JNU : हमला देशभर के विश्वविद्यालयों पर हो रहा लेकिन नाम सिर्फ जेएनयू का उछाला जा रहा
फीस वृद्धि के खिलाफ जेएनयू का प्रदर्शन जारी, मंडी हाउस से संसद मार्ग तक निकाला सिटीजन मार्च, सीपीआई, भीम आर्मी, एसएफआई समेत कई संगठन हुए शामिल.....
जनज्वार। फीस बढ़ोत्तरी को लेकर जेएनयू छात्रों और अन्य संगठनों का प्रदर्शन जारी है। शनिवार 23 नवंबर को जेएनयू छात्रसंघ द्वारा सिटीजन मार्च निकाला गया। इसमें जेएनयू छात्रसंघ के अलावा सीपीआई, भीम आर्मी, एसएफआई, डीएसएफ, आईसा, अन्य संगठनों ने भी हिस्सा लिया।
जेएनयू के छात्र फैजान हैदर ने जनज्वार से कहा, आज 27वां दिन हो गए हैं जबसे हमने प्रदर्शन शुरु किया। कल हमारे यहां मानव संसाधन विकास मंत्रालय के उच्च आयोग के कुछ लोग आए थे, लेकिन वह अपना निर्णय नहीं दे पाए। वह सोमवार को दोबारा आने वाले हैं। जब तक हमारी फीस बढ़ोत्तरी वापस नहीं ली जाती, प्रदर्शन जारी रहेगा। लोगों को कम पैसे में जितनी शिक्षा मिल पाए वो देश के लिए बेहतर है। अभी सरकार सभी चीजों का निजीकरण कर रही है।
जेएनयू में बीए प्रथम वर्ष की छात्रा मिताली रस्तोगी ने कहा, 'मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक है, 'मुझे कोई समस्या नहीं होगी लेकिन हमारे साथ के जो 40 प्रतिशत छात्र हैं, अगर उनको पढ़ाई छोड़नी पड़ेगी तो उनके लिए ये फैसला काफी बुरा रहेगा। उनके संघर्ष का समर्थन करने की हमारी जिम्मेदारी बनती है ताकि शिक्षा का अधिकार देश के हर बच्चे को मिले। वैसे भी ये फीस हर साल दस प्रतिशत बढ़ेगा। अगर हम अभी इसको नहीं रोकेंगे तो आगे ये फीस बढ़ती जाएगी।'
जेएनयू में स्पेनिश पढ़ाई कर रहे गौरव कहते हैं, 'मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। वह इतनी फीस नहीं दे पाएंगे। अगर यह फीस बढ़ती है तो मुझे पढ़ाई छोड़नी पड़ेगी। सरकार सबको अच्छी और सस्ती शिक्षा नहीं देना चाहती। इसीलिए हम लोगों पर लाठीचार्ज करवा रही है। हर जगह किसान, शिक्षक और छात्र मार खा रहे हैं, इसलिए इस सरकार को हटाने की जरूरत है।'
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दिल्ली विश्वविद्यालय की शोधार्थी मोहिनी ने कहा, 'शिक्षा को एक प्रोडक्ट की तरह देखा जा रहा है, जिसे खरीदा जा सकता है बेचा जा सकता है। शिक्षा को केवल पूंजीपति वर्ग तक सीमित किया जा रहा है। अगर निचले तबके से कोई पढ़ना चाहता है तो वह उसके लिए कर्ज लेगा। उसके बाद वह उस शिक्षा का इस्तेमाल समाज की भलाई करने में नहीं लगाएगा, बल्कि कर्ज को चुकाने में लगाएगा। एक ऐसा सर्कल बनाया जा रहा है उसमें छात्र-छात्राओं को फंसाया जा रहा है, जहां शिक्षा का मतलब पैसा कमाना है। एक तरह से यह वंचितों को शिक्षा से दूर रखने का तरीका है जिससे वह सवाल न कर सके। एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर लाठी चलाना फासीवादी सरकार की पहचान है।'