जिस कश्मीर से धारा 370 हटाने पर मन रहीं इतनी खुशियां उसमें शामिल नहीं हैं कश्मीरी!
मोदी-शाह द्वारा जम्मू-कश्मीर में भारतीय जनवाद की एक नई इबारत लिख दी गयी है, जिसमें कश्मीर व कश्मीरियत के लिए कोई जगह नहीं है, जिसमें केन्द्र के निर्णय को मानना ही जनतंत्र है...
मुनीष कुमार, स्वतंत्र पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता
मोदी-शाह सरकार ने राष्ट्रपति अध्यादेश के द्वारा संविधान की धारा 370 व धारा 35 ए को समाप्तप्रायः बनाकर व जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर उसे केन्द्र शासित प्रदेश घोषित कर न केवल कश्मीरी आवाम का गला घोटा है, बल्कि जम्मू व लेह-लद्दाख के लोगों भी लात मारने का काम किया है। ये बात खुद कश्मीरी कह रहे हैं।
मोदी सरकार द्वारा धारा 370 खत्म करने का निर्णय सुनाने के बाद कश्मीरी लोग कह रहे हैं कि 370 के साथ ही हमने अपनी पहचान भी गवां दी है। सरकार के निर्णय के अनुसार जम्मू-कश्मीर व लेह-लद्दाख जो पहले एक ही राज्य थे। अब वे दो अलग-अलग केन्द्र शासित प्रदेशों के रूप में जाने जाएंगे।
लेह-लद्दाख पूर्णतः केन्द्र शासित प्रदेश होगा, जिसकी कोई विधानसभा नहीं होगी। लेह-लद्दाख की जनता से विधायक चुनने का अधिकार भी छीन लिया गया है। उसका देश की राज्यसभा में भी कोई प्रतिनिधित्व नहीं होगा। वहां का शासन-प्रशासन केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि उप राज्यपाल के हाथों में होगा।
जम्मू-कश्मीर अब वैसा ही राज्य होगा जैसा पांडेचेरी है या दिल्ली राज्य है। पांडेचेरी के मुख्यमंत्री नारायणशामी की प्रदेश में जनता को मुफ्त राशन देने की योजना समेत कई योजनाओं पर वहां की उपराज्यपाल किरण बेदी ने अड़ंगा लगा दिया था, जिसके बाद नारायण शामी किरन बेदी के आावास के सामने धरने पर बैठ गये थे। दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल व वहां के राज्यपाल का झगड़ा भी जगजाहिर है।
केन्द्र शासित प्रदेशों में पुलिस व कानून-व्यवस्था आदि मसले केन्द्र सरकार के हाथों में होते है और वहां पर राज्य सरकार की ज्यादातर योजनाओं को अमली जामा पहनाने के लिए केन्द्र सरकार की अनुमति जरूरी है, जो सीमित स्वायत्ता देश के उत्तर प्रदेश व तमिलनाडू जैसे दूसरे राज्यों को मिली हुयी है। केन्द्र शासित प्रदेश बना दिये जाने के कारण जम्मू-कश्मीर को वह भी नहीं होगी।
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1947 में देश में जहां एकमात्र केन्द्र शासित प्रदेश अंडमान-निकोबार द्वीप समूह ही था। अब उनकी संख्या बढ़ाकर 9 कर दी गयी है। कहने को तो भारत एक संघीय गणतंत्र है परन्तु व्यवहार में केन्द्र सरकार का राज्यों के ऊपर लगातार आधिपत्य बढ़ रहा है जिससे देश का संघीय स्वरुप छिन्न-भिन्न हो रहा है।
जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के बाद से ही इसे विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है। जिसके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर में भारत को मात्र रक्षा, विदेश व संचार मामले में ही नीतिया बनाने व हस्तक्षेप का अधिकार था। इससे अन्य मामलों में दखल के लिए उन्हें राज्य विधानसभा की अनुमति आवश्यक थी।
