हिंसा में जलते मणिपुर में मानवता को शर्मसार करने वाले हालातों के लिए केंद्र की मोदी और राज्य की एन वीरेन सरकार दोषी
राहत शिविरों में स्थिति भयावह है। घाटी और पहाड़ियों के पार आंतरिक रूप से विस्थापित हजारों लोग विकट परिस्थितियों में रह रहे हैं। बुनियादी सुविधाओं का अभाव है और अपर्याप्त व्यवस्था इस बात को जाहिर करती है कि सरकार ने पीड़ितों से अपना पल्ला छुड़ा लिया है....
विशद कुमार की रिपोर्ट
पटना। पिछले 4 माह से मणिपुर जातीय हिंसा में जल रहा है। अब तक सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है तो हजारों हजार लोग अपना घर छोड़ने को मजबूर हो चुके हैं, मगर डबल इंजन की मोदी सरकार इस हिंसा को काबू करने में नाकाम रही है। अभी भी हालात सुधरे नहीं हैं। पिछले दिनों कुकी महिलाओं को नग्न करके सरेआम घुमाते हुए उसके प्राइवेट पार्ट को बुरी तरह नोचा गया था और बाद में उसके साथ बलात्कार किये जाने की बात सामने आयी थी। इसपर राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने भी कहा था कि राज्य में ऐसी असंख्या घटनायें घटी हैं, मगर बावजूद इसके उनकी सरकार इस हिंसा को रोकने में सक्षम नहीं है। यहां तक कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य और मोदी सरकार को नोटिस दिया था।
मणिपुर हिंसा पर इस माह 10 से 13 अगस्त तक देश के विभिन्न हिस्सों का प्रतिनिधित्व करने वाली 8 सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग टीम ग्राउंड जीरो पर हालातों का जायजा लेने पहुंची और उस टीम का हिस्सा रहे सदस्यों ने जो बताया वो बहुत घिनौना और शर्मनाक होने के साथ साथ मानवीयता को भी शर्मसार करने वाला था।
जांच टीम के दो सदस्य प्रतिमा इंग्हपी और क्लिफ्टन डी’ रोज़ारियो ने पटना में एक संवाददाता सम्मेलन की और प्रेस को संबोधित करते हुए कहा कि मणिपुर में हिंसा और अनकही मानवीय पीड़ा की अंतहीन गाथा के लिए केंद्र और मणिपुर सरकार जिम्मेवार है। तथाकथित डबल इंजन वाली भाजपा सरकारों द्वारा पैदा की गई राजनीतिक उथल-पुथल हैरान करने वाली है।
जांच दल ने इंफाल घाटी, कांगपोकपी और चुराचांदपुर जिलों के गांवों और राहत शिविरों का दौरा किया और जो मामले उभरकर सामने आए वह बताते हैं कि भारत की आज़ादी की 76वीं वर्षगांठ पर मणिपुर की घाटी और पहाड़ियों में मैतेई और कुकी जातीय समुदायों को अभूतपूर्व ढंग से अलग करना भाजपा द्वारा दिया गया ‘उपहार’ है। देश के इतिहास में पहले कभी किसी सरकार ने समाज के सामाजिक ताने-बाने को इस तरह समग्रता में नष्ट नहीं किया, जिसके परिणामस्वरूप एक राज्य के भीतर समग्र समुदाय को जातीय रूप से विभिन्न हिस्सों में जुदा-जुदा कर दिया गया है। डबल इंजन वाली भाजपा सरकार ने इस अलगाव को एक ऐसे राज्य में निर्मित किया है, जो पिछले विवादों के बावजूद सामंजस्य स्थापित करने और एक साथ रहने में सक्षम था।
यह कहने की जरूरत नहीं है कि पिछले 3 महीने के अधिक समय से चल रहे जातीय अलगाव और हिंसा भाजपा सरकार के कामों का नतीजा है। भले ही मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह हिंसा को समाप्त करने में पूरी तरह से नकारा और ना-रजामंद साबित हुए हों, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मणिपुर के बजाय फ्रांस और अमेरिका की अपनी यात्राओं को प्राथमिकता दी। हकीकत में संसद में प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का अफसोसजनक जवाब इस संकट के हर पहलुओं पर विचार करने वाला सर्वग्राही सियासी समाधान पेश करने में उनके दिवालियापन को उजागर करती है।
