मैंने रोजगार मांगा उन्होंने मुझे जेल दी

Update: 2019-07-22 11:39 GMT

संदीप कुमार की कविता

मैंने शिक्षा मांगी

उन्होंने मुझे जेल दी

मैंने रोजगार मांगा

उन्होंने मुझे जेल दी

मैंने संविधान की कसम याद दिलाई

और अधिकारों की बात की

उन्होंने मुझे देशद्रोही कहा

उनकी आवाज इतनी ऊंची थी

कि मुझे भरे चौक पर गोली मार दी गई

और अंधभक्तों ने तालियां बजाईं

ठीक उसी वक्त

कुछ मुट्ठियां हवा में लहरा उठीं

जिनका हवा में लहराना इतना मजबूत था कि

ऊंची आवाज लड़खड़ा उठी

और तालियों की गड़गड़ाहट शांत

जैसे कुछ हुआ ही न हो

उन्हें कौन बताए

हवा में लहराती मुट्ठियों का डर

पेट की भूख और बेरोजगारी की मार ने

खत्म कर दिया है।

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