धारा 370 के ज्यादातर प्रावधानों का खात्मा तो कांग्रेस पहले ही कर चुकी है। जम्मू-कश्मीर का अपना झंडा व संविधान है। वहां की सरकार को संविधान की धारा 356 के तहत केन्द्र सरकार द्वारा बर्खास्त नहीं किया जा सकता था। जम्मू-कश्मीर की उच्च न्यायलय के फैसले अंतिम माने जाते थे। उनकी अपील देश की सुप्रीम कोर्ट में नहीं की जा सकती थी।
कांग्रेस की सरकार ने एक के बाद एक करके जम्मू-कश्मीर को धारा 370 के तहत मिली स्वायत्ता व विशेषाधिकार धीरे-धीरे समाप्त कर दिये। 1966 में की गयी तब्दीली के तहत प्रधानमंत्री की जगह मुख्यमंत्री का चुनाव किया जाने लगा। सदर ए रियासत का चुनाव जो विधानमंडल द्वारा होता था, जिसको बदलकर राज्यपाल की नियुक्ती केन्द्र सरकार द्वारा की जाने लगी।
वहां के उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये फैसलों की अपील सुप्रीम कोर्ट में स्वीकार की जाने लगी। हद तो तब हो गयी जब 1987 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर रहे कश्मीर के नेताओं को जेल में डालकर उन्हें हारा हुआ घोषित कर दिया गया। जिसके बाद कश्मीर में आतंकवाद का दौर शुरु हो गया।
जम्मू कश्मीर के भारत में विलय का मामला
भारत से अंग्रेजों के जाने के बाद जम्मू-कश्मीर एक स्वतंत्र रियासत थी, उसने भारत अथवा पाक में विलय करने की जगह स्वतंत्र रहने का फैसला किया था। इसे हड़पने के लिए पाकिस्तान ने अपने सैनिक सितम्बर 1947 में कबायलियों के भेष में जम्मू-कश्मीर में भेज दिये। राजा हरी सिंह ने हार सामने देखकर कश्मीर का भारत में सशर्त विलय कर दिया। विलय के बाद भारत ने भी अपनी फौज श्रीनगर भेज दी और दोनों देशों के बीच युद्ध शुरू हो गया।
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1 जनवरी, 1948 को भारत मामले को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले गया। संयुक्त राष्ट्र संघ में दोनों देशो के बीच युद्व विराम करने पर सहमति बनी। सीमा बंटवारे के लिए नियंत्रण रेखा बना दी गयी। जम्मू-कश्मीर का बड़ा हिस्सा भारत के कब्जे में आ गया तथा शेष 35 प्रतिशत पर पाकिस्तान का कब्जा हो गया। पाकिस्तान के कब्जे वाले हिस्से को पाक नियंत्रित कश्मीर और भारत के कब्जे वाले हिस्से को भारत नियंत्रित कश्मीर बोला जाता है। कश्मीर का 20 प्रतिशत हिस्सा चीन के नियंत्रण में है।
कश्मीर समस्या के समाधान के लिए 5 जनवरी, 1949 को संयुक्त राष्ट्र संघ के एक प्रस्ताव पारित किया गया कि जम्मू-कश्मीर के विलय के प्रश्न को स्वतंत्र और निष्पक्ष जनमत संग्रह के माध्यम से तय किया जाएगा। तथा भारत व पाक जनमत संग्रह को स्वीकार करेंगे। यह जनमत संग्रह आज तक नहीं करवाया गया है।
इसी जनमत संग्रह की मांग को लेकर कश्मीर में संघर्ष जारी है। 1953 में जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय करने से इंकार कर दिया, जिस पर प्रधानमंत्री नेहरु ने अब्दुल्ला को जेल में डाल दिया। 1955 में जम्मू-कश्मीर के लोगों ने जम्मू-कश्मीर जनमत संग्रह फ्रंट का गठन कर जनमत संग्रह कराए जाने की मांग को लेकर आंदोलन जेज कर दिया।
