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आंदोलन

'जेएनयू में फीस का उतना भी खर्च नहीं जितना लगता है नेताओं का एक दूसरे को गुलदस्ता देने में'

Prema Negi
22 Nov 2019 4:24 PM GMT
जेएनयू में फीस का उतना भी खर्च नहीं जितना लगता है नेताओं का एक दूसरे को गुलदस्ता देने में
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प्रो लाल बहादुर वर्मा ने कहा देश की कैबिनेट मंत्री जेएनयू की पूर्व छात्रा हैं, मगर उन्हें शर्म नहीं आती कि वे आंदोलनरत जेएनयू का कोई हल निकालें, वहीं गरीब तबके के बच्चे कभी जेएनयू को नहीं भूलते, वह उसकी सांस में समाया रहता है और आज भी उसे समर्थन कर रहे हैं....

जनज्वार। जेएनयू फीस वृद्धि समेत तमाम अन्य मांगों के लिए छात्र लगातार आंदोलनरत हैं, मगर शासन-प्रशासन अपने रुख पर अडिग है। तमाम राजनीतिक सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक-पत्रकार जेएनयू छात्रों के समर्थन में खड़े हो गये हैं।

सी कड़ी में अब एक नाम सुविख्यात इतिहासकार और लेखक प्रो. लालबहादुर वर्मा का भी जुड़ गया है। उन्होंने जेएनयू फीस वृद्धि की आलोचना करते हुए कहा कि यहां बच्चों की फीस बढ़ाकर जो पैसा वसूला जायेगा उसकी राशि नेताओं द्वारा एक दूसरे को भेंट किये जाने वाले गुलदस्ते से भी कम होगी।

प्रो. वर्मा ने कहा कि यूनिवर्सिटी पर जो खर्चा होता है उसका 4-5 प्रतिशत भी फीस से नहीं आता। जितनी फीस बढ़ायी गयी है वह छात्रों से वसूल भी कर ली जाये तो जेएनयू के खर्चे का 10 फीसदी भी फीस से नहीं आयेगा। तमाम यूनिवर्सिटीज में फीसों से जो पैसा आता है वह एक दिन में सरकार में एक दूसरे को गुलदस्ता देने के खर्चे से भी कम है। इसलिए जेएनयू फीस वृद्धि पैसे का सवाल नहीं है, यह सवाल दो नजरियों के बीच का है, अच्छाई और बुराई के बीच का है।

प्रो. वर्मा कहते हैं, जेएनयू का मतलब है आज की सर्वोच्च शिक्षा, शोध। भारत के किसी विश्वविद्यालय में इतना शोध नहीं हो रहा जितना अकेले जेएनयू में हो रहा है। जेएनयू के टोटल विद्यार्थियों में से एक तिहाई एमफिल और पीएचडी के छात्रों का है। जेएनयू में वो पढ़ाया जाता है जो आज शिक्षा को होना चाहिए।

प्रो. वर्मा की राय में, अन्य विश्वविद्यालयों में यूनियन की लड़ाइयों में पता नहीं क्या क्या हो जाता है, मगर जेएनयू में छात्रसंघ वहीं तक सीमित होता है। वहां पैसा भी नहीं खर्च होता, और न अन्य जगह की तरह प्रदर्शन, बल्कि बौद्धिक लड़ाई होती है।

जेएनयू में जितना इस देश का दलित, उत्पीड़ित, शोषित वर्ग का विद्यार्थी पढ़ता है, उतना प्रतिशत देश के किसी विश्वविद्यालय में नहीं है। जेएनयू का अर्थ है सामान्य जन का अपना सर्वोत्कृष्ट दे देने की संभावना। एक गरीब खोमचे वाले का बेटा वहां 5-6 साल पढ़ाई करने के बाद दुनिया के सर्वोच्च पदों पर आसीन हो जाता है और सबसे बड़ी बात वह जेएनयू से प्यार करना नहीं छोड़ता।

प्रो. वर्मा कहते हैं, जिस तरह हमारे देश के कुछ मंत्रियों ने जेएनयू की पढ़ाई को लात मार दी है, वो जेएनयू का नाम तक नहीं लेते, जबकि उसी की बदौलत वे अपने पदों पर पहुंचे हैं। देश की कैबिनेट मंत्री जेएनयू की पूर्व छात्रा हैं, मगर उन्हें शर्म नहीं आती कि वे आंदोलनरत जेएनयू के छात्रों का कोई हल निकालें। वहीं गरीब तबके का बच्चा कभी जेएनयू को नहीं भूलता, वह उसकी सांस में समाया रहता है।

नता को मीडिया के माध्यम से पता चल रहा है कि जेएनयू में छात्र फीस बढ़ाये जाने के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं, मगर हमें बताना होगा कि यह फीस वृद्धि नहीं बल्कि जेएनयू के अस्तित्व की लड़ाई है। इससे तय होगा कि देश किस ओर जायेगा। देश नकारात्मकता की ओर जायेगा या सकारात्मकता की ओर यह भी इससे तय होगा। इस देश को संकीर्णता में धकेला जायेगा या फिर समकालीन बनाया जायेगा यह भी जेएनयू की लड़ाई से तय होगा।

गौरतलब है कि आज 22 नवंबर को उत्तराखंड के आयुष, दिल्ली के जेएनयू समेत छात्रों की शिक्षा के तमाम मसलों को लेकर देहरादून के गांधी पार्क में एक धरना आयोजित किया गया था, जिसमें प्रो. लाल बहादुर वर्मा ने क्यों जरूरी है शिक्षा के लिए जेएनयू? पर अपनी बात रखी।

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