5 लाख लोगों को रोजगार देने वाला लकड़ी उद्योग लॉकडाउन से पहुंचा बंदी के कगार पर

Update: 2020-04-28 11:33 GMT

उद्योपगति यूनिट चलाने की अभी नहीं सोच रहे हैं, क्योंकि कच्चा माल नहीं है। मजदूर भी वापस चले गये हैं। इस वजह से उत्पादन शुरू नहीं कर सकते। दूसरी ओर उद्योग बाजार में जो पैसा फंसा था, उसकी रिकवरी के आसार नहीं है....

मनोज ठाकुर की रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो, चंडीगढ़। करीब पांच लाख लोगों को सीधे सीधे रोजगार देने वाला लकड़ी उद्योग लॉकडाउन की वजह से बंद होने के कगार पर पहुंच गया है। निर्माताओं का कहना है कि लॉकडाउन खुलने के बाद भी उत्पादन शुरू करने में कम से कम दो से तीन माह लग जायेंगे। इसके बाद भी उत्पादन की रफ्तार कम रहने की संभावना है। यहीं वजह है कि प्लाइवुड निर्माता अब कम से कम पचास से लेकर 70 प्रतिशत तक उत्पादन करने की सोच रहे हैं।

गैर संगठित मजदूर यूनियन कमर्ठ के प्रदेशाध्यक्ष सतीश कुमार ने बताया कि यदि फैक्टरी अपना उत्पादन कम करती है तो इसका सीधा असर रोजगार पर पडे़गा। क्योंकि प्लाइवुड इंडस्ट्री में 60 प्रतिशत लेबर गैर संगठित और अकुशल है। वह ठेकेदार के माध्यम से से फैक्टरी में काम करते हैं।

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पंजाब के प्लाइवुड निर्मता सुखदेव सिंह ने बताया कि हमारे लिए यह बहुत ही दिक्कत वाला वक्त है। क्योंकि एक तो उत्पादन बंद हो गया। दूसरा मार्केट में जो माल पड़ा था वह फंस गया है। तीसरी सबसे बड़ी दिक्कत यह आएगी कि जो उधारी थी, अब उसे वापस आने में समय लगेगा। उन्होंने बताया कि यह भी तय है कि कम से कम दस से लेकर 20 प्रतिशत तक की उधारी की रिकवरी भी नहीं होगी।

Full View के प्लाइवुड निर्माता एसके जैन ने बताया कि लॉकडाउन में वह मजदूरों को वेतन दे रहे हैं। बंद पड़ी यूनिट का भी बिजली का बिल दे रहे हैं। कर्ज की किश्त देनी पड़ रही है। उत्पादन है नहीं, तो यह खर्च वह कहां से करेंगे। जाहिर है इसके लिए वह अपने फंड इस्तेमाल करेंगे। इसका सीधा असर उनकी आर्थिक स्थिति पर पड़ रहा है। सरकार को कहीं तो उन्हें राहत देनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। ऐसे में उनके सामने चारा ही क्या है?

प्लाइवुड निर्माताओं ने बताया कि जो माहौल बन गया है, इसमें कम से कम छह माह लगेंगे डिमांड आने में। क्योंकि प्लाइवुड की डिमांड तो तब आयेगी जब निर्माण में तेजी होगी। अभी ऐसे हालात तो नजर नहीं आ रहे हैं।

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इंडस्ट्री के जानकारों का कहना है कि यदि प्लाइवुड फैक्टरी के चलने में दिक्कत आयी तो न सिर्फ मजदूर,बल्कि पोपलर उत्पादक किसानों को भी दिक्कत आ सकती है। क्योंकि कच्चे माल के तौरपर पोपलर क लकड़ी प्लाई में प्रयोग होती है। ऐसे में यदि उत्पाद कम रहता है तो जाहिर है लकड़ी भी डिमांड भी कम हो सकती है।

Full View इस वक्त हरियाणा और पंजाब में 70 लाख हेक्टयर में पोपलर की फसल खड़ी है। एग्रोफॉरेस्ट्री करने वाले 70 प्रतिशत किसान पोपलर की खेती को ही तवज्जो देते हैं। ऐसे में इंडस्ट्री पर पड़ने वाले असर से किसान भी अछूते नहीं रह सकते हैं।

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