1974 में शेख अब्दुल्ला व इंदिरा गांधी के बीच हुए समझौते के बाद जम्मू-कश्मीर जनमत संग्रह फ्रंट का नेशनल कांफ्रेंस में विलय कर दिया गया और शेख अब्दुल्ला भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बना दिये गये।
शेख अब्दुल्ला द्वारा जनमत संग्रह की मांग से पीछे हटने के बावजूद भी जम्मू-कश्मीर के अवाम का जनमत संग्रह की मांग का लेकर संघर्ष जारी है। आज भी कश्मीर के लोग कहते हैं कि हम कश्मीर के विवाद में नहीं रहना चाहते हैं, भारत जनमत संग्रह कराकर मसले को हल करे।
सैन्य नहीं राजनीति समाधान किया जाना चाहिए
कश्मीर को लेकर भारत व पाकिस्तान में 3 बार युद्ध हो चुके हैं। जम्मू-कश्मीर समस्या 23 हजार से भी अधिक सैनिकों की बलि चुकी है और आज भी कश्मीर में देश के सैनिकों को राष्ट्र के नाम पर शहीद किया जा रहा है। वहीं अनुमान है कि आधिकारिक तौर पर 50 हजार और अनाधिकारिक तौर पर 400 कश्मीरी पंडितों समेत 1 लाख से भी अधिक कश्मीरी इस संघर्ष में अपने प्राण गंवा चुके हैं।
भारत सरकार ने कभी भी कश्मीर के मसले का राजनैतिक हल निकालने का प्रयास नहीं किया। भारत की 7 लाख की फौज जम्मू-कश्मीर में तैनात है। वहां पर आर्म्स फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट के तहत सेना को असीमित अधिकार प्राप्त हैं। सेना के दम पर कश्मीर को भारत के साथ बनाकर रख गया है, जिस तरह से अमरनाथ यात्रा अचानक रोककर कश्मीर से पर्यटकों व बाहरी लोगों को बाहर निकाला गया है।
इंटरनेट, फोन व मीडिया पर पूर्णतः रोक लगा दी गयी है। 35 हजार अतिरिक्त फौज तैनात करके स्कूल कालेज बंद कर दिये गये हैं। विपक्ष समेत हुरियत के नेता नजरबंद हैं या जेलों में डाल दिये गये हैं। यह सब वर्ष 1989 के राज्यपाल जगमोहन के दौर की दमनकारी यादें ताजा कर देता है।
जिस जम्मू-कश्मीर से धारा 370, 35 ए को हटाकर व उसे केन्द्र शासित राज्य बनाकर देश में खुशियां मनाई जा रही हैं, उन खुशियों में जम्मू-कश्मीर व लेह-लद्दाख के लोग कहीं भी शामिल नहीं नहीं हैं। मोदी-शाह द्वारा जम्मू-कश्मीर में भारतीय जनवाद की एक नई इबारत लिख दी गयी है, जिसमें कश्मीर व कश्मीरियत के लिए कोई जगह नहीं है, जिसमें केन्द्र के निर्णय को मानना ही जनतंत्र है।
कश्मीर को भारत से जोड़ने वाले पुल धारा 370 को तोड़ दिया गया है। वहां हर तरफ फौज है और भारत का काला कानून है। कश्मीर में क्या हो रहा दुनिया में किसी को कुछ नहीं बताया जा रहा है।
फौज के द्वारा यदि जम्मू-कश्मीर के विवाद का हल होना था तो आज तक हो चुका होता। हम सभी देशवासियों को आज जम्मू-कश्मीर के वाशिंदों का मजबूती से साथ देना चाहिए तथा देश की सरकार से कहना चाहिए कि सरकार अपना वादा पूरा करे और जम्मू-कश्मीर के आवाम को आत्मनिर्णय का अधिकार दे तथा जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य का दर्जा बहाल करे।
(मुनीष कुमार समाजवादी लोक मंच के सहसंयोजक हैं।)