मैं भी नक्सल तू भी नक्सल, जिसने सच बोला वो नक्सल

Update: 2018-11-28 05:19 GMT

रोहतक के युवा कवि संदीप सिंह की भीमा—कोरेगांव मामले में महीनों से नजरबंद मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर लिखी गई कविताएं

नजरबंदी

कलम में बहुत ताकत होती है

वरवर राव, गौतम नवलखा, गोंजाविल्स

और सुधा भारद्वाज

तुमने साबित कर दिया

तुम्हारे लिखे शब्दों में

करोड़ों लोगों का दर्द है

और एक उम्मीद भी कि

आपके शब्दों की बनायी पगडंडी पर

चलने लगेंगे लोग

क्योंकि वह पगडंडी ले जाएगी वहां तक

जहां चंद लुटेरे बैठे खून पी रहे हैं

और डंडा बरसा रहे हैं जनता पर

ये सोचते हैं

तुम्हें घरों में कैद कर

तुम्हारे दिखाए रास्तों को

नेस्तनाबूद कर देंगे

लेकिन मैं हैरान होता हूं

जब मेरे गांव के मजदूर-किसान पूछते हैं, बेटा -

ये शहरी नक्सल क्या होते हैं ?

किस-किस को कैद करोगे

इतिहास में पढ़ते हैं

एक राजा होता था

बाकी प्रजा होती थी

प्रजा सिर्फ काम करती थी

और फल राजा ले लेता था

पहले पहल जिसने भी कहा होगा

हमारी मेहनत पर राजा

अय्याशियां करता है

उनकी अय्याशियों से

मेरे बच्चे भूख से मरते हैं

मैं मेरी मेहनत राजा को नहीं दूंगा

नहीं शब्द राजा ने

बचपन से लेकर आज तक

सुना ही नहीं था

और सबक सिखाने के लिए

राजा ने ढिंढोरा पिटवाया

जनता को एकत्रित किया

और जिसने नहीं कहा था

जनता के बीच उसे कत्ल कर दिया

जो बैलों की तरह कमाते थे

उनके बीच

नहीं कहने वाले की शहादत

चर्चा का विषय बन गया

और नहीं की आवाज़

इतनी बुलंद हुयी कि

राजा इतिहास में ही सिमट गए.

फिर एक नया शब्द आया

लोकतंत्र

जिसमें जनता से कहा गया

आप अपने प्रतिनिधि चुन सकते हो

यहां कोई राजा नहीं होगा

बस जनता के बीच से

जनता के प्रतिनिधि होंगे

जो हमेशा जनता के बारे सोचेंगे

कुछ राजघराने

सच में जमींदोज हो गए

कुछ राज घराने

साम्राज्यवादी दलाल बन गए

और जनप्रतिनिधि

वहशी गुंडे बन सत्ता पर काबिज हुए

साम्राज्यवादी दलाल जोंक की तरह

खून चुस रहे हैं

और जनप्रतिनिधि

जनता पर ही हंटर बरसा रहे हैं

झूठ का पर्दाफाश करने

जब बुद्धिजीवी

साम्राज्यवादी दलालों से टकराते हैं

दलालों के प्रतिनिधि

शहरी नक्सली कहकर

घरों में छापे मरवाते हैं

फर्जी मुठभेड़ में मार गिराते हैं

जनता की आवाज को

देशद्रोही कहते हैं

तब कोने कोने से आवाज आती है

जुर्म के खिलाफ बोलना, लिखना

नक्सल होने की निशानी है तो

करो गिरफ्तार हमें

हम सब शहरी नक्सली हैं

हम सब शहरी नक्सली हैं

कल तक डरते थे जो

नक्सलबाड़ी पर बात करने से

आज कह रहे हैं

एक ही रास्ता नक्सलबाड़ी

वो डफली पर गा रहे हैं

मैं भी नक्सल, तू भी नक्सल

जिसने सच बोला वो नक्सल

जिस बच्चे ने

नंगे राजा को नंगा कहा

वो बच्चा भी नक्सल

नक्सल शब्द की गूंज

कश्मीर से कन्याकुमारी तक सुनायी दे रही है

बुझी राख से

फिर एक चिंगारी उठी है

आओ, फूंक मारे जोर से

कि चिंगारी सुलग उठे

और नेस्तनाबूद कर दे

साम्राज्यवादी दलालों और

उनके प्रतिनिधियों को.

