कोर्ट ने कहा यूपीए की सभी योजनाओं को मोदी सरकार खत्म कर ही रही है तो NEET को भी क्यों नहीं कर देती खत्म

Update: 2019-11-06 06:02 GMT

नीट की पूरी प्रक्रिया पर कोर्ट ने उठाये गम्भीर सवाल, कहा प्राइवेट नीट कोचिंग के बिना डॉक्टर बनना असंभव, कोचिंग का खर्चा ही चला जाता है 5 लाख तक, जिसको वहन करना गरीब बच्चों के लिए नामुमकिन...

मेडिकल सीट के लिए होने वाली खरीद-फरोख्त और पैसों की लेन-देन से बचने के लिए शुरुआत की गई थी नीट परीक्षा की, मगर अब ऐसे कोचिंग सेंटरों के माध्यम से खेला जा रहा है बड़े पैमाने पर पैसों का खेल...

जेपी सिंह की रिपोर्ट

क्या नेशनल एलिजिबिलिटी एंट्रेंस टेस्ट यानि कि नीट की पूरी प्रक्रिया गरीब विरोधी है और केवल पैसे वाले छात्र ही कोचिंग लेकर नीट क्लियर करके डॉक्टर बन सकते हैं?क्या निजी नीट कोचिंग के बिना डॉक्टर बनना असंभव हो गया है? क्या गरीब बच्चे इतनी महंगी कोचिंग कर सकते हैं? यह सवाल हम नहीं उठा रहे हैं, बल्कि मद्रास हाईकोर्ट ने उठाया है।

नेशनल एलिजिबिलिटी एंट्रेंस टेस्ट यानि कि नीट पास करने और तमिलनाडु के मेडिकल कॉलेजों में दाखिला लेने वाले छात्रों की कम संख्या को देखते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि निजी नीट कोचिंग के बिना डॉक्टर बनना असंभव हो गया है। हाईकोर्ट के अनुसार, ऐसा कहा गया था कि नीट मेडिकल शिक्षा की लागत को कम करेगा, लेकिन प्रतीत हो रहा कि कोचिंग सेंटरों द्वारा पैसा बनाया जा रहा है।

नीट की तैयारी में होने वाले खर्चों को देखते हुए जस्टिस एन किरुबाकरन और पी वेलमुरुगन की बेंच ने कहा कि एक गरीब इतनी महंगी कोचिंग कैसे कर सकता है। मेडिकल कॉलेजों के दरवाजे गरीबों के लिए कभी नहीं खुलते। हाईकोर्ट ने माना कि यह दावा सही था कि मेडिकल सीट के लिए होने वाली खरीद-फरोख्त और पैसों की लेन-देन से बचने के लिए नीट परीक्षा की शुरुआत की गई थी, लेकिन अब ऐसे कोचिंग सेंटरों के माध्यम से पैसों का खेल चल रहा है।

द्रास हाईकोर्ट ने कहा कि निजी कोचिंग क्लास के बगैर नीट को क्लियर करना असंभव है, क्योंकि इसका खर्च 5 लाख तक चला जाता है, जो एक गरीब छात्र के लिए वहन करना संभव नहीं है। हाईकोर्ट ने कहा कि नीट गरीब छात्रों के लिए सुविधा नहीं, बल्कि असुविधा है। जो लोग प्राइवेट कोचिंग करते हैं, सिर्फ वही मेडिकल सीट सुरक्षित कर पाते हैं। हाईकोर्ट ने अपना यह अवलोकन उन आंकड़ों के आधार पर दिया है जिसे केंद्र सरकार ने उपलब्ध कराया है। अदालत NEET पास करने के लिए कथित प्रतिरूपण के एक मामले की सुनवाई कर रहा था।

नीट क्लियर करने और तमिलनाडु के मेडिकल कॉलेजों में दाखिला लेने वाले छात्रों की कम संख्या को देखते हुए सोमवार 4 नवंबर को मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि निजी नीट कोचिंग के बिना डॉक्टर बनना असंभव हो गया है। नीट की तैयारी में होने वाले खर्चों को देखते हुए जस्टिस एन किरुबाकरन और पी वेलमुरुगन की बेंच ने कहा क‍ि एक गरीब इतनी महंगी कोचिंग कैसे कर सकता है। मेड‍िकल कॉलेजों के दरवाजे गरीबों के लिए कभी नहीं खुलते।

सके साथ ही हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को भी फटकार लगाते हुए कहा कि तमिलनाडु सरकार सरकारी डॉक्टरों को कम वेतन दे रही है। सरकारी डॉक्टरों को सिर्फ 57,000 रुपये वेतन प्राप्त होता है, जबकि राज्य सरकार के शिक्षक और हाईकोर्ट के पर्सनल असिस्टेंट को इससे ज्यापदा वेतन मिल रहा है। इस मामले पर सुनवाई 7 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी गई है और कोर्ट ने सीबीआई से पूछा है कि‍ क्या उनके पास नीट प्रतिरूपण को लेकर कोई शिकायत आई है।

रअसल नीट विवाद सितंबर में शुरू हुआ, जब थेनी मेडिकल कॉलेज के डीन के पास दो ईमेल आए। इस ईमेल में उदित सूर्या के बारे में बताया गया था, जो मेडिकल कोर्स के पहले वर्ष का छात्र था। उदित ने दो बार नीट परीक्षा में फेल होने के बाद, तीसरे अटेम्पक में परीक्षा पास की। तीसरी बार उदित ने मुंबई में परीक्षा दिया। इस मेल के दो दिनों बाद एक दूसरा मेल आया, जिसमें यह बताया गया था कि कोर्स में एडमिशन लेने वाला व्यक्ति और परीक्षा में बैठने वाला व्यक्ति अलग-अलग हैं।

यानी मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई करने वाला छात्र, वह व्यक्ति नहीं था, जो एग्जाम के लिए उपस्थित हुआ था। इसके बाद, कॉलेज प्राधिकारियों की एक इंटरनल जाँच बैठायी गई, जिसमें छात्र के नीट पहचान पत्र और सामान्य पहचान पत्र की फोटो में अंतर पाया गया।

गौरतलब है कि मद्रास हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि यूपीए सरकार द्वारा लाए गए सभी योजनाओं को जब भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा खत्म किया जा रहा है तो नीट परीक्षा को क्यों नहीं खत्म कर देती, जबकि नीट परीक्षा भी तो यूपीए सरकार द्वारा ही प्रस्तावित है।

हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसा दावा किया गया है कि मेडिकल सीटों के लिए दिए जाने वाले रिश्वत को रोकने के उद्देश्य से नीट परीक्षा लाया गया था, लेकिन अब वही पैसे नीट की कोचिंग के माध्यम से निकाले जा रहे हैं।

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