प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर हुए फर्जी एनकाउंटर में मुख्य याचिकाकर्ता की हुई रहस्मयी मौत

Update: 2018-04-14 10:25 GMT

प्रधानमंत्री मोदी की जान को खतरा बताते हुए पुलिस ने किया था एनकाउंटर, एसआई ने अपनी जांच में दिया था इसे फर्जी करार, कहा था निर्दोष थे फर्जी एनकाउंटर में मारे गए लोग...

जनज्वार। इशरत जहां फेक एनकाउंटर मामले के याचिकाकर्ताओं में से एक गोपीनाथ पिल्लई की कल 13 अप्रैल को रहस्यपूर्ण तरीके से सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। गौरतलब है कि गोपीनाथ पिल्लई जावेद गुलाम शेख उर्फ प्रणेश कुमार पिल्लई के पिता थे।

प्रणेश कुमार पिल्लई अपने पड़ोस में रहने वाली इशरत जहां से प्रेम करता था इसलिए उससे शादी करने के लिए वह धर्मांतरण कर मुस्लिम जावेद गुलाम शेख बना था। धर्मांतरण कर उसने इशरत जहां से शादी की थी।

केरल में रहने वाल जावेद के पिता गोपीनाथ पिल्लई का 11 अप्रैल की सुबह नेशनल हाईवे 66 पर एक्सीडेंट हो गया। गंभीर रूप से घायल हालत में उन्हें कोच्चि के एक प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में भर्ती करवाया गया था। इस मामले में भी संदिग्धता इसलिए बनी हुई है क्योंकि वह इशरत जहां एनकाउंटर केस के मुख्य याचिकाकर्ता हैं और इस हादसे में उनके भाई माधवन पिल्लई जीवित हैं।

मामले की जांच कर रही पुलिस के मुताबिक गोपीनाथ पिल्लई अपने भाई माधवन पिल्लई के साथ कार से कहीं जा रहे थे, तभी एक लॉरी ने उनकी कार को टक्कर मार दी। मीडिया को दिए बयान में सब इन्सपेक्टर बी शाजीमोन ने कहा कि जिस मारुति कार में गोपीनाथ पिल्लई बैठे थे उसके सामने चल रही गाड़ी ने अचानक ब्रेक लगाया, बचने की कोशिश में उनकी कार फिसल गई, तभी पीछे से आ रहे एक तेज रफ्तार ट्रक ने उनकी कार को टक्कर मार दी जिससे उन्हें गंभीर चोटें आईं। कोच्चि अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई।

चूंकि एसआईटी अपनी जांच में गुजरात पुलिस द्वारा किए गए इशरत जहां एनकाउंटर को फर्जी करार दे चुकी थी, इसलिए रहस्यपूर्ण तरीके से इशरत जहां के ससुर की सड़क हादसे में मौत शासन—प्रशासन को कटघरे में खड़ा करती है। इशरत जहां के साथ गुजरात पुलिस ने तब उसके पति प्रणेश उर्फ जावेद गुलाम शेख और अन्य दो अमजद अली राणा और जीशान जौहार का भी एनकाउंटर किया था।

गोपीनाथ पिल्लई की फ़ाइल फोटो

गौरतलब है कि 15 जून 2004 को अहमदाबाद क्राइम ब्रांच ने एक एनकाउंटर यह कहकर किया था कि इशरत जहां और उसके तीन साथी जोकि लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े थे, वर्तमान प्रधानमंत्री और तत्कालीन प्रधानमंत्री गुजरात नरेंद्र मोदी को मारने के लिए अहमदाबाद आए थे। इसलिए पुलिस को इस एनकाउंटर को अंजाम देना पड़ा। जब इस एनकाउंटर को फर्जी कह विपक्षी पार्टियों ने हो—हंगामा करना शुरू किया तो तत्कालीन गुजरात सीएम मोदी के इस्तीफे की मांग भी की गई, कहा गया कि मोदी के इशारे पर पुलिस ने इशरत जहां एनकाउंटर को अंजाम दिया।

मृतकों के परिजनों ने भी आरोप लगाए थे कि एनकाउंटर फेक था, इसमें मारे गए लोगों में से कोई भी आतंकवादी नहीं था, हां मुस्लिम थे। उसमें से भी एक धर्मांतरण कर बना मुस्लिम। पुलिस ने फेक एनकाउंटर कर मरे लोगों के हाथों पर हथियार थमाए जिससे कि वह एनकाउंटर को सही साबित कर सके। इस मामले भारी दबाव के बाद गुजरात हाईकोर्ट के आदेश से गठित एसआईटी ने तमाम जांचों के बाद इसे फर्जी करार दिया था। इसमें तमाम बड़े पुलिस अधिकारियों पर सवाल उठे थे।

कहा यह भी जा रहा है कि चूंकि गोपीनाथ इशरत जहां मामले में मुख्य याचिकाकर्ता था, तो उसे संदिग्ध परिस्थितियों में मरवाकर इस केस को कमजोर किया गया है।

एनकाउंटर को विपक्षी पार्टियों ने राजनीतिक मुद्दा बना दिया और फर्जी बताया, जिसे लेकर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी के इस्तीफे की मांग भी हुई थी। इस मुठभेड़ के बाद लोगों ने यह कहा कि यह चारों लोग आतंकवादी नहीं थे। पुलिस ने इन्हें गोली मार दी और मरे हुए लोगों के हाथ में हथियार थमा दिए।

गुजरात में तत्कालीन डीजी वंजारा का नाम इस फेक एनकाउंटर को अंजाम देने वाले मास्टरमाइंडों में शामिल रहा है। उससे पहले हुए सोहराबुद्दीन-तुलसीराम एनकाउंटर में भी बंजारा की संदिग्ध भूमिका रही। कोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने बंजारा को 2013 में साबरमती जेल से हिरासत में लिया था। इसके अलावा तत्कालीन डीएसपी जेजी परमार भी इसमें आरोपित रहे। परमार की पृष्ठभूमि भी संदिग्ध रही, वो पहले से ही जमाल एनकाउंटर में जेल में बंद था।

एसआईटी ने अपनी जांच में बताया कि एसीपी एनके फेक एनकाउंटर करने वाली क्राइम ब्रांच की टीम को स्पॉट पर लीड कर रहे थे। एनके के अलावा एडीजीपी पीपी पांडे को भी फेक एनकाउंटर में गिरफ्तार किया गया था। सीबीआई ने अपनी जांच में कहा कि पीपी पांडे इशरत जहां फर्जी एनकाउंटर का मास्टरमाइंड रहा।

हालांकि अब यह बताने की जरूरत नहीं है कि केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद इन सबको कितनी राहत और पुरस्कार मिले हैं। गोपीनाथ पिल्लई की मौत के बाद इस फर्जी एनकाउंटर मामले से आरोपियों से फंदा अब एक कदम और कमजोर हो गया है।

सवाल न्याय व्यवस्था पर भी कि जब इशरत जहां एनकाउंटर फर्जी करार हो गया था, तो आरोपियों को सख्त सजा क्यों नहीं हुई। या फिर इसका मतलब यह कि न्याय व्यवस्था भी सत्तारूढ़ पार्टी के हाथ की कठपुतली है, जो तमाम मामलों में देखा जा रहा है। फिलहाल तो पिल्लई की संदिग्ध मौत को इसी आइने में देखा जा सकता है कि यह भी फर्जी एनकाउंटर की तरह फर्जी एक्सीडेंट साबित न हो, जिसे सत्ताशीर्ष और शीर्ष नौकरशाही के इशारे पर अंजाम दिया गया हो।

Tags:    

Similar News