राहत शिविरों में स्थिति भयावह है। घाटी और पहाड़ियों के पार आंतरिक रूप से विस्थापित हजारों लोग विकट परिस्थितियों में रह रहे हैं। बुनियादी सुविधाओं का अभाव है और अपर्याप्त व्यवस्था इस बात को जाहिर करती है कि सरकार ने पीड़ितों से अपना पल्ला छुड़ा लिया है।
विस्थापित मेइतियों के लिए घाटी में राहत शिविर खराब स्थिति में हैं। यह पता चला कि राज्य सरकार द्वारा इंफाल के मध्य में स्थित श्यामसाखी हाईस्कूल के राहत शिविर में प्रति व्यक्ति 80/- रुपये के अलावा कुछ चावल और दाल दी जाती है, जो बेहद ही अपर्याप्त है।
जांच-दल ने यह भी पाया कि मोइरांग बाजार के राहत शिविर में कोई माकूल सुविधाएं प्रदान नहीं की जा रही हैं, सिर्फ 500 रुपया प्रति व्यक्ति अब तक वितरित किये गये हैं। अकम्पट के स्कूल परिसर में संचालित राहत शिविर में भी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। चुराचांदपुर में स्वयंसेवकों द्वारा संचालित युवा छात्रावास के राहत शिविर में कमरे अत्यधिक भीड़भाड़ वाले हैं, और संक्रामक बीमारियां तेजी से फैलने लगी हैं।
शिविर में खसरा, चिकन पॉक्स, वायरल बुखार से ग्रसित होना लोगों के लिए रोजमर्रा की हकीकत है। जांच दल ने आंतरिक रूप से विस्थापित 500 तक के लोगों वाले राहत शिविरों में स्वच्छता का काफी अभाव पाया। अधिकांश राहत शिविर निवासियों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने में असमर्थ हैं और उन्हें दिन में केवल दो बार चावल और दाल दी जाती है। कांगपोकपी राहत शिविर में भी ऐसे ही हालात हैं, जहां उचित पोषण और स्वच्छता नहीं है। जिले में केवल एक अपग्रेड पीएचसी है जिसे जिला अस्पताल नामित किया गया है, लेकिन पर्याप्त डॉक्टर, स्टाफ और दवाइयां नहीं हैं।
घाटी और पहाड़ियों के बीच की सीमा और अघोषित नाकेबंदी ने बुनियादी राहत खाद्य पदार्थों, दवाओं सहित आवश्यक वस्तुओं के परिवहन को बुरी तरह से प्रभावित किया है, जिससे पहाड़ी जिलों के राहत शिविरों में हजारों आंतरिक रूप से विस्थापित कुकी प्रभावित हुए हैं। इससे घाटी के बाहर मैतियों की गतिशीलता पर भी असर पड़ा है।
हिंसा और प्रभावित लोगों की जान-माल की हानि के लिए पूरी तरह सरकार दोषी है। यह बेहद शर्म की बात है कि सुप्रीम कोर्ट को यह सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा कि इन गंभीर और अमानवीय अपराधों की जांच के लिए बुनियादी कदम उठाए जाएं।
इस मानवीय त्रासदी के किसी भी संभव सियासी समाधान के लिए मुख्यमंत्री के बतौर बीरेन सिंह का इस्तीफा इस दिशा में पहला कदम होगा। जांच दल ने पीड़ित समुदायों से आपसी सभी दुश्मनी खत्म करने की अपील की, ताकि राहत शिविरों में लोगों की उचित देखभाल को सुनिश्चित की जा सके। यह वर्तमान गतिरोध को खत्म कर समाधान की दिशा में बढ़ने का कदम है।
संवाददाता सम्मेलन में उनके साथ आदिवासी संघर्ष मोर्चा के संयोजक व विधायक वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता, एआइपीएफ के संयोजक कमलेश शर्मा, इंसाफ मंच के राज्य उपाध्यक्ष गालिब, आइलाज की संयोजक मंजू शर्मा और ऐपवा की राज्य सचिव अनिता सिन्हा भी उपस्थित थी।
8 सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग टीम में प्रतिमा इंग्हपी (भाकपा माले, कार्बी आंगलांग और उपाध्यक्ष, अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन, ऐपवा), क्लिफ्टन डी’ रोज़ारियो (भाकपा माले, कर्नाटक व एडवोकेट), विवेक दास (भाकपा माले, असम), सुचेता डे (भाकपा माले, दिल्ली), अवनि चोकशी (भाकपा माले, कर्नाटक), डॉ सरस्वती (दलित व नारी अधिकार कार्यकर्ता, कर्नाटक), कृष्णावेनी (अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संघ), मधुलिका टी (ऑल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस) शामिल रहीं, जिन्होंने मणिपुर के प्रभावित गांवों और राहत शिविरों का दौरा किया।