किसान पंचायत में गरजे किसान, कहा निरंकुश उद्योगतियों का 10 लाख करोड़ माफ कर उन्हें संरक्षण दे रही सरकार और हम आत्महत्या को मजबूर

Update: 2018-06-06 17:07 GMT

विदेशी कम्पनियों को लाभ पहुंचाने के लिये पूरे देश में मोबाइल के टावर लगाकर हर हाथ में स्मार्टफोन तो पहुंचाया जा सकता है, लेकिन मरते किसानों को बचाकर कृषि को राहत दिलाये जाने के लिये वहां सिंचाई की सुविधाएं पहुंचाने में सरकारें आनाकानी करने लगती हैं....

रामनगर, जनज्वार। देशभर में आयोजित 10 दिवसीय 'गांव बंद' आंदोलन को समर्थन देने के लिए उत्तराखण्ड के किसानों की पहल पर आयोजित किसान पंचायत में किसानों की समस्याओं पर मंथन करते हुये वक्ताओं ने महंगी होती खेती पर चिंता व्यक्त की। इस दौरान लगातार महंगी होती खेती के लिये विदेशी कम्पनियों की घुसपैठ को चिन्हित करते हुये सामूहिक खेती को बढ़ावा दिये जाने के विकल्प अपनाने पर भी चर्चा हुई। इसके साथ ही वक्ताओं ने सभी राजनीतिक दलों को आड़े हाथों लेते हुये उन्हें किसान विरोधी बताते हुये उनके खिलाफ जमकर भड़ास निकाली।

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आज 6 मई को पैंठपड़ाव में आयोजित किसान पंचायत में क्षेत्र के दर्जनों किसान एकजुट हुये। इस पंचायत में वक्ताओं ने कहा कि एकजुट राजनीतिक शक्ति के अभाव में देश का अन्नदाता आज सरकारो के सामने याचक बनकर खड़ा है, जो कि शर्म की बात है।

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देश में किसान कर्जे के बोझ के चलते आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहा है, लेकिन मीडिया से लेकर राजनीतिक हल्कों में उसकी समस्याएं चर्चा का विषय नहीं बन रही हैं। समाज को बांटने वाली ताकतें आये दिन नये-नये मुददे उछालकर किसानों के साथ-साथ ही देश की जनता की समस्याओं से मुंह चुराकर भ्रष्टाचार का पोषण करने में लगी हैं।

हर चुनाव से पहले किसानों को ठगने के लिये उनकी समस्याओं पर चर्चा की जाती है, लेकिन चुनाव जीतने के बाद यही राजनीतिक दल उद्योगतियों व विदेशी कम्पनियों की हितों की पैरवी करने लग जाते हैं।

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पंचायत के दौरान वक्ताओं ने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को किसानों के लिये छलावा बताते हुए कहा कि जब तक देश में बीज, डीजल, कीटनाशक, खाद आदि को सस्ती दरों पर किसान की उपलब्ध कराकर खेती की लागत को कम नहीं किया जायेगा, तब तक किसानों की समस्या का निदान नहीं हो सकता है।

देश में 1990 के बाद से डब्ल्यूटीओ के साथ हुये करार के बाद कृषि पर समाप्त की जा रही सब्सिडी के चलते अन्नदाता एक ओर तो सूदखोरों के जाल में फंसा है, वहीं दूसरी ओर देश की 65 फीसदी खेती सिंचाई के लिये मानसून पर निर्भर है जिसका दोहरा खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है।

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वक्ताओं ने किसानों के लिये राष्ट्रीय स्तर पर नीति बनाये जाने की वकालत करते हुये देश के कृषि विश्वविद्यालयों में खेती से जुड़े अनुसंधानों को बढ़ावा देने की अपील की। पंचायत में इस बात पर रोष प्रकट किया गया कि देश की आबादी का पचास फीसदी हिस्सा खेती पर निर्भर होने व जीडीपी में 15 प्रतिशत हिस्सेदारी के बाद भी केन्द्र व राज्य सरकारें किसानों का तीन लाख करोड़ का कर्जा माफ करने को तैयार नहीं है, जबकि निरंकुश उद्योगतियों का दस लाख करोड़ का कर्जा माफ कर उन्हें और अधिक सुविधाएं दी जा रही हैं।

राजनीतिक दलों की इच्छाशक्ति पर प्रहार करते हुये वक्ताओं ने कहा कि विदेशी कम्पनियों को लाभ पहुंचाने के लिये पूरे देश में मोबाइल के टावर लगाकर हर हाथ में स्मार्टफोन तो पहुंचाया जा सकता है, लेकिन मरते किसानों को बचाकर कृषि को राहत दिलाये जाने के लिये वहां सिंचाई की सुविधाएं पहुंचाने में सरकारें आनाकानी करने लगती हैं।

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इसके साथ ही किसान पंचायत के दौरान किसानों की समस्याओं के लिये संघर्षों को आगे बढ़ाने के लिये किसान संघर्ष समिति का गठन करते हुये इसकी बागडोर युवा किसान नेता ललित उप्रेती को सौंपी गई। पंचायत में आये किसानों के बीच से सर्वसम्मति से समिति का गठन करते हुये महेश जोशी को सहसंयोजक बनाते हुये आनन्द सिंह नेगी को कोषाध्यक्ष बनाया गया।

निर्णय लिया गया कि समिति जल्द ही विस्तार करते हुये इसकी विधिवत कार्यकारिणी का गठन कर किसानो की समस्याओं के लिये आंदोलन चलायेगी, जिसकी रणनीति तैयार करने के लिये आठ जून को समिति की विस्तारित बैठक का आयोजन किया जायेगा।

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किसान पंचायत में रघुवीर रावत, हरिदत्त करगेती, सुरेन्द्र प्रसाद भदोला, अशोक रावत, एमआर टम्टा, रघुराज फर्त्याल, दिनेशचन्द्र पाण्डे, गोपाल सिंह जीना, मोहन सिंह खाती, केशवदत्त बुधानी, बालादत्त छिम्वाल, पनीराम आर्य, दामोदर भटट, राजेन्द्र सिंह, धरम सिंह, दीवान सिंह, विमला देवी, सरजीत सिंह, महेश चन्द्र पंडित, नवीन आर्य, बलवन्त मेहरा, पंकज सुयाल, भुवनचन्द्र, प्रेम पपनै, मुनीम, तारादत्त पपनै, सुखविन्दर सिंह, प्रभात ध्यानी, मुनीष कुमार, अजीत साहनी, प्रभुपाल सिंह, किशन शर्मा, बालकिशन चैधरी समेत दर्जनों लोग मौजूद रहे।

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