल या जंगल किनारे गुज्जर बस्तियों में वन अधिकारी कर्मचारी आते जाते रहते हैं, जंगल की ख़बर लेते रहते हैं। जानकारी में आया है कि इस हाथी की हत्या अगस्त के पहले हफ्ते में की गई थी। उस इलाके के कौन फारेस्ट रेंजर थे, कौन बीट कर्मचारी थे जिन्हें अपने इलाके में हाथी जैसे विशालकाय जीव की मूवमेंट का पता नहीं चला।

इस जंगल डिवीजन के डीएफओ का पद कहकशां नसीम के जाने के बाद से खाली था और ये इलाका अवैध खनन के लिए जाना जाता रहा है। जिस वक्त हाथी की हत्या हुई उस वक्त चंद्रशेखर सनवाल के पास चार्ज था और अब चार्ज डीके सिंह के पास है।

ऐसे में जंगल में हाथी की हत्या हो जाने की लापरवाही पर कौन जिम्मेदार है किसकी जवाबदेही तो बनती ही है। ये सवाल भी उत्तर खोज रहा है, होता अक्सर यही है कि वन्यजीव हत्यारे शिकारी अपना काम करके चले जाते हैं और विभाग के लापरवाह अधिकारी बच जाते हैं।

कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में कुछ साल पहले चार बाघ मार दिए गए थे, शिकारियों की सूचना पर बाघ प्राधिकरण की टीम भी वहां पहुंची उसके बाद क्या हुआ? जांच ठंडे बस्ते में।

अभी कल ही एक बाघ का शव अमानगढ़ जंगल में मिला है। यही वो इलाका है जहां से शिकारी कॉर्बेट में दाखिल होते रहे हैं। दिलचस्प बात ये है कि बारिश के दिनों में बाघ या हाथी के मौत की खबरें जंगल से बाहर नहीं आती क्योंकि पर्यटक जंगल में नहीं जाते। जैसे ही पार्क खुला, वैसे ही खबरें।

हर महीने एक बाघ के मरने की औसतन आने लगती है। यानी जंगल में कुछ बड़ी गड़बड़ है, जिसे वन अधिकारी छुपाते हैं या यूँ कहें खबर दबाते हैं।

बहरहाल सरकार को इस हाथी के मामले को गंभीरता से लेना चाहिए और इलाके के वन अधिकारियों से जवाब तलब करना चाहिए।

(दिनेश मानसेरा NDtv में रिपोर्टर हैं।)

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