शर्मनाक : 4 महीने तक छुपा रखी ​थी मां की लाश कि मिलती रहे पेंशन

Update: 2018-05-24 22:34 GMT

पड़ोसियों की घर से बदबू आने की शिकायत पर पुलिस पहुंची छानबीन करने तो आया दिल दहलाने वाला सच सामने, पढ़िए 5 महीने से मां की लाश के साथ क्यों रह रहे थे ये भाई—बहिन

वाराणसी। कहते हैं काशी यानी वाराणसी में किसी मौत हो या वहां अस्थियां प्रवाहित कर दी जाएं तो मोक्ष नसीब होता है, मगर काशी में मौत के बावजूद 4 बच्चों ने लालच में अंधा हो अपनी मां की अस्थियां तो प्रवाहित करना छोड़िए उनका अंतिम संस्कार तक नहीं किया, ताकि पेंशन के बतौर मां को मिलने वाले 40 हजार रुपये घर में आने कहीं बंद ना हो जाएं।

यह समाज का एक भयावह सच है, जो इस कहावत को चरितार्थ करता है 'बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया।' जी हां, यह किसी सीरियल या फिल्म की कहानी नहीं बल्कि वाराणसी के एक परिवार का सच है। पेंशन के लालच में बेटे—बेटियों ने मां का शव पांच महीने तक घर में छिपाए रखा।

मीडिया में आई खबरों के मुताबिक 70 वर्षीय अमरावती देवी का 13 जनवरी को इलाज के दौरान अस्पताल में ही निधन हो गया था, मगर उनकी औलाद ने कई केमिकलों के जरिए उनका शव घर में रखा, ताकि उनके अंगूठे का निशान ले उनके एकाउंट में आने वाले पेंशन के पैसों से ऐश करते रहें। घटना का खुलासा तब हुआ जब पड़ोसियों को बदबू आई और उन्होंने इसकी शिकायत पुलिस में दर्ज की। छानबीन में पुलिस ने स्टोर रूम से अमरावती देवी का कंकाल बन चुका शव बरामद किया। इसके अलावा जांच में एक अंगूठे पर स्याही का निशान भी बरामद किया गया।

अमरावती देवी को मिल रही पेंशन का लाभ लेने के लिए बेटों और बेटी ने उनकी लाश चार महीने 10 दिनों तक घर के एक कमरे में छिपा कर रखी हुई थी। यह घटना वाराणसी के भेलूपुर थाना क्षेत्र के कबीरनगर (दुर्गाकुंड) आवास विकास के फ्लैट नम्बर 27/2 का है।

सबसे ताज्जुब की बात तो यह है कि जब पुलिस ने 23 मई को पड़ोसी की शिकायत पर लाश बरामद कर ली, तब भी यह परिवार एकसुर में कह रहा था कि उनकी मां कोमा में गई हैं, वो जिंदा हैं। पुलिस से भी अमरावती के बच्चों ने खासा बहस की। कहा उनका किसी वैद्यजी से इलाज चल रहा है। थाने पहुंचा बेटा भी अपनी मां को मरा मानने को तैयार नहीं हुआ। जबकि दूसरी माहौल से आने वाली बदबू, उनका कंकाल बन चुका शरीर और वहां मौजूद तमाम सबूत उनकी मौत की लाश की दुर्दशा की कहानी बयां कर रहे थे। पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया।

पुलिस द्वारा की गई छानबीन में सामने आया कि जौनपुर में जलालपुर क्षेत्र के बाकराबाद के मूल निवासी दया प्रसाद कस्टम विभाग में सुपरिटेंडेंट थे, जोकि वर्ष 1991 में रिटायर हो गये। ड्यूटी के दौरान दया प्रसाद ने कबीरनगर में आवास विकास के चार मंजिली बिल्डिंग के ग्राउंड फ्लोर पर चार कमरों का फ्लैट लिया था। दया प्रसाद का वर्ष 2000 में निधन हो गया, जिसके बाद उनकी बीवी अमरावती को पेंशन मिलने लगी।

अमरावती के दो बेटों-ज्योति प्रकाश और देव प्रकाश एवं एक बेटी की शादी हो चुकी है। ज्योति प्रकाश पेशे से अधिवक्ता हैं, जबकि बाकी बेटे बेरोजगार हैं। तीसरी बेटी इलाहाबाद में रहकर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही है। दया प्रसाद का वर्ष 2000 में निधन हो गया। उस समय उन्हें 13 हजार रुपये पेंशन मिलती थी। निधन के बाद पेंशन उनकी पत्नी अमरावती को मिलने लगी। फिलहाल पेंशन के बतौर अमरावती देवी को 40 हजार रुपए मिलते थे।

पुलिस के अनुसार प्राथमिक पूछताछ में यह जानकारी हासिल हुई है कि इस साल सात जनवरी को अमरावती की तबियत खराब होने पर परिजन उन्हें बीएचयू हॉस्पिटल ले जाया गया, जहां हालत गंभीर देखते हुए उन्हें भर्ती कर लिया गया। 13 जनवरी की रात अमरावती की मौत हो गई, जिसके बाद उनका शव उनके घर ले जाया गया।

मगर अमरावती के बच्चों ने अपनी मां का अंतिम संस्कार न करने की साजिश पहले से ही रच रखी थी। अमरावती की मौत की सूचना पर जौनपुर से रिश्तेदार और गांववालों के अलावा कॉलोनीवासी अंतिम संस्कार के लिए घर पहुंचे, तो अंतिम संस्कार से पहले शव को नहलाये जाते वक्त उनके बच्चों ने सबसे कहा कि मां के शरीर में कुछ हरकत हो रही है, मां जिंदा हैं। हालांकि लोगों को यह अजीब लगा, क्योंकि लाश उन्हें भी दिख रही थी, मगर सब लोग अपने—अपने घरों को वापस लौट गए। सभी के जाने के बाद बेटों ने मां का शव घर के बाहरी कमरे में एक चौकी पर रख दिया। लाश खराब न हो, इसलिए वहां एसी भी लगा दिया गया।

इस घटना के बाद जब पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने अमरावती का हाल जानने के लिए घर में आने की कोशिश की तो ये लोग किसी न किसी बहाने आसपास के लोगों या किसी को भी मेन गेट के अंदर नहीं आने देते थे। अब जब पांच महीनों बाद घर के बाहर तक दुर्गंध फैल गई तो किसी पड़ोसी ने पुलिए को फोन किया और मामले की संदिग्धता से परिचित कराया, जिसके बाद यह मामला सामने आ पाया।

अमरावती के पड़ोस में रहने वाले प्रशांत पांडेय ने मीडिया को बताया कि चार-पांच महीने पहले जब बीएचयू से डेड बॉडी आई तो हमने उन्हें कफन दिया और पूछा कि अंतिम संस्कार कब होगा। उनके बेटे ने जवाब दिया कि कुछ घंटे में होगा। कुछ घंटे बाद बताया गया कि उनकी मां जिंदा हो चुकी हैं, हमें शक तो हुआ लेकिन हमें घर के अंदर नहीं घुसने दिया। अब जब प्रशासनिक अधिकारी आए तो पता चला कि डेड बॉडी कंकाल हो चुकी है।

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