मैं कहां नहीं हूं?

मेरी महबूब

कभी स्कूल नहीं गयी

गोबर उठाते हुए कहती है

मेरे हिस्से की शिक्षा से

मंत्री की गाड़ी का तेल आता है

गांव में बुजुर्ग दादा जी

चिल्म में आग रखते हुए कहता है

मेरे खेतों की हरियाली की दलाली से

मंत्री विदेशों में सैर करने जाता है

खेतों में पानी देता

बंधुआ मजदूर कहता है

मेरी हिस्से की आजादी से

अफसरों के बच्चे

विदेशों में पढ़ने जाते हैं

जब इन्हीं सब बातों को सुनकर

मुझ जैसा पागल

मंत्री-संत्री, अफसरों को चोर कहता है

पूरी नौकरशाही मुझे घूरने लगती है

और मैं एक विचार बनकर

घर-घर पहुंच जाता हूँ

डरे हुए लोगों में

जोश फूंकने

खोए हौसलों को

वापिस लौटाने

कभी मैं बिरसा मुंडा बना

कभी अशफाक, भगतसिंह, राजगुरू, सुखदेव बना

दुर्गा भाभी, प्रितिलता वाद्देदार भी मैं ही था

फूले , आंबेडकर भी मैं ही था

चारू मजूमदार, कन्हाई चैटर्जी, अनुराधा गांधी भी मैं ही था

जी.एन. साईं बाबा, वरवरा राव,

सुधा भारद्वाज, वरूण फरेरा, गोंजाविल्स

गौतम नवलखा, सुधीर धावले और

आनंद तेलतुम्बडे मैं ही हूं

दुश्मन की जेलों और गोलियों का

मुकाबला पहले भी मैंने ही किया था

और आज भी मैं ही करूंगा

कहां-कहां गोली चलाओगे मुझ पर

कहां कहां कैद करोगे मुझे

जहां मेहनत की लूट होगी

जहां दमन होगा

जहां अन्याय होगा

जहां शोषण होगा

हर उस जगह मेरा चेहरा नजर आएगा।

चलो मैं सवाल नहीं करता

मैं यह भी नहीं कहता कि

मुझे रोजगार चाहिए

मेरे बीमार होने पर

मत दिलाओ मुझे दवाइयां

मगर मैं इतना जरूर कहूंगा

मेरी बेटी

स्कूल जाने से पहले

रोटी की मांग करती है

सर्दी की आहट सुनकर

स्वेटर की मांग करती है

उसे स्कूल जाने से पहले

दो रूपये की रिश्वत चाहिए

हे सरकार!

हे प्रभु!

मैं आपकी तरह निर्दयी नहीं हूं

और ना ही गैर जिम्मेदार

मैं आपकी तरह

अहंकारी भी नहीं हूं कि

बेटी को धमकाकर स्कूल भेज दूं

मेरे हिस्से का रोजगार जो तुम

चंद पूंजीपतियों को

बेच रहे हो

ध्यान से सुनो

तुम उन सब बेटियों के पर कुतर रहे हो

जिन बेटियों के नाम पर

इस कुर्सी तक पहुंचे हो

मैं अपनी बेटी को

कायर नहीं बनने दूंगा

बताऊंगा उसे

उसके हिस्से की शिक्षा

उसके हिस्से का रोजगार

दलाली की भेंट चढ़ गया

नहीं जा पाएगी मेरी बेटी स्कूल

मुझे दुख है इस बात का

मगर उसे मैं घर पर पढ़ाऊंगा

और खोल दूंगा

उस किताब के पन्ने

जो भीमा कोरेगांव से शुरू हुयी है

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