Ground Report : क्रांतिकारी विरासत का गदरी बाबे दा मेला, आजादी के लिए बलिदान और कुर्बानियां देने वालों को किया जाता है याद
Mela Gadari Babian Da 2022 : पंजाब के जालंधर में क्रांतिकारी विरासत का गदरी मेला हर साल आयोजित होता है, आजादी की लहर फूंकने वाले गदरी बाबे दा मेला देशभगत यादगार हाल ही में आयोजित हुआ, इसका आगाज आजादी के संग्राम के बलिदानियों और गदरी बाबे की कुर्बानियों को याद करके किया गया...
Mela Gadari Babian Da 2022 : पंजाब के जालंधर में क्रांतिकारी विरासत का गदरी मेला हर साल आयोजित होता है। आजादी की लहर फूंकने वाले गदरी बबेयां दा मेला देशभगत यादगार हाल ही में आयोजित हुआ। इसका आगाज आजादी के संग्राम के बलिदानियों और गदरी बाबों की कुर्बानियों को याद करके किया गया। इस मेले के संयोजक अमोलक सिंह ने जनज्वार को बताया कि गदरी बाबाओं का मेला 1992 से शुरू हुआ था। पहले पंजाब में बहुत से मनोरंजन मेले या दरबारी मेले लगते थे। ये भारत का असली मेला है। जो लोग बिजली का खंभा लगाते हैं, जो लोग सड़के बनाते हैं, जो लोग इमारते बनाते हैं और जो लोग गेहूं उगाते हैं, भारत के जो लोग दिन रात मेहनत करते हैं, यह मेला उनका है।
यह मेला आम लोगों, मजदूरों और बेरोजगारों का मेला है। यह लोगों की आवाज उठाता है। इस बार यहां 31वां मेला है। इस मेले को 31 साल हो चुके हैं। यह मेला 1992 में शुरू हुआ था। हमने यह मेला समर्पित किया है साम्राजी तथा फिरकु फाजी हल्ले के खिलाफ, जो लोग संग्राम करते हैं और अपनी बात रखते हैं। उनके बारे में यह मेला बताता है इसलिए इसके अंदर ज्ञान मुकाबला, सिंगिंग कंपटीशन, क्विज कंपटीशन, पेंटिंग कंपटीशन, कवि दरबार, संगीत नाटक, गीत संगीत हैं, जिसमें यह बातें बताई जाती हैं और इनके बारे में बताया जाता है। हमारे देश के अंदर धर्म के बारे में भी बताया जाता है।
1913 में अमेरिका के शहर ऑस्ट्रेलिया में एक सभा हुई थी। वह सभा इसलिए थी क्योंकि वहां लिखा हुआ था कि यहां कुत्तों और भारतीयों का आना मना है तो भारतीयों ने सोचा कि हमारी आजादी कहां गई, फिर विचार आया कि हम आजादी के लिए संग्राम करेंगे। सब एकजुट होकर बैठे। उस दौरान संगठन ने एक पार्टी बनाई जिसका नाम था हिंदी एसोसिएशन स्पेसीफिक कोस्ट लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने अपनी एक पत्रिका निकाली जिसका नाम था गदर। गदर अखबार इतना ज्यादा मशहूर हुआ, अलग अलग भाषा में देश विदेशों तक पहुंचा तो उस पार्टी का नाम ही लोग गदर पार्टी कहने लगे।
साढ़े आठ हजार लोग अमेरिका को छोड़कर भारत की ओर चल पड़े और यह नारा लगाते हुए आ रहे थे कि चलो हम देश को चलें, देश को आजाद कराएं। देश को आजाद कराने के लिए इन्होंने संग्राम किए लेकिन जब ये लोग देश में आए तो देखा कि देश के लोगों के मन में वह जज्बा नहीं था। बगावत करते हुए क्रांतिकारियों को पकड़ा गया। उन्होंने बगावत की। किसानों मजदूरों के बीच गए और जज्बा जगाया लेकिन उनको पकड़ लिया गया। अंडमान निकोबार में बंद कर दिया गया। सैकड़ों लोगों को 20 साल से 25 साल की सजा सुना दी गई। कई लोगों को फांसी की सजा दी गई। कई लोगों को गांव से बाहर निकाल दिया गया। जब वह बगावत कर रहे थे और जेल के अंदर गए थे तब वह लोग जवान थे लेकिन जब जेल से बाहर छूट कर आए तब वह लोग बाबा थे तो ऐसे इनका नाम पड़ गया गदरी बाबे। लोग इन्हें गदरी बाबे कहकर बुलाने लगे।
गदरी बाबाओं के नाम पर यह मेला लगना शुरू हुआ। जहां ये मेला लगता है, वह भी इसलिए बनाया गया कि लोग आजादी के मायने को जानें। उनके बारे में समझे। बहार के लोगों से ही नहीं बल्कि देश के लोगों से भी आजादी ली जाए। जो मेहनत-मजदूरी करने वाले लोग हैं, उनके लिए आजादी का नया नगमा लिखा जाए। हमने गदरी बाबाओं का मेला लगाया है। जो देश की बात करते हैं, जो माटी की बात करते हैं, जो पानी की बात करते हैं, जो ऑक्सीजन की बात करते हैं, जो अपनी मातृभाषा की बात करते हैं, जो जंगल-जल-जमीन की बात करते हैं, जो रोजगार मांगते हैं, जो सभी धर्मों को सम्मान देते हैं, जो आवाज उठाते हैं, जो सच लिखें, जो बुद्धिजीवी हैं, चाहे वो क्रांतिकारी हो या लोगों के बारे में सोचने वाले लोग हो, उन्हें बिना मुकदमे के जेल में रखा गया है।
1913 में जब गदर पार्टी बनी थी तब उसके ऐलान किये गये नाम में लिखा था कि किसी भी लोगों को दबाया जाएगा या उन्हें लूटा जाएगा तो गदरी को आवाज उठानी पड़ेगी। देश में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद लोग ज्यादा नहीं पढ़ने लगे हैं, बल्कि इसलिए पढ़ते हैं क्योंकि यह किताबें इन्हें एक अच्छा मनुष्य बना सकती हैं। नया मनुष्य बनने के लिए वो पढ़ रहे हैं।
यह मेला उधम सिंह के नाम पर भी लगाया गया है। उधम सिंह के नाम पर हमने गेट भी बनाया है। भगत सिंह ने हमें एक बात सिखाई है वो ये कि उन्होंने जिंदगी में केवल एक गोली चलाई है और जेलों में भी उन्होंने पढ़ा है। जब वो किताब का पन्ना पढ़ रहे थे और उन्हें तब आवाज लगाई गई कि आपकी फांसी का समय हो गया है तब भगत सिंह ने कहा कि रुकिए एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी के साथ भेट वार्ता कर रहा है।
पिछले साल हमारे मेले में 16 लाख किताबे लोग लेकर गए थे। अब तो 20 लाख से भी ऊपर जाएगा। पिछले साल हमारे पास 80 बुक स्टॉल थे। इस साल 100 से ज्यादा बुक स्टॉल हैं। इस मेले का उद्देश्य है कि पंजाब के लोगों को उनकी असली ताकत का पता चले। लोग सोचते हैं कि पंजाबियत कुस्ती करने में हैं लेकिन अब लोगों के बारे में चिंतन करने का समय है। इस मेले के जरिए अभी हम नई सोच को जगाने का प्रयास कर रहे हैं। नई फैसले बोने का प्रयास कर रहे